राजस्थान सरकार के सहकारिता विभाग ने बांसवाड़ा जिले में ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। विभाग की योजना है कि वर्ष 2027 तक जिले की सभी 417 ग्राम पंचायतों में प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी समिति (लैम्पस) स्थापित की जाए। वर्तमान में जिले में 235 लैम्पस कार्यरत हैं, और 182 नई समितियों की स्थापना का लक्ष्य है। इस वित्तीय वर्ष में 92 और अगले वर्ष 93 लैम्पस के गठन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। बीते वर्ष 60 लैम्पस के गठन का लक्ष्य रखा गया था, जो इस दिशा में सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
लैम्पस ग्रामीण क्षेत्रों में एक मिनी बैंक के रूप में कार्य करते हैं। ये समितियां राशन की दुकानों का संचालन, खाद-बीज वितरण, और लेन-देन संबंधी कार्यों को संभालती हैं। इससे किसानों को अपनी जरूरतों के लिए इधर-उधर भटकने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में लैम्पस न केवल राशन वितरण करते हैं, बल्कि किसानों को अपनी फसल बेचने और समय-समय पर खाद-बीज प्राप्त करने की सुविधा भी प्रदान करते हैं। राजस्थान में भी सहकारी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए ऐसी समितियों का गठन किया जा रहा है।
लैम्पस गठन की प्रक्रिया:
लैम्पस स्थापना के लिए केंद्रीय सहकारी बैंक द्वारा सर्वे किया जाता है, जिसके बाद प्रस्ताव तैयार होता है। यह प्रस्ताव जिला सहकारी विकास समिति की बैठक में जिला कलक्टर की अध्यक्षता में अनुमोदित होता है। इसके बाद विभागीय स्वीकृति प्राप्त की जाती है, और कार्यकारी प्रबंध कार्यकारिणी का गठन कर पंजीयन प्रक्रिया पूरी की जाती है। पंजीयन के बाद लैम्पस स्वतंत्र रूप से कार्य शुरू कर सकता है।
जनजातीय क्षेत्रों में विशेष रियायतें:
जनजातीय अंचलों में लैम्पस गठन के लिए विशेष छूट दी गई है। सामान्य रूप से 300 सदस्यों की आवश्यकता होती है, लेकिन आदिवासी क्षेत्रों में यह सीमा 150 सदस्यों तक कम कर दी गई है। इसके अलावा, हिस्सा राशि 3 लाख रुपये के बजाय 1.5 लाख रुपये और अमानत राशि 75 हजार रुपये के बजाय 50 हजार रुपये निर्धारित की गई है। यह रियायतें स्थानीय समुदायों को सहकारी गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
लैम्पस के लाभ:
लैम्पस स्थानीय स्तर पर सुविधाएं प्रदान कर किसानों की निर्भरता को कम करते हैं। ये समितियां न केवल खाद-बीज और राशन वितरण को सुगम बनाती हैं, बल्कि ऋण सुविधा और फसल बिक्री में भी सहायता प्रदान करती हैं। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी और किसानों की आय में वृद्धि होगी। साथ ही, सहकारी समितियों के माध्यम से पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी।