जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने देश भर में सुरक्षा तैयारियों को परखने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। 7 मई, 2025 को देश के 244 शहरों में सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल आयोजित की जाएगी, जिसका मकसद आपातकालीन स्थितियों से निपटने की तैयारियों की समीक्षा और अभ्यास करना है। पहले 244 शहरों में मॉक ड्रिल होनी थी, जिसे बढ़ाकर 259 कर दिया गया है।
गृह मंत्रालय के अंतर्गत नागरिक सुरक्षा निदेशालय द्वारा निर्देशित यह अभ्यास विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों, स्वास्थ्य विभाग, आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और स्थानीय प्रशासन के सहयोग से किया जाएगा। इस अभ्यास में आम नागरिकों की भागीदारी भी सुनिश्चित की जाएगी ताकि सार्वजनिक जागरूकता के साथ-साथ व्यवहारिक प्रतिक्रिया प्रणाली को भी मजबूत किया जा सके।
मॉक ड्रिल क्यों है जरूरी?
सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल केवल सरकारी औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह जीवन रक्षा की एक पूर्व तैयारी है। ऐसी ड्रिल्स का उद्देश्य होता है लोगों को मानसिक रूप से तैयार करना, ताकि वे आपदा या संकट की घड़ी में घबराएं नहीं और अपने साथ-साथ दूसरों की भी सुरक्षा कर सकें।
यह ड्रिल न केवल सुरक्षा तंत्र की जांच करती है, बल्कि नागरिकों में जागरूकता बढ़ाने, आत्मविश्वास जगाने और आपात स्थिति में व्यवस्थित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने में मदद करती है। यह प्रशासन, पुलिस, होम गार्ड, और अन्य एजेंसियों के बीच समन्वय को भी मजबूत करती है, जिससे वास्तविक संकट में जान-माल का नुकसान कम हो सके।
मॉक ड्रिल के 5 प्रमुख बिंदु
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मॉक ड्रिल के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है, जिसमें निम्नलिखित प्रमुख बिंदु शामिल हैं:
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हवाई हमले की चेतावनी (एयर रेड सायरन): इस अभ्यास में हवाई हमले की चेतावनी देने वाले सायरन बजाए जाएंगे। तेज आवाज वाले सायरन का उद्देश्य नागरिकों को तुरंत अलर्ट करना है, ताकि वे हवाई हमले, मिसाइल हमले, या ड्रोन हमले जैसे खतरों से बचने के लिए बंकर, शेल्टर, या सुरक्षित स्थानों पर पहुंच सकें। यह जांचेगा कि सायरन सिस्टम कितना प्रभावी है और लोग कितनी जल्दी प्रतिक्रिया देते हैं।
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नागरिकों को सिविल डिफेंस तकनीकों का प्रशिक्षण: इस ड्रिल में स्कूल-कॉलेज के छात्रों और आम नागरिकों को प्राथमिक चिकित्सा, अग्निशमन, और आपातकालीन किट के उपयोग की ट्रेनिंग दी जाएगी। बच्चों को ‘डक एंड कवर’ जैसी सरल तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिसमें नीचे झुककर सिर को ढकना सिखाया जाता है। इसका उद्देश्य नागरिकों को आत्मनिर्भर बनाना और आपात स्थिति में घबराहट के बजाय सही कदम उठाने के लिए तैयार करना है।
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ब्लैकआउट प्रोटोकॉल का कार्यान्वयन: ब्लैकआउट के दौरान घरों, इमारतों, और सड़कों की रोशनी बंद या ढक दी जाती है, ताकि दुश्मन के विमानों या ड्रोन के लिए निशाना लगाना मुश्किल हो। इस अभ्यास में शहरों और संवेदनशील क्षेत्रों में ब्लैकआउट प्रक्रिया का परीक्षण होगा, ताकि युद्ध या हमले की स्थिति में महत्वपूर्ण स्थानों की पहचान दुश्मन से छिपाई जा सके।
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महत्वपूर्ण ढांचों का प्रारंभिक छलावरण: इस प्रक्रिया में पावर प्लांट, सैन्य अड्डे, अस्पताल, और जल आपूर्ति जैसे महत्वपूर्ण ढांचों को हवाई या उपग्रह निगरानी से बचाने के लिए छलावरण तकनीकों का उपयोग होगा। इसमें इमारतों को प्राकृतिक रंगों से रंगना, जाल से ढकना, या कृत्रिम पेड़-पौधों का उपयोग शामिल है। ड्रिल में सिविल डिफेंस टीमें यह अभ्यास करेंगी कि कैसे जल्दी और प्रभावी ढंग से छलावरण लागू किया जाए।
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निकासी योजनाओं का अभ्यास: यह प्रक्रिया आपात स्थिति में लोगों को खतरे वाले क्षेत्र से सुरक्षित स्थानों, जैसे बंकर या कैंप, तक ले जाने की योजनाओं का परीक्षण करती है। ड्रिल में निकासी मार्गों की जांच, बाधाओं को हटाना, और विशेष जरूरतों वाले लोगों (बुजुर्ग, बच्चे, विकलांग) के लिए व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जाएंगी। यह अभ्यास स्थानीय प्रशासन और सिविल डिफेंस टीमों के बीच तालमेल को मजबूत करेगा।
गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ड्रिल के बाद “एक्शन टेकन रिपोर्ट” सौंपने का निर्देश दिया है, जिसमें कार्यान्वयन और सुधार के बिंदु शामिल होंगे। यह अभ्यास न केवल युद्ध की स्थिति में तैयारियों को परखेगा, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं या अन्य संकटों के लिए भी उपयोगी होगा।
पहलगाम हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर जोर देते हुए कहा, “हमारी तैयारियां ऐसी होंगी कि कोई भी चुनौती हमें कमजोर नहीं कर सके।” यह मॉक ड्रिल देश की एकजुटता और तत्परता का प्रतीक बनेगी, जो नागरिकों में आत्मविश्वास और जागरूकता को बढ़ाएगी।