भारत युवाओं का देश है और भारतीय युवाओं में असीम क्षमताएं हैं। जरूरत है उन्हें सही दिशा देने और उनकी क्षमताओं का बेहतर तरीके से उपयोग करने की। युवाओं की इस असीमित क्षमता का इस्तेमाल कर ही विकसित भारत का सपना साकार किया जा सकता है। इसमें सहकारिता क्षेत्र की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रहने वाली है। सहकारिता क्षेत्र का प्रभाव देशभर में व्यापक रूप से बढ़ रहा है। खासकर केंद्रीय स्तरीय पर जब से अलग सहकारिता मंत्रालय बना है, तब से इस क्षेत्र में व्यापक सुधार के कई कदम उठाए गए हैं जिससे भारतीय सहकारिता आंदोलन मजबूत हो रहा है।
सहकारी क्षेत्र के विकास पर ही देश का विकास निर्भर है। युवा भारत में सहकारिता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। युवा अपने नए विचारों, ऊर्जा और कौशल के साथ सहकारिता को एक गतिशील और आधुनिक स्वरूप प्रदान कर सकते हैं। वे नवाचार को बढ़ावा देते हैं, उद्यमिता को प्रोत्साहित करते हैं और सहकारी समितियों को सामाजिक-आर्थिक विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन मे भारत सरकार सहकारी आंदोलन को निरंतर गति, विस्तार एवं दिशा दे रही है। भारत की अर्थव्ययवस्था में सहकारी क्षेत्र की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है, इसे इन बातों से समझा जा सकता है।
देश के करोड़ों युवा उच्च बेरोजगारी, बढ़ी हुई सहनशीलता और असुरक्षित काम के साथ-साथ लगातार उच्च कामकाजी गरीबी का गंभीर मिश्रण अनुभव कर रहे हैं। उद्यम का सहकारी रूप युवाओं को अपना स्वयं का रोजगार करने, उन उद्यमों में नौकरी खोजने का साधन प्रदान करता है जो अक्सर उनके अपने मूल्यों के साथ श्रेणीबद्ध होते हैं और उन उद्यमों के सदस्य-मालिक के रूप में भाग लेते हैं जहां उनकी आवाज सुनी जाती है। एक अनुमान के अनुसार, देश में 15 से 24 वर्ष की आयु के करीब 18 करोड़ युवा हैं। यह दुनिया में इस उम्र के युवाओं की किसी देश में अब तक की सबसे बड़ी आबादी है। इसी उम्र के युवाओं को सबसे ज्यादा ट्रेनिंग और व्यावसायिक शिक्षा देने की जरूरत है। देश की कार्यशील आबादी में से करीब 20 करोड़ लोग ऐसे हैं जो प्रतिदिन 200 रुपये से भी कम कमाते हैं। वयस्कों की तुलना में युवाओं में बेरोजगारी की संभावना लगभग तीन गुना अधिक है।
सहकारी समितियां सिद्धांत आधारित उद्यम होती हैं जो लाभ कमाने की बजाय लोगों को अपने व्यवसाय के केंद्र में रखते हैं। इस वजह से वे केवल लाभ कमाने से जुड़े मूल्यों की तुलना में व्यापक मूल्यों का पालन करते हैं- जैसे स्व-सहायता, स्व-जिम्मेदारी, लोकतंत्र, समानता और एकजुटता। सहकारी उद्यम की लोकतांत्रिक प्रकृति भागीदारी को प्रोत्साहित करती है, स्वामित्व को व्यापक बनाती है और युवाओं के सशक्तीकरण को बढ़ावा देती है।
अनुमान है कि सहकारी समितियां दुनिया भर में 10 करोड़ नौकरियां प्रदान करती हैं। हालांकि, इसमें युवाओं का सटीक अनुपात निर्धारित करना मुश्किल है। सहकारी समितियां स्पष्ट रूप से रोजगार सृजन का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। उद्यम का सहकारी मॉडल न केवल वेतनभोगी रोजगार प्रदान करके युवाओं को रोजगार प्रदान करता है, बल्कि स्वरोजगार के माध्यम से रोजगार सृजन की सुविधा भी प्रदान करता है। यह मॉडल ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों और सभी शैक्षणिक और कौशल स्तरों के व्यक्तियों के लिए उपयुक्त है। इनमें हर साल स्नातक हो रहे ऐसे युवा भी शामिल हैं जिनके पास नौकरी पाने की सीमित संभावनाएं होती हैं।
यदि हम युवाओं को सहकारिता की अवधारणा से उचित रूप से परिचित कराएं तो सहकारिता उन्हें बेहतर भविष्य प्रदान कर सकती है। जो लोग व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं, उनके लिए सहकारी समितियां अक्सर सीमित वित्तीय संसाधनों को ज्ञान के साथ एक उद्यम में लगाने में सक्षम बनाती हैं, जो लगभग हर जरूरत और उत्पादक गतिविधि को पूरा कर सकता है। सहकारी समितियां सामूहिक आवाज और पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं और सामाजिक सुरक्षा के विस्तार के माध्यम से अनौपचारिक रोजगार को औपचारिक बनाने में भी बड़ी भूमिका निभाती हैं।
वित्तीय सहकारी समितियां, मुख्य रूप से सहकारी ऋण संघ दुनिया भर में दूसरे सबसे बड़े बैंकिंग नेटवर्क के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनकी 45 प्रतिशत शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। आर्थिक और वित्तीय संकटों के समय में ये लचीलेपन का एक सिद्ध इतिहास है। वे ऋण सहित वित्तीय सेवाओं तक पहुंच प्रदान करके सभी प्रकार के व्यवसाय के निर्माण और विकास का समर्थन करते हैं। कई सहकारी समितियों ने सहकार से समृद्धि की परिकल्पना को देखते हुए युवा और युवा उद्यमियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए विशिष्ट सेवाएं शुरू की हैं, ताकि उन्हें अपना उद्यम शुरू करने, बनाए रखने और विकसित करने की अनुमति मिल सके और सहकारी एवं व्यवसाय के अन्य रूप मे भी समर्थन मिल सके।
सहकारिता क्षेत्र से ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ने के लिए सरकार भी प्रतिबद्ध है। इसी कड़ी में देश में पहली बार सहकारिता यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई है। गुजरात के आणंद स्थित ग्रामीण प्रबंधन संस्थान (इरमा) में स्थापित त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी न सिर्फ सहकारी शिक्षा को बढ़ावा देगी, बल्कि भारतीय सहकारिता क्षेत्र को भी नई दिशा देने का काम करेगी। सहकार की भावना के साथ यहां से शिक्षित और प्रशिक्षित युवा जब नौकरी के बाजार में या स्वरोजगार के लिए आगे आएंगे तो सहकारी संस्थाएं उन्हें प्राथमिकता देंगी।
सहकारिता युवाओं को आर्थिक स्वतंत्रता, कौशल संवर्द्धन, लोकतांत्रिक भागीदारी और सामुदायिक योगदान के लिए एक मंच प्रदान करती है, जो एक टिकाऊ और समावेशी भविष्य का मार्ग प्रशस्त करती है। देश के युवाओं के साथ काम करने वाली सबसे बड़ी सहकारी संस्था होने के नाते नेशनल युवा कोऑपरेटिव सोसायटी (एनवाईसीएस) इस दिशा में प्रयासरत है एवं युवा सशक्तीकरण की ओर तेज गति से आगे बढ़ने को लेकर प्रतिबद्ध है।
लेखक नेशनल युवा कोऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड के महाप्रबंधक हैं