गुजरात में महिलाओं ने अब सिर्फ घर की जिम्मेदारी ही नहीं, बल्कि दूध उत्पादन और सहकारी समितियों में भी बड़ी भूमिका निभानी शुरू कर दी है। राज्य में महिला संचालित दुग्ध समितियां न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती दे रही हैं, बल्कि महिलाओं को आत्मनिर्भर भी बना रही हैं।
इन समितियों की आर्थिक स्थिति में भी जबरदस्त सुधार हुआ है। पांच साल पहले इनका दैनिक राजस्व करीब 17 करोड़ रुपये था, जो अब बढ़कर 25 करोड़ रुपये प्रतिदिन हो गया है। यानी सालाना कमाई 6,310 करोड़ से बढ़कर 9,000 करोड़ रुपये के पार पहुंच गई है। यह 43% की वृद्धि है, जो इस बात का प्रमाण है कि महिलाएं अब ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनती जा रही हैं।
साल 2020 में जहां महिला संचालित दुग्ध समितियां रोज़ाना 41 लाख लीटर दूध इकट्ठा करती थीं, वहीं 2025 तक यह संख्या बढ़कर 57 लाख लीटर प्रतिदिन हो गई है। यह 39% की बड़ी बढ़ोतरी है। अब ये समितियां गुजरात के कुल दूध संग्रहण का लगभग 26% हिस्सा बन चुकी हैं।
गुजरात में लगभग 36 लाख दुग्ध उत्पादक सदस्य हैं, जिनमें 12 लाख महिलाएं शामिल हैं। यानी हर तीसरे सदस्य के रूप में महिलाएं जुड़ चुकी हैं। यही नहीं, सहकारी समितियों की प्रबंधन समितियों में भी महिलाओं की भागीदारी 14% बढ़ी है। 2020 में जहां ऐसी समितियों में 70,200 महिलाएं थीं, अब यह संख्या 80,000 हो चुकी है।
दुग्ध संघों के बोर्ड में भी महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है। 2025 में 82 निदेशकों में से 25% महिलाएं हैं, जो नीति निर्माण में उनकी सक्रिय भूमिका को दिखाता है।
गुजरात का यह सहकारी मॉडल अब पूरे देश के लिए प्रेरणा बन चुका है। यह न सिर्फ महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहा है, बल्कि गांवों में आर्थिक और सामाजिक बदलाव की नई कहानी भी लिख रहा है।