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त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी विधेयक 2025 संसद से पास, इरमा में बनेगा देश का पहला सहकारिता विश्वविद्यालय

त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी विधेयक, 2025 संसद से पारित हो गया है। यह विश्वविद्यालय गुजरात के आणंद स्थित ग्रामीण प्रबंधन संस्थान (इरमा) के परिसर में बनाया जाएगा। इसके निर्माण के लिए 500 करोड़ रुपये का शुरुआती प्रावधान किया गया है। इस विधेयक पर मंगलवार को राज्यसभा में हुई चर्चा के बाद केंद्रीय सहकारिता राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल ने जवाब दिया। लोकसभा ने पिछले सप्ताह 26 मार्च को ही त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी विधेयक, 2025 पारित कर दिया था।

Published: 10:49am, 02 Apr 2025

त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी विधेयक, 2025 संसद से पारित हो गया है। अब इसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा जाएगा जिसके बाद यह कानून बन जाएगा। कानून बनते ही देश के पहले सहकारिता विश्वविद्यालय के निर्माण का कार्य शुरू होगा। यह विश्वविद्यालय गुजरात के आणंद स्थित ग्रामीण प्रबंधन संस्थान (इरमा) के परिसर में बनाया जाएगा। इसके निर्माण के लिए 500 करोड़ रुपये का शुरुआती प्रावधान किया गया है।
इस विधेयक पर मंगलवार को राज्यसभा में हुई चर्चा के बाद केंद्रीय सहकारिता राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल ने जवाब दिया। इसके बाद सदन ने विधेयक पारित कर दिया। लोकसभा ने पिछले सप्ताह 26 मार्च को ही त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी विधेयक, 2025 पारित कर दिया था।

इस विधेयक के संसद से पास होने पर केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए सोशल मीडिय प्लेटफॉर्म X प्लेटफॉर्म पर लिख “आज का दिन देश के सहकारी क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक है। मोदी जी के विजनरी नेतृत्व में ‘त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय विधेयक, 2025’ लोकसभा के बाद आज राज्यसभा में भी पारित हो गया। सहकार, नवाचार और रोजगार की त्रिवेणी लाने वाले इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए मैं सभी सांसदों को बधाई देता हूं। अब सहकारी शिक्षा भारतीय शिक्षा व पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग बनेगी और इस विश्वविद्यालय के माध्यम से देशभर के प्रशिक्षित युवा सहकारी क्षेत्र को अधिक व्यापक, सुव्यवस्थित और आधुनिक युग के अनुकूल बनाएंगे। सहकारी क्षेत्र से जुड़े सभी बहनों-भाइयों की ओर से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का बहुत-बहुत आभार।”

केन्द्रीय सहकारिता राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल ने राज्यसभा में विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को वर्ष 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यव्यस्था बनाने का संकल्प लिया है, जिसमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण योगदान होगा। प्रधानमंत्री ने पूरे देश में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS), डेयरी, चीनी मिलों, कोऑपरेटिव बैंक, टेक्सटाइल मिल जैसी सहकारी समितियों के विकास और विस्तार के लिए और सहकारी आंदोलन को मजबूत करने के लिए सहकारिता मंत्रालय का गठन किया। देश के पहले सहकारिता मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में सहकारिता मंत्रालय ने सहकारिता क्षेत्र को नई दिशा देने के लिए 60 नई पहल की। इसके तहत सबसे पहले पैक्स को सशक्त बनाने का काम किया गया। पैक्स सहकारिता क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है, इसलिए पैक्स के बायलॉज में सुधार करके उन्हें बहुद्देशीय बनाया गया।

मोहोल ने कहा कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व और केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री के मार्गदर्शन में देश की राष्ट्रीय सहकारिता नीति भी बनाई जा रही है। अगले कुछ दिनों में इस नीति की घोषणा हमारा संकल्प है। सहकारिता क्षेत्र में गतिशीलता लाने और इसके विस्तार के लिए एक संस्थागत व्यवस्था आवश्यक है। इसी उद्देश्य से यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई है। उन्होंने कहा कि कई सहकारी संस्थाओं में कार्य क्षमता की कमी, मैनेजमेंट में अनियमितताएं और तकनीकी संसाधनों के सीमित उपयोग जैसी चुनौतियां हैं, जिससे उनका प्रदर्शन प्रभावित होता है। इस यूनिवर्सिटी के माध्यम से सहकारिता क्षेत्र का दायरा और प्रभाव निश्चित रूप से बढ़ेगा, जिससे नए स्वरोजगार और नवाचार के अवसर भी सृजित होंगे।

एक अनुमान के अनुसार, आगामी पांच वर्षों में सहकारिता क्षेत्र को लगभग 17 लाख प्रशिक्षित युवाओं की जरूरत होगी। इस आवश्यकता को देखते हुए यूनिवर्सिटी की स्थापना की पहल की गई है। उन्होंने कहा कि फिलहाल सहकारिता क्षेत्र में शिक्षण और प्रशिक्षण की व्यवस्था पर्याप्त नहीं है और यह बिखरी हुई भी है। यह यूनिवर्सिटी सहकारिता क्षेत्र में प्रशिक्षित मानव संसाधन की आवश्यकता पूरा कर देश के युवाओं में कोऑपरेटिव स्पिरिट विकसित करेगी और उन्हें इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रेरित करेगी।

YuvaSahakar Team

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