संसद के बजट सत्र 2025 में पारित अधिनियम के तहत गठित त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय (TSU ) ने अब आधिकारिक रूप से कार्य करना शुरू कर दिया है। केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।
यह विश्वविद्यालय भारत के सहकारी क्षेत्र को कुशल पेशेवर प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसकी स्थापना राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के रूप में की गई है। टीएसयू का उद्देश्य सहकारी आंदोलन के सभी स्तरों – जमीनी कार्यकर्ताओं से लेकर शीर्ष प्रबंधन तक – के लिए संरचित, आधुनिक और व्यापक प्रशिक्षण प्रदान करना है।
वर्तमान पाठ्यक्रम और प्रवेश क्षमता:
अभी टीएसयू में चार शैक्षणिक कार्यक्रम संचालित हो रहे हैं। इनमें पूर्ववर्ती ग्रामीण प्रबंधन संस्थान आनंद (आईआरएमए) का एक कोर्स और विश्वविद्यालय द्वारा शुरू किए गए तीन नए कोर्स शामिल हैं। वर्तमान स्वीकृत वार्षिक प्रवेश क्षमता इस प्रकार है:
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डिप्लोमा कार्यक्रम – 25 सीटें
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स्नातक कार्यक्रम – 30 सीटें
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स्नातकोत्तर कार्यक्रम – 583 सीटें
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डॉक्टरेट कार्यक्रम – 10 सीटें
आईआरएमए अब टीएसयू के अंतर्गत एक स्कूल के रूप में शामिल हो गया है, हालांकि उसकी शैक्षणिक स्वायत्तता पूर्ववत बनी रहेगी।
भविष्य की योजना और विस्तार:
टीएसयू के संचालन के चौथे वर्ष से प्रवेश क्षमता में बड़ी बढ़ोतरी का लक्ष्य रखा गया है –
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यूजी और पीजी के लिए 9,600
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डिप्लोमा के लिए 16,000
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पीएचडी के लिए 60
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सर्टिफिकेट पाठ्यक्रमों के लिए 8 लाख विद्यार्थियों का वार्षिक नामांकन संभावित है।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह विश्वविद्यालय केवल गुजरात तक सीमित नहीं रहेगा। पूरे देश में अपने स्कूलों की स्थापना कर एवं अन्य संस्थानों को संबद्ध कर यह सहकारी शिक्षा का एक राष्ट्रीय नेटवर्क बनाएगा।
भारत सरकार ने विश्वविद्यालय के लिए बुनियादी ढांचे के विकास हेतु 500 करोड़ रुपये का एकमुश्त पूंजी अनुदान जारी किया है। टीएसयू का वित्तपोषण मॉडल सरकारी सहायता, स्व-वित्तपोषण एवं अन्य स्रोतों के मिश्रण पर आधारित होगा।
शोध, नवाचार और प्रशिक्षण:
TSU राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप एक अकादमिक रोडमैप पर काम कर रहा है। इसमें नेतृत्व विकास, डिजिटल प्रशिक्षण, परिचालन कौशल तथा अनुसंधान-आधारित नीति निर्माण शामिल होगा। साथ ही एक समर्पित अनुसंधान एवं विकास परिषद भी स्थापित की जा रही है।
आगामी वर्षों में त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय न केवल सहकारी शिक्षा बल्कि नीति निर्माण, प्रशासनिक प्रशिक्षण और नवाचार का राष्ट्रीय केंद्र बनेगा। यह भारत के सहकारी पुनरुत्थान की शैक्षणिक और बौद्धिक रीढ़ बनने के लिए तैयार है।