इंडियन फार्म एंड फॉरेस्ट्री डेवलपमेंट कोऑपेरशन (आईएफएफडीसी) के माध्यम से इफको टोकियो के सहयोग से संचालित समन्वित ग्रामीण विकास परियोजना ग्रामीण क्षेत्र में तरक्की का आधार बन रही है। इसी क्रम में बिहार के मुजफ्फरपुर के मोतीपुरा ब्लॉक में तीन साल पहले तीन गांवों को गोद लिया गया। अत्यधिक पिछड़े इन गांवो में लोगों की आजीविका को बेहतर करने के लिए रोजगार सहयोग और कौशल प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण के बाद गांव के बेरोजगार युवाओं का शहर की ओर पलायन रूक गया। कृषि और पशुपालन के काम में ग्रामीणों को मुनाफा होने लगा।
बिहार के मुजफ्फरपुर के मोतीपुरा ब्लॉक के तीन गांव मंगुरहा, ताजपुर ग्राम पंचायत में पूर्वी व पश्चिमी मुसहर टोला और ग्राम सरैया, ब्लॉक साहेबगंज का चयन किया गया। जून वर्ष 2021 में आईएफएफडीसी के द्वारा यहां समन्वित ग्रामीण विकास परियोजना के तहत काम शुरू किया गया। परियोजना शुरू करने से पहले देखा गया कि गांव अत्यधिक पिछड़ा व शिक्षाविहीन हैं। यहां ग्रामीणों द्वारा पशुपालन, कृषि तथा मजदूरी करके लोग अपनी आजीविका चलाते हैं।
परियोजना की शुरूआत करने से पहले गांव के बेरोजगारों से बात करने पर पता चला कि यहां बहुत कम उम्र में किशोर मजदूरी करने असम, गुजरात व बंगाल चले जाते हैं। गांव में मजदूरी का काम भी इन लोगों को नहीं मिलता, इसलिए गांव के बाहर जाना इनकी मजबूरी हो जाती है। युवाओं के पास किसी तरह का हुनर भी नहीं होता, जिससे वह गांव में रहकर ही कुछ पैसा कमा सकें। इन्हीं सभी सामाजिक आर्थिक परेशानियों को देखते हुए परियोजना को शुरू किया गया।
परियोजना में सबसे पहले तीन गांव के तीन सदस्यों को आटा चक्की देकर रोजगार में सहयोग दिया गया। परियोजना द्वारा गठित कमेटी ने यह तय कि आटा चक्की स्वयं सहायता समूह के सदस्य और उनके परिवार के संचालन के लिए दी जाएगी। परियोजना क्षेत्र में पश्चिम टोला गांव की दुर्गामाता स्वयं सहायता समूह की सदस्य रीना देवी को उनके समूह की 12 महिला सदस्यों ने आटा चक्की के संचालन की जिम्मेदारी दी, क्योंकि रीना देवी के घर में आटा चक्की रखने की पर्याप्त जगह थी।
रीना ने आटा चक्की चलाने के लिए बिजली कनेक्शन व तुलाई कांटा लेने के लिए भी आवेदन कर रखा था। रीना देवी ने अपने समूह सदस्यों से चर्चा कर यह तय किया कि गांव के सदस्यों को बाजार में चल रही गेहूं पिसाई की कम दर पर आटा पीस कर देगें, ताकि गांव के अधिक से अधिक सदस्य समूह के साथ जुड़ सकें।
गेहूं पिसाई के साथ ही बाजार का सर्वे करने पर पता चला कि गेहूं के अलावा मसाला, मक्का आदि पीसने का काम भी किया जा सकता है। इस कार्य के लिए जरूरी उपकरणों का क्रय करने के लिए समूह सदस्यों के बीच सहमति भी बनाई गई। काम की शुरूआत में रीना देवी को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। पति के सहयोग से रीना रोजाना 40 से 50 किलो अनाज आसानी से पीस लेती थी, जिससे उसे रोज की 200 से 250 रुपए की आमदनी होने लगी। साथ ही उसने खरीदे गए तराजू और बिजली कनेक्शन की भी लागत को पूरा कर लिया।
कुछ समय बाद ही रीना की मासिक आमदनी 3000 से 4000 हजार रुपए होने लगी। घर के उपयोग का गेहूं भी घर में ही पीसा जाने लगा। रीना देवी ने बताया कि पहले उनके पति बाहर कमाई करने के लिए जाते थे, लेकिन अब वह घर पर ही आटा चक्की के माध्यम से कमाई कर रहे हैं। रीना ने बताया कि परियोजना के सहयोग से हमें आजीविका का बेहतर माध्यम मिल गया। अब घर के लोग घर पर रहकर ही आमदनी कर रहे हैं। उन्हें गांव से बाहर नहीं जाना पड़ रहा। रीना की तरह की अन्य गांव के परिवारों को भी आईएफएफडीसी के सहयोग से आजीविका का बेहतर साधन मिल गया है।