कोऑपरेटिव बैंकों को मजबूत बनाने के लिए केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) लगातार प्रयासरत हैं। इस दिशा में एक और कदम उठाते हुए आरबीआई ने अब कोऑपरेटिव बैंकों के लिए बैलेंस शीट और अकाउटिंग के नए प्रारूप का मसौदा जारी किया है। नया प्रारूप आधुनिक अकाउंटिंग स्टैंडर्ड और वित्तीय बाजार की जरूरतों के अनुरूप बनाया गया है। इससे कोऑपरेटिव बैंक भी अब कमर्शियल बैंक की तरह अपना बैलेंस शीट दुरुस्त रख पाएंगे जिससे गड़बड़ी की आशंका रहेगी। कोऑपरेटिव बैंकों के खातों में अक्सर गड़बड़ी की बातें सामने आती रहती है जिससे बैंक के साथ-साथ ग्राहकों का भी नुकसान होता है। आरबीआई का यह कदम कोऑपरेटिव बैंकों को न सिर्फ सशक्त बनाएगा, बल्कि ग्राहकों के हितों की भी रक्षा कर पाने में सक्षम होगा।
आरबीआई ने मसौदा प्रारूप जारी करते हुए इस पर 21 फरवरी, 2025 तक फीडबैक मांगा है। इस प्रारूप (फॉर्म) को जारी करने का मकसद उभरते वित्तीय परिदृश्य और आधुनिक अकाउंटिंग मानकों के साथ तालमेल बिठाना है। आरबीआई ने कहा है कि सहकारी बैंकों के बैलेंस शीट के मौजूदा प्रारूप को पहली बार 1981 में बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 56 के साथ पढ़ी जाने वाली धारा 29 के तहत अधिसूचित किया गया था। तब से अब तक वित्तीय बाजार के साथ-साथ अकाउंटिंग स्टैंडर्ड और प्रैक्टिसेस में काफी बदलाव आ चुका है। इसे देखते हुए रिजर्व बैंक ने सहकारी बैंकों के वित्तीय विवरणों के प्रारूपों की व्यापक समीक्षा की है और बैलेंस शीट और लाभ एवं हानि के संकलन के निर्देशों के साथ संशोधित फॉर्म और उनके शेड्यूल के प्रारूप जारी किए हैं।
केंद्रीय बैंक ने कहा है कि बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की तीसरी अनुसूची के मुताबिक, सहकारी बैंकों के लिए वित्त वर्ष के अंतिम कार्य दिवस तक अपनी बैलेंस शीट और लाभ एवं हानि का खाता तैयार करना आवश्यक है। कोऑपरेटिव बैंकों, ऑडिटरों और उद्योग विशेषज्ञों सहित सभी हितधारकों से प्रस्तावित परिवर्तन की समीक्षा कर फीडबैक देने को कहा गया है। पोस्ट या ईमेल के माध्यम से आरबीआई के मुंबई मुख्यालय को यह फीडबैक भेजा जा सकता है।