सरकार इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए 23,000 करोड़ रुपये की नई योजना पर काम कर रही है। यह योजना ऐसे समय में लाई जा रही है जब प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना खत्म होने वाली है। इस योजना का मकसद अगले 6 सालों में भारत में डिस्प्ले मॉड्यूल, सब-असेंबली कैमरा मॉड्यूल, प्रिंटेड सर्किट बोर्ड असेंबली, लिथियम सेल एनक्लोजर, रेसिस्टर्स, कैपेसिटर्स और फेराइट्स जैसे अहम कंपोनेंट्स के उत्पादन को स्थानीय स्तर पर बढ़ावा देना है।
PLI योजना के चलते भारत स्मार्टफोन निर्माण का बड़ा केंद्र बन चुका है, जिससे ऐप्पल और सैमसंग जैसी कंपनियों ने अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को भारत में स्थापित किया है। हालांकि, इसमें स्थानीय मूल्य संवर्धन (Value Addition) अभी भी सिर्फ 15-20% के बीच ही है। सरकार इसे 30-40% तक बढ़ाने की योजना बना रही है।
नई योजना के तहत तीन तरह के इंसेंटिव्स दिए जा सकते हैं- ऑपरेशनल खर्चों पर इंसेंटिव, कैपिटल खर्चों पर इंसेंटिव और इन दोनों का मिश्रण। योजना के तहत नई (Greenfield) और मौजूदा (Brownfield) दोनों तरह की फैक्ट्रियों को सब्सिडी मिलेगी। साथ ही विदेशी कंपनियों को इस योजना का हिस्सा बनने के लिए भारतीय कंपनियों के साथ साझेदारी या टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने का मौका भी मिलेगा।
इस योजना से न सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि रोजगार के अवसर भी काफी बढ़ेंगे। सरकार का लक्ष्य है कि इस योजना के तहत 6 साल में 91,600 सीधी नौकरियां पैदा की जाएं। योजना के तहत कंपनियों को सालाना 2,300 करोड़ रुपये से 4,200 करोड़ रुपये तक का इंसेंटिव मिलेगा, जो इस शर्त पर दिया जाएगा कि कंपनियां अपने निवेश, उत्पादन और रोजगार के लक्ष्य पूरे करें।
सरकार ने पिछले साल के एक आंतरिक मूल्यांकन में पाया था कि भारत में इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स निर्माण क्षेत्र में 100 अरब डॉलर का घरेलू मांग-आपूर्ति अंतर है। अगर भारत को निर्यात मांग को भी पूरा करना है तो यह अंतर 140 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।