भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ लिमिटेड (नेफेड) देश की सर्वोच्च कोऑपरेटिव मार्केटिंग संस्था है। यह किसानों की कोऑपरेटिव है जिसका उद्देश्य कृषि, बागवानी और वन उपज की मार्केटिंग, प्रोसेसिंग और स्टोरेज को व्यवस्थित करना, बढ़ावा देना और विकसित करना है। किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद से लेकर उन्हें उचित कीमत पर उपभोक्ताओं तक पहुंचाने की पूरी प्रक्रिया और अन्य मसलों पर नेफेड के एडिशनल मैनेजिंग डायरेक्टर सुनील सिंह से एसपी सिंह और अभिषेक राजा ने विस्तृत बातचीत की। पेश हैं उसके प्रमुख अंशः
किसानों के कल्याण के लिए केंद्र सरकार की कौन सी महत्वपूर्ण योजनाएं हैं जिसे नेफेड द्वारा अमल में लाया जाता है? इन योजनाओं को जमीनी स्तर पर कैसे क्रियान्वित किया जाता है?
प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण विभाग की एक प्रमुख योजना है जिसे मूल्य समर्थन योजना के माध्यम से लागू किया जाता है। नेफेड प्रत्येक फसल वर्ष में तिलहन, दलहन और कोपरा के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर किसानों से इनकी खरीद करता है। इसके अलावा, मूल्य स्थिरीकरण प्रबंधन कोष (पीएसएफ) के तहत राष्ट्रीय स्तर पर दलहन बफर के लिए बाजार दर पर दालों की खरीद भी करता है। साथ ही, प्याज की भी खरीदी और संग्रहण करता है। जमीनी स्तर पर प्राथमिक सहकारी समितियां जिनमें ज्यादातर पैक्स होते हैं, पंजीकृत किसानों से फसलों की खरीद करती हैं। नेफेड ने एक पोर्टल “ई-समृद्धि” विकसित किया है जो किसानों के पंजीकरण से लेकर उनके द्वारा की गई फसलों की बिक्री और उनके बैंक खाते में सीधे भुगतान (डीबीटी) तक की पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित करता है।
मूल्य समर्थन योजना में किन-किन फसलों की खरीदी होती है?
केंद्र सरकार 23 कृषि जिंसों का एमएसपी निर्धारित करती है। इनमें से 16 जिंसों की खरीद नेफेड द्वारा एमएसपी पर की जाती है। दलहन फसलों के अंतर्गत चना, मसूर, अरहर, उड़द और मूंग की खरीद किसानों से की जाती है। जबकि तिलहन फसलों में सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, कुसुम, तोरिया, तिल और नाइजर की खरीद होती है। दक्षिण भारत में मिलिंग कोपरा, बॉल कोपरा और बिना छिलके वाले नारियल की खरीद नेफेड करता है। फसल वर्ष 2021-22 से 2023-24 की अवधि के दौरान 27,649 करोड़ रुपये मूल्य् की 81.74 लाख टन तिलहन और दलहन फसलों की खरीद की गई। चालू फसल वर्ष में 21,930 करोड़ रुपये मूल्य की 35.27 लाख टन फसलों की खरीद पहले ही की जा चुकी है। चालू रबी सीजन में सोयाबीन और मूंगफली की खरीद प्रगति पर है।
दालों और प्याज की कीमतों को नियंत्रित रखने में नेफेड कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है?
वर्ष 2015 में जब दालों की आपूर्ति में गंभीर बाधा आई थी, तो मैंने ही दालों का बफर स्टॉक बनाने का प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव पर अमल करते हुए 2015-16 में प्याज के साथ दालों को भी मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) में शामिल कर लिया गया। पीएसएस (मूल्य समर्थन योजना) और पीएसएफ के माध्यम से भारत सरकार द्वारा दी गई भारी खरीद सहायता ने घरेलू मांग को पूरा करने के लिए किसानों को अधिक दालें उगाने के लिए प्रोत्साहित किया है। इसका नतीजा यह हुआ कि 2015-16 में जहां 1.63 करोड़ टन दालों का उत्पादन हुआ था वह 2021-22 में बढ़कर 2.73 करोड़ टन तक पहुंच गया। चना का उत्पादन 2015-16 के 70 लाख टन के स्तर से लगभग दोगुना होकर 2021-22 में 1.35 करोड़ टन हो गया है। दालों के आयात के साथ-साथ घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने जैसी सभी गतिविधियों में नेफेड महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
जहां तक प्याज का सवाल है, रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद कई बार इसका मूल्य प्रबंधन चुनौतीपूर्ण होता है। भंडारण योग्य रबी प्याज के बेहतर भंडारण के लिए आधुनिक तकनीक की आवश्यकता है। इसके अलावा, पूरे भारत में प्याज के उत्पादन को बढ़ाने की जरूरत है, न कि महाराष्ट्र, खासकर नासिक क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भर रहने की। किसानों ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि में प्याज का उत्पादन बढ़ाया है, लेकिन इसकी कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए उत्पादन और वितरण की चुनौतियों से निपटने के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है।
किसी एक देश पर दाल के आयात की निर्भरता कम करने के उद्देश्य से उपभोक्ता मामलों का विभाग नेफेड के साथ मिलकर आपूर्ति के स्रोत बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। हाल के वर्षों में ब्राजील गुणवत्तापूर्ण उड़द के अच्छे आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा है। मसूर और अरहर के लिए भी ऑस्ट्रेलिया, रूस और ब्राजील के साथ इसी तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। हमें इसकी आवश्यकता है क्योंकि अभी भी हम लगभग 45-50 लाख टन दालों के आयात पर निर्भर हैं।
दलहन उत्पादक प्रमुख देश कौन से हैं और वे भारत में दलहन की कीमतों को कैसे प्रभावित करते हैं?
भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता बना हुआ है। चना और मूंग के मामले में यह लगभग आत्मनिर्भर है। हालांकि, अरहर, मसूर और उड़द के लिए आयात पर निर्भरता बनी हुई है। भारत में मसूर की आपूर्ति ऑस्ट्रेलिया और कनाडा से होती है। म्यांमार और कुछ अफ्रीकी देश जैसे मोजाम्बिक, तंजानिया, मलावी, सूडान, केन्या अरहर के आपूर्तिकर्ता हैं, जबकि म्यांमार उड़द का एकमात्र आपूर्तिकर्ता था। किसी एक देश पर आयात निर्भरता कम करने के उद्देश्य से उपभोक्ता मामलों का विभाग नेफेड के साथ मिलकर आपूर्ति के स्रोत बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। हाल के वर्षों में ब्राजील गुणवत्तापूर्ण उड़द के अच्छे आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा है। मसूर और अरहर के लिए भी ऑस्ट्रेलिया, रूस और ब्राजील के साथ इसी तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। हमें इसकी आवश्यकता है क्योंकि अभी भी हम लगभग 45-50 लाख टन दालों के आयात पर निर्भर हैं। इन देशों से नियमित आपूर्ति घरेलू कीमतों को नियंत्रित और उचित स्तर पर रखने में मदद करती है।
कोऑपरेटिव में आप युवाओं की भूमिका को कैसे देखते हैं और राष्ट्र निर्माण में उन्हें शामिल करने में नेफेड क्या भूमिका निभा सकता है?
युवा ही देश का वर्तमान और भविष्य हैं। केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय के माध्यम से किए जा रहे प्रयासों से सहकारी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बदलाव आ रहा है। डेयरी, मत्स्य पालन, भंडारण, एलपीजी/पेट्रोल पंप आदि सहित 25 से अधिक नए क्षेत्र पैक्स के लिए व्यावसायिक उद्यम के रूप में खोले गए हैं। सहकारी क्षेत्र में विश्व का सबसे बड़ा विकेन्द्रीकृत अनाज भंडारण कार्यक्रम शुरू किया गया है। ऐसी सभी योजनाओं से ग्रामीण युवाओं को बहुत लाभ होगा। नेफेड पहले से ही एक जिला एक उत्पाद (ओपीओडी) योजना और अनाज भंडारण योजना लागू कर रहा है। यह सहकारी समितियों में एक नए युग की शुरुआत है। सरकार के इन प्रयासों से निश्चित रूप से किसानों और ग्रामीण आबादी को लाभ होगा।