मुर्गी पालन के पारंपरिक तरीकों में कई तरह की चुनौतियां होती है। संक्रमण की संभावना, टीकाकरण, इनपुट खर्च जैसे महंगी फीडिंग आदि कारोबार की लागत को कई गुना बढ़ा देते हैं, खर्च के अनुसार आमदनी न होने की सूरत में लाभ की जगह मुर्गी पालन घाटे का सौदा साबित होता है। मुख्य रूप से झारखंड के मुर्गी पालकों को मुर्गी के बच्चों के लिए अनाज आधारित मिश्रित आहार और अंडे पड़ोसी राज्यों जैसे बिहार, आंध्रप्रदेश और मध्यप्रदेश से मंगवाना पड़ता है, जिससे व्यवसाय की लागत बढ़ जाती है। मुर्गी पालन व्यवसाय को संगठित करने और लागत को कम और ग्रामीणों की आजीविका बेहतर करने के उद्देश्य से झारखंड सरकार के सहयोग से जोहार (झारखंड ऑपरचुनिटी फॉर हारनेशिंग रूरल ग्रोथ ) प्रोजेक्ट के माध्यम से लेयर फर्मिंग को विकसित किया गया जिसे विश्व बैंक के सहयोग से वर्ष 2017 में देश में शुरू किया गया।
जोहार प्रोजेक्ट के अंर्तगत झारखंड के गुमला जिले के बसिया ब्लॉक में ऑपरेशनल कोऑपरेटिव या सहकारी समिति के संचालन को एक उदारहण के रूप में स्थापित किया गया। बसिया का लेयर कोऑपरेटिव मॉडल उत्पादक समूहों के नेटवर्क से जुड़े कम्यूनिटी मॉडल पर काम करता है। समुदाय आधारित संस्थागत क्षमताओं के साथ साथ झारखंड राज्य आजीविका संवर्धन सोसायटी और झारखंड महिला स्वावलंबी पोल्ट्री सहकारी संघ लिमिटेड से वित्तीय सहायता प्राप्त करता है। इस समूह से 12 गांवों के 12 उत्पादक समूहों के 300 परिवार के सदस्य शामिल हैं, हर महीने प्रत्येक घर उत्पादित औसतन 8,658 अंडों का संग्रह और विपणन करता है।
लेयर कोऑपरेटिव फेडरेशन मॉडल
जोहार प्रोजेक्ट के तहत उत्पादक संघों को शुरूआती 1,20,000 रुपये की आर्थिक सहायता दी गई। समूह के प्रत्येक सदस्य से 77,200 रुपए की वर्किंग कैपिटल जमा कराई गई। इस व्यवस्था के तहत फेडरेशन सदस्य कर्मचारियों को नियुक्त करते हैं और उन्हें आपूर्ति श्रंखला और अन्य मदों से आमदनी की जिम्मेदारी देते हैं। जबकि इस बीच फेडरेशन के वरिष्ठ सदस्य वर्किंग कैपिटल (कार्यशील पूंजी) को अन्य जरूरी मदों पर खर्च करने पर ध्यान देते हैं, जिससे लागत में अधिक से अधिक कमी की जा सके। इसमें उत्पादक संघों को मेडिसिन, पुलेट्स, वैकसीन और अन्य तरह का तकनीकी सहयोग दिया जाता है। लागत में कटौती के क्रम में कार्यशील पूंजी का इस्तेमाल सबसे पहले उत्पादक संघ लेयर शेड बनाने के लिए करते हैं। इसके बाद सहकारी समितियें के सहयोग से समूह सदस्य कार्यशली पूंजी की जरूरतों को पूरा करने के लिए लेयर फार्मिंग करते हैं। छोटे उत्पादक संघ लेयर फार्मिंग से उत्पादित अंडों को सहकारी समितियों को विक्रय कर देते हैं। सहकारी समितियों का मुख्य काम छोटे उत्पादक संघों से अंडों को एकत्रित करना होता है। लेयर फार्मिंग से जुड़े सभी सदस्य परिवारों से अंडों का संग्रह करने के लिए सहकारी पैटर्न पर काम शुरू किया गया, जिससे सदस्य परिवार की आजीविका में सुधार होने लगा। दक्षता के अनुसार प्रति अंडा उत्पादन शुल्क के आधार पर परिवारों को आय का भुगतान किया गया। इसके अतिरिक्त सहकारी समिति द्वारा सदस्य परिवारों को लाभांश का भी वितरण किया जाता है।
चार सैंपल गांव चुने गए
सहकारिता प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले 15 में से चार गांव को सैंपल विलेज के रूप में चुना गया, जिसमें लोंगा किओनझि टोली, लूंगतू खास, सोलांगबिरा बटरोली और सोंमर बेहरोतली शामिल थे। चयनित प्रत्येक गांव में से 16 घर और कुल 178 घरों को अंडों की लेयर फार्मिंग का काम दिया गया। सात सदस्यीस सहकारिता सदस्य नियमित रूप से संपर्क में रहे, जो समय समय पर जाकर मुआयना करते थे। इस संदर्भ में झारखंड वुमेन सेल्फ सपोटिंग पोल्ट्री कोऑपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड (जेडब्लूएसपीसीएफएल) रांची के कार्यकारी अधिकारी मूल्यांकन की जिम्मेदारी दी गई। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, सहकारिता के इस पैटर्न ने लाभ का कारोबार किया। अंडों की बिक्री और वितरण के आधार पर प्रत्येक घर को 64,069 रुपये का लाभांश प्राप्त हुआ। सबसे अहम है कि लेयर फार्मिंग के इस सहकारिता मॉडल में महिलाओं का योगदान अधिक होता है, अंडों के विपणन से लेकर पैकिंग तक का काम घरेलू महिलाएं ही करती हैं।
लेयर फार्मिंग के कुछ मुख्य बिंदु
-सप्लाई और आपूर्ति चेन को पूरा करने के लिए सहकारिता का यह मॉडल सफल माना गया है। ग्रामीण क्षेत्र में अकसर उत्पादों की आपूर्ति चेन सुचारू रूप से काम नहीं कर पाती है।
-सामूहिक रूप से किए गए कार्य से छोटे स्तर के हाउसहोल्ड भी अर्थव्यवस्था के आए उतार चढ़ाव का फायदा उठाने के लिए सीधे रूप से पात्र हो जाते हैं। जबकि छोटे स्तर के कारोबार लाभांश को भी कम कर देते हैं।
-मूल्यांकन के परिणम बताते हैं कि इस मॉडल से प्रति हाउस होल्ड आमदनी में काफी इजाफा हुआ। 12,296 के मामूली निवेश से मॉडल में शामिल परिवारों को लोन का भुगतान करने के बाद 27,336 रुपये का लाभ हुआ।