देशभर की बीमार व निष्क्रिय सहकारिता समितियों को एक बार फिर गति प्रदान की जाएगी। देशभर में सहकारिता आंदोलन को मजबूती दी जा रही है। ऐसे में राज्यों की बीमार या निष्क्रिय सहकारी समितियों को पीछे कैसे छोड़ा जा सकता है। इस संदर्भ में दि सेंट्रल रजिस्ट्रार ऑफ कोऑपरेटिव सोसाइटीज और सहकारिता मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव रबिंद्र कुमार अग्रवाल की अध्यक्षता में अहम बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में देश की सर्वोच्च सहकारी समितियों के प्रतिनिधि शामिल हुए। बैठक में विभिन्न राज्यों की बीमार और निष्क्रिय सहकारी समितियों के विकास, पुर्नगठन और पुर्नवास के लिए फंड बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। सीआरआरडीएफ (कोऑपरेटिव रिहैब्लिटेशन, रिक्ट्रक्शन और डेवलपमेंट फंड) का उद्देश्य ऐसी ही समितियों के विकास पर ध्यान देना होग, इसमें सफल या लाभांश कमाने वाली सर्वोच्च सहकारी संगठनों की सहायता से फंड जुटाया जाएगा।
बैठक में राष्ट्रीय सहकारी संस्थाओं के प्रबंध निदेशक, मुख्य कार्यकारी अधिकारी तथा अन्य प्रतिनिधि एकत्रित हुए, जिन्होंने प्रस्तावित दिशानिर्देशों पर अपने विचार और सुझाव साझा किए। गहन चर्चा के बाद यह निर्णय लिया गया कि दिशानिर्देशों का अंतिम मसौदा इस महीने के अंत तक तैयार हो जाएगा। चर्चा इस बात पर केंद्रित थी कि एक ऐसा मजबूत ढांचा तैयार किया जाए, ताकि सीआरआरडीएफ वित्तीय अस्थिरता और आधुनिकीकरण की जरूरतों सहित सहकारी समितियों के सामने आने वाली चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान कर सके। सीआरआरडीएफ से सहकारी समितियों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने, उनके विकास को बढ़ावा देने और सहकारी संस्थाओं को आर्थिक विकास और सामाजिक उत्थान के इंजन के रूप में सशक्त बनाने के सरकार के दृष्टिकोण के साथ तालमेल बिठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है।
बैठक में उपस्थित सहकारिता के एक अन्य प्रतिनिधि ने कहा कि बीमार सहकारी समितियां भी नौकरशाही बाधाओं के बिना लाभ उठा सकती हैं। निष्क्रिय सहकारी समितियों को बेहतर करने की इस श्रृंखला की दूसरी बैठक में पहली बार सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार (सीआरसीएस) ने सक्रिय रूप से भाग लिया।
क्या है फंड का प्रावधान
सहकारी पुनर्वास, पुनर्निर्माण और विकास कोष की स्थापना बहु-राज्य सहकारी समितियां (MSCS) अधिनियम की धारा 63A के तहत की गई थी। अधिनियम के अनुसार, लाभ कमाने वाली बहु-राज्य सहकारी समितियां इस कोष में सालाना योगदान कर सकती हैं, जिसकी अधिकतम सीमा एक करोड़ रुपये या पिछले तीन वित्तीय वर्षों के उनके शुद्ध लाभ का एक प्रतिशत है, जो भी कम हो। इस संदर्भ में सहकारिता मंत्रालय द्वारा जल्द ही गाइडलाइन जारी की जाएगी।