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एनसीसीएफ के प्रयासों से किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को हो रहा फायदा

एनसीसीएफ के आने से सिर्फ नैफेड को ही प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ा, बल्कि किसानों को भी इस बात का भरोसा हुआ कि एक संस्था और आ गई है जो किसानों के भले के लिए काम करने को तैयार है। किसी एक संस्था पर अगर किसान निर्भर रहेंगे, तो उनका पूरा भला नहीं हो सकता है। किसानों के पास भी अब विकल्प है।

Published: 11:45am, 24 Jun 2025

भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारी संघ (एनसीसीएफ) राष्ट्रीय स्तर का उपभोक्ता सहकारी संगठन है जो उपभोक्ता सहकारी समितियों के शीर्ष निकाय के रूप में काम करता है। उपभोक्ता सहकारी आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए इसकी स्थापना 1965 में की गई थी। लंबे समय से यह संगठन निष्प्रभावी था। उपभोक्ताओं की जरूरतों को समझते हुए वर्तमान सरकार ने इसे प्रभावी बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इससे न सिर्फ इसका कारोबार बढ़ा है, बल्कि उपभोक्ताओं को महंगाई से राहत दिलाने में भी इसकी भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। इस सहकारी संगठन को नई ऊंचाई पर ले जाने में एनसीसीएफ के युवा अध्यक्ष विशाल सिंह का बड़ा योगदान है। संगठन के कारोबारी विस्तार सहित अन्य मुद्दों पर एसपी सिंह और अभिषेक राजा ने उनसे लंबी  बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंशः 

एनसीसीएफ आज जिस कारोबारी मुकाम पर पहुंचा है उसके पीछे क्या कारण है? 

मैं वर्ष 2007 से ही सहकारिता क्षेत्र से जुड़ा हुआ हूं। वर्ष 2014 से पहले और उसके बाद देश के सहकारी आंदोलन में जमीन और आसमान का फर्क दिख रहा है, खासकर वर्ष 2021 में अलग सहकारिता मंत्रालय बनने के बाद इसमें काफी मजबूती आई है। मैं सितंबर 2022 में चेयरमैन चुना गया था। उस समय एनसीसीएफ का टर्नओवर सालाना 21-23 सौ करोड़ रुपये के आसपास और टैक्स पूर्व मुनाफा 30-32 करोड़ रुपये रहता था। उसके बाद से पौने तीन साल में एनसीसीएफ का टर्नओवर करीब चार गुना बढ़कर 8,200 करोड़ रुपये और टैक्स पूर्व मुनाफा 230 करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच चुका है।

यह मेरे लिए, हमारी संस्था और पूरे स्टाफ के लिए गर्व का विषय है कि एनसीसीएफ का भविष्य उज्ज्वल है। इसे इस स्थिति में पहुंचाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह का सबसे बड़ा योगदान रहा है। तत्कालीन खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री पीयूष गोयल का भी मैं हृदय से धन्यवाद देना चाहता हूं क्योंकि उन्होंने मेरे अध्यक्ष बनने के पहले दिन से ही मेरा हाथ पकड़ कर  एनसीसीएफ को चलाना सिखाया। आज एनसीसीएफ जहां पर भी है उसमें उनका योगदान काफी महत्वपूर्ण है। 

संगठन ने किस क्षेत्र में विशेष पहल की जिससे कारोबारी दायरा बढ़ा?

मैं जब चेयरमैन बना तब एनसीसीएफ अपने सप्लायर्स पर बहुत ज्यादा निर्भर था। संगठन का कारोबारी विस्तार करने के लिए मैंने नैफेड को आदर्श मानकर उन सभी क्षेत्रों में कारोबार करने का प्रस्ताव तैयार किया जिन क्षेत्रों में नैफेड काम कर रहा है। नैफेड कृषि मंत्रालय के अधीन है और एनसीसीएफ उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के अधीन। संगठन के तौर पर भले ही दोनों अलग-अलग हैं लेकिन दोनों का काम और सदस्यता आधार बहुत हद तक समान है। मेरा मानना था कि जिस तरह से नैफेड प्राइस सपोर्ट स्कीम (पीएसएस) और प्राइस स्टेबलाइजेशन फंड (पीएसएफ) के तहत किसानों से खाद्य उत्पादों की खरीद करती है, उसी तरह एनसीसीएफ को भी किसानों से सीधी खरीद कर खाद्य उत्पादों को उपभोक्ताओं तक पहुंचाना चाहिए।

सरकार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर एनसीसीएफ को इसकी अनुमति भी दी और प्याज, टमाटर, दलहन, तिलहन आदि फसलों की थोक एवं खुदरा खरीद-बिक्री की नोडल एजेंसी बना दिया। मुझे अब यह बताने में बड़ी खुशी है कि हमारा 8,200 करोड़ रुपये का जो टर्नओवर है उसमें से एक बहुत बड़ा हिस्सा पीएसएस और पीएसएफ खरीदी से आता है।

किसानों से खाद्य उत्पादों की सीधी खरीद कर उपभोक्ताओं तक पहुंचाने का बड़ा आधार कैसे तैयार किया गया? 

देखिए, आज हम नैफेड की तरह दलहन और तिलहन फसलों की खरीद की नोडल एजेंसी हैं। हमें राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं खरीद का लक्ष्य दिया गया। बफर स्टॉक के लिए जितना प्याज नैफेड खरीदती है, उतना एनसीसीएफ भी खरीदती है। जब हमने प्याज खरीद शुरू किया था तो पहले साल में नैफेड से एक लाख टन ज्यादा प्याज खरीद कर उन्हें उपभोक्ता मंडियों तक पहुंचाया जिससे पूरे देश में कीमतों को बहुत हद तक नियंत्रित करने में सफलता मिली। पिछले साल हमने रेलवे की मदद से पहली बार कांदा एक्सप्रेस शुरू की था। हमने नासिक से देश के विभिन्न हिस्सों में ट्रेन के जरिये प्याज की आपूर्ति की। वह एक नया अनुभव था।

एनसीसीएफ के आने से सिर्फ नैफेड को ही प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ा, बल्कि किसानों को भी इस बात का भरोसा हुआ कि एक संस्था और आ गई है जो किसानों के भले के लिए काम करने को तैयार है। किसी एक संस्था पर अगर किसान निर्भर रहेंगे, तो उनका पूरा भला नहीं हो सकता है। किसानों के पास भी अब विकल्प है। इसी तरह, जब देश के कई शहरों में टमाटर की कीमत 200 रुपये किलो तक पहुंच गई थी, तो एनसीसीएफ ने केंद्रीय भंडार, सफल स्टोर और मोबाइल वैन के माध्यम से खुदरा बाजार से काफी कम कीमत पर टमाटर की बिक्री कर कीमतों को नियंत्रित किया जिससे उभोक्ताओं को महंगाई से राहत मिली।  

सहकारी क्षेत्र में युवाओं की भारी कमी है। आप युवा हैं, तो युवाओं को आगे बढ़ाने के लिए एनसीसीएफ क्या कर रही है

सहकार से समृद्धि का संकल्प युवाओं के बगैर पूरा होना मुश्किल है। युवाओं को सहकारी क्षेत्र से जोड़ने के लिए देश में पहली बार त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई है। इससे सहकारी शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा। नए-नए कोर्स शुरू होंगे जिससे सहकारी क्षेत्र में युवाओं को करियर बनाने का मौका मिलेगा। उनके लिए इस क्षेत्र में नए-नए अवसर पैदा होंगे। युवाओं को सहकारी क्षेत्र की कार्य पद्धति सिखाने और ट्रेनिंग देने में इस यूनिवर्सिटी की बड़ी भूमिका होने वाली है। अभी एनसीसीटी (राष्ट्रीय सहकारी प्रशिक्षण परिषद) के जितने भी प्रोग्राम चल रहे हैं, वे उसी तरीके से हैं। सहकारी यूनिवर्सिटी की स्थापना से इसका दायरा और बढ़ेगा।

राज्यों के विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में भी कृषि और सहकारिता को धीरे-धीरे शामिल किया जा रहा है। इससे भी युवाओं को सहकारिता से जोड़ने में मदद मिलेगी। सहकारी भावना से प्रेरित युवा जब शिक्षण-प्रशिक्षण समाप्त कर लेंगे तो राष्ट्रीय और राज्य स्तर की सहकारी संस्थाएं उन्हें नौकरी में प्राथमिकता देंगी। दूसरा, पैक्स की राजनीति की बात करें, तो वर्तमान में इसमें बहुत जल्दी-जल्दी बदलाव हो रहा है। जैसे, अगर आप सिर्फ बिहार का उदाहरण लें तो वहां करीब आठ हजार पैक्स हैं। पहले इनसे जुड़े लोगों की औसत उम्र 50-55 साल होती थी। मगर जब से पैक्स को मजबूत बनाने के लिए उसकी कारोबारी गतिविधियों का विस्तार किया गया है, इससे नौजवान पीढ़ी जुड़ रही है। एनसीसीएफ भी युवाओं को सहकारिता से जोड़ने को लेकर प्रतिबद्ध है।

Yuvasahkar Desk

यह लेख "Yuvasahakar Desk" द्वारा लिखा गया है

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