उषा रानी कुशीनगर के दूदही विकासखंड, ग्राम धोकरहा (कतरा) की रहने वाली हैं। उत्तर प्रदेश के आखिरी छोर पर स्थित भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर की उषा एक बेहद निम्न परिवार से आती है, पति बेरोजगार, और सर ढकने को छत नहीं। परिवार की दुर्बल आर्थिक स्थिति की वजह से अजीविका चलाना बहुत मुश्किल हो रहा था। इसी बीच उषा इफको कार्यकताओं की बदौलत राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ी, और उषा को प्रधानमंत्री नमो ड्रोन दीदी से जोड़ने की कार्ययोजना तैयार की गई। प्रशिक्षण के लिए परिवार को मनाना इतना आसान भी नहीं था, लेकिन उषा इस प्रशिक्षण के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार कर चुकी थी, इसके बाद शुरू होती है उसकी कुशीनगर से फुलपुर कारडेट प्रयागराज पहुंचने की जद्दोजहद जिसका उषा खुद अकेले ही सामाना करती है।
परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए इफको कर्मचारियों की टीम नमो ड्रोन दीदी प्रशिक्षण के लिए उषा को तैयार कर लेती है। लेकिन ऐन समय पर पति उसे प्रशिक्षण के लिए फुलपुर कारडेट प्रयागराज भेजने से मना कर देता है्, नमो ड्रोन दीदी का प्रशिक्षण शुरू होने में मात्र 36 घंटे का समय शेष रह जाता है। इफको कर्मचारियों की उषा से दूदही ब्लॉक मुख्यालय पर आजीविका मिशन की बैठक में होती है, उषा को नमो ड्रोन दीदी योजना प्रशिक्षण योजना के बारे में पता चलता है तो वह प्रशिक्षण लेने का प्रण ले लेती है। अधिकारियों के सामने ही उषा का चयन भी हो जाता है। अगले दिन प्रशिक्षण शुरू होना था और उषा के परिवार वालों ने उसे प्रशिक्षण लेने से मना कर दिया। लेकिन उसने किसी की एक नहीं सुनी, मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर घर से अपने शैक्षणिक प्रमाणपत्र लिए और घर से अकेले ही पहले पड़रौना पहुंचती है और फिर पांच बजे की बस से पड़रौना से गोरखपुर पहुंच जाती है। दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड में उषा रात में एक बजे गोरखपुर पहुंचती है और बस स्टॉप से ही प्रयागराज के लिए बस पकड़ती है। इफको कर्मचारी लगातार उषा से संपर्क बनाए रखते हैं, उषा को फुलपुर कारडेट पर सुरक्षित उतारने के लिए कर्मचारी बस कंडक्टर से बात भी करते हैं।
इस दौरान कुशीनगर की एफओ द्वारा कारडेट फूलपूर ट्रेनिंग सेंटर के प्रधानाचार्या हरिश्चन्द्र को यह सूचना दी जाती है कि उषा नाम की एक महिला बस से अकेले जा रही है देर रात उसके फुलपूर पहुंचने पर उचित व्यवस्था की जाए। ट्रेनिंग सेंटर के गेट पर तैनात कर्मचारियों को भी इसकी सूचना दे दी जाती है जिससे उषा को सेंटर पर पहुंचने के बाद किसी तरह की परेशानी नहीं हो। जाड़े की घनेरी धुंध भरी सुबह में उषा फुलपूर कारडेट पहुंच जाती है। यहां उसकी मुलाकात इफको के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से होती है और इसके बाद उषा देवी के प्रशिक्षण की औपचारिक शुरूआत हो जाती है।
प्रशिक्षण पूरा होने पर उत्साहवर्धन हुआ
इफको ड्रोन दीदी का प्रशिक्षण पूरा होने के बाद अंतिम दिन सभी प्रशिक्षुओं को इफको के प्रबंध निदेशक डॉ यूएस अवस्थी द्वारा संबोधित किया जाता है। प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली सभी महिलाओं की कोई न कोई संघर्ष भरी कहानी होती है लेकिन उषा जब बोलती है तो सभी उसके जज्बे को सलाम करते हैं। उषा कहती हैं जैसे जैसे ड्रोन ऊपर उड़ता है वैसे वैसे हौसलों को भी पंख लगने लगे। प्रशिक्षण लेकर जब उषा गांव पहुंचती है तो सभी उसका आदर सम्मान करते हैं, और उषा इफको की तारीफ करते नहीं थकती। समाज के अंतिम पायदान पर खड़ी महिला को ड्रोन दीदी प्रशिक्षण देकर इफको ने महिला को सम्मान से जीने का हक दिया। प्रधानमंत्री नमो ड्रोन दीदी योजना के तहत देशभर में उषा जैसे एक हजार ड्रोन दीदी को प्रशिक्षण द्वारा ड्रोन पायलट के रूप में तैयार किया जाएगा, जिससे वह प्रतिमाह एक लाख रुपए से अधिक तक कमा सकेंगी। प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उषा सहित अन्य नमो ड्रोन दीदी द्वारा इफको किसान ड्रोन तथा वाहन भी दिया गया।