सहकारी समितियों को दी जाने सुविधाओं का दायरा बढ़ रहा है। देश को 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनाने में सहकारी समितियों के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सहकारी समितियां रोजगार का भी एक बेहतर माध्यम बनकर उभर रही हैं। वर्ष 2021 में देश में पृथक सहकारिता मंत्रालय के गठन के बाद से ही सहकारी गतिविधियों में तेजी आ गई। सहकारी संस्थाओं को टैक्स में छूट मिलना, प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी समितियों (पैक्स) को व्यावसायिक गतिविधियों में शामिल करना और कृषि विकास में कृषि उत्पादक संघ की महत्वपूर्ण भूमिका ने सहकारिता में लोगों का विश्वास को बढ़ाया है।
सामूहिकता के साथ सहकार की शुरुआत होती है, जिसका गठन कोई भी कर सकता है। छोटी तथा एक समान पूंजी के साथ शुरू किए की गई सहकारी समितियों में सभी मालिक होते है और सहकारी समिति के विकास में सभी की एक समान जवाबदेही भी होती है। इसलिए इस बात की समझ होना बहुत जरूरी है कि सहकारी समितियों का संस्थागत ढांचा किस तरह का होता है सदस्यों के क्या अधिकार होते हैं?
ऐसे होता है सहकारी समितियों का पंजीकरण
सहकारी समितियों का पंजीकरण और गठन दो तरीके से किया जा सकता है
– सोसायटी के गठन की जरूरत के आधार पर समूह या समुदाय के लोग खुद ही संबंधित एजेंसी, रजिस्ट्रार ऑफिस या फिर जिला सहकारी यूनियन से संपर्क कर सकते हैं।
– ऐसी स्थिति जहां पर किसी तरह की सहकारी समिति के पंजीकरण की जरूरत हो, वहां सहकारिता विभाग या सहकारिता राज्य एजेंसी लोगों को सहकारी समिति के गठन के लिए प्रेरित करती हैं और उन्हे पंजीकरण के दिशा निर्देश जरूरी कागज आदि की जानकारी देते हैं।
पंजीकरण के विभिन्न चरण
पहला चरण- समाज की व्यवहार कुशलता का आकलन- समूह सदस्यों, कार्य करने वाल एजेंसी या संगठन से जुड़े सभी लोगों का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य है कि उन्हें सहकारी समिति से संबंधित निम्नांकित दिशा निर्देशों की जानकारी हो-
– जिस भी उद्देश्य से सहकारी समिति का गठन किया जा रहा हो या फिर किया जाना है उससे संबंधित सभी भौगौलिक, सामाजिक आर्थिक, कृषि संबंधी जानकारी पूरी कर ली जाए।
– सहकारी समिति के कार्यक्षेत्र के आंकड़े उपलब्ध कर लिए जाएं।
– क्षेत्र में विभिन्न तरह की सहकारी समिति या किसी भी संगठन की गतिविधि चल रही हो तो उसका पता होना चाहिए।
– क्षेत्र के शैक्षणिक व प्रशिक्षण केंद्रों की जानकारी होना।
– एक कुशल नेतृत्व का उपलब्ध होना।
– प्राकृतिक आपदा प्रभावित क्षेत्रों का पता होना।
– समाज की संभावित व्यावहारिकता।
दूसरा चरण– तीन प्रमुख सिद्धांत, जिसे यदि उचित माना जाए
पहला, दौरे या निरीक्षण के दौरान संगठनकर्ता को
– प्रभावकारी या फिर नेतृत्व की क्षमता वाले लोगों की पहचान करने की कोशिश करनी चाहिए।
– समिति के गठन से पहले ऐसे लोगों को संपर्क करें और समिति के गठन की योजना के बारे में उन्हें भी बताएं।
– सहकारी समिति के गठन संबंधी बायलॉज या दिशा निर्देश की काफी नेतृत्व करने वाले व्यक्ति के पास भी छोड़ दें जिससे वह अन्य संभावित सदस्यों या गांव के लोगों से इस विषय पर बात कर सकें।
– गांव या ब्लॉक के अन्य लोगों से भी मुलाकात की जा सकती है, जिससे उन्हें सहकारी समिति के फायदों के बारे में बताया जा सके।
– गांव या संबंधित क्षेत्र में एक औपचारिक बैठक का आयोजन करें, जहां प्रमोटर, लीडर या अधिकारी सहकारी समिति के उद्देश्य और उसकी गतिविधियों के बारे में बता सकें, इसके साथ ही सहकारी समिति से संबंधी गांव वालों के प्रश्नों का जवाब भी दिया जा सके।
दूसरा, औपचारिक मुलाकात में समिति का गठन करने वाले व्यक्ति अपनी बात और गठन के उद्देश्य आदि जानकारी को दोहरा सकते हैं, इन सभी बैठकों की एक सूची बनाई जानी चाहिए। इसके बाद समूह या समिति किन इच्छुक या प्रभावशाली लोगों को शामिल करना है इसका चयन किया जाता है जिसे प्री रजिस्ट्रेशन मीटिंग भी कहा जाता है। इसी दौरान सहकारी समिति के गठन की पहल करने वाला व्यक्ति सहकारी समिति के गठन में आने वाले खर्च की जानकारी सदस्यों से साथ साझा कर सकता है और उनकी इच्छानुसार भागीदार बनने को कह सकता है। जिससे समिति के गठन में होने वाले खर्च का भुगतान किया जा सके।
तीसरा और अंतिम, अहम मुलाकात
– पहली और दूसरी बैठक में उपस्थित सदस्यों की हाजिरी या उपस्थिति दर्ज करना।
– प्री पंजीकरण से पहले मीटिंग आयोजित करना जिसमें समिति के सदस्य बनने योग्य व्यक्तियों को ही शामिल किया जाए।
– विस्तृत रूप से दोबारा प्रस्तावित सहकारी समिति के गठन के दिशा निर्देश समझाइए।
– इसके बाद पंजीकरण के लिए जरूरी फॉर्म को भरे और इसे सहकारिता एक्ट या फिर राज्य सहकारी या संबंधित एजेंसी को भेज दें।
– कुछ राज्यों में रजिस्ट्रार को सदस्यों की उचित जानकारी देना जरूरी होता है, इसलिए सभी प्रतिनिधियों का बैठक में उपस्थित होना जरूरी होता है।
– इन सभी दस्तावेजों को तैयार करने के साथ ही एक कार्यवाही सूची तैयार करें।
अंतरिम बोर्ड का चयन
– सोसायटी के गठन और इसके पंजीकरण के लिए आरसीएस (रजिस्ट्रार कोऑपरेटिव सोसाइटी) से अनुरोध।
– दिशा निर्देशों का पालन करें।
– अंतरिम बोर्ड जिसमें निदेशक, सचिव और कोषाध्यक्ष आदि का चुनाव।
– समिति के लिए अनुमोदन या प्रमोटर सदस्य, शेयर पूंजी की हिस्सेदारी अनुसूचित या कोऑपरेटिव बैंक में जमा कराना।
– एक बैंक खाते का संचालन शुरू करना।
– उपनियमों में कटिंग या ओवर राइटिंग पर हस्ताक्षर करने के लिए व्यक्तियों का नाम देना।
– अधिनियम, उपनियमों या रजिस्ट्रार द्वारा अपेक्षित संकल्प।
– पूरी कार्यवाही को चेयरमैन, सचिव या प्रमोटर द्वारा हस्ताक्षर।
जरूरी दस्तावेज
– सोसायटी या रजिस्ट्रार के सामने प्रस्तुत किया जाने वाला प्रार्थना पत्र, दिशा निर्देश के अनुसार भरा गया प्रस्तावित फार्म, इसके साथ ही सहकारी समिति पंजीकरण संबंधी उपनियमों का बायलॉज जैसा कि राज्यों के नियमों में बताया गया हो।
– समिति के दो या तीन प्रमोटर्स सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर की गई उपनियमों की तीन से चार प्रतियां, जिनका निर्धारित शुल्क भी हो सकता है।
– उपनियम सहकारी कानून, नियम, राज्य नीति आदि के प्रावधानों के उल्लंघन में नहीं हैं।
– शेयर के पैसे जमा करने के संबंध में बैंक से प्रमाण पत्र।
– शेयर अंशदान आदि की राशि के साथ सभी सदस्यों की सूची।