देश की पहला कोऑपरेटिव यूनिवर्सिटी बनाने को संसद की मंजूरी मिल गई है। इसके पीछे क्या सोच है और इससे कोऑपरेटिव सेक्टर में क्या नया होने वाला है?
देश में इस समय 8.40 लाख सहकारी समितियां हैं जिनके 30 करोड़ सदस्य हैं और उनमें 40 लाख से ज्यादा कर्मचारी काम कर रहे हैं। देश के सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पहली बार अलग सहकारिता मंत्रालय का गठन करने का निर्णय लिया जिसकी जिम्मेदारी श्री अमित शाह को दी गई। सहकारिता मंत्रालय ने अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल में सहकारिता क्षेत्र में व्यापक सुधार के लिए बहुत सारी पहल की हैं। यूनिवर्सिटी बनाने की बात अमित भाई के दिमाग में आई। 2047 तक विकसित भारत बनाने के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के लक्ष्य को हासिल करने के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सक्षम बनाना होगा और इसके लिए सहकारिता एक बड़ा माध्यम है। देश में सहकारिता का इतना बड़ा स्वरूप है, तो उसका एक इंस्टीट्यूशनल फ्रेमवर्क भी होना चाहिए। डिप्लोमा, डिग्री, ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन आदि अलग-अलग तरह के कोर्स के माध्यम से स्किल्ड मैनपावर तैयार किए जाने चाहिए। एक अनुमान है कि सहकारिता आंदोलन को और मजबूत करने के लिए अगले कुछ वर्षों में सहकारिता क्षेत्र को 17 लाख स्किल्ड मैनपावर की जरूरत पड़ेगी। इसे ध्यान में रखते हुए यही सोच थी कि अगर हमें और आगे जाना है, तो भविष्य की मांग को पूरा करने की तैयारी आज से ही करनी होगी। चाहे वह टेक्नोलॉजी हो, शिक्षण हो, प्रशिक्षण हो, सभी में काम करने के लिए ही यूनिवर्सिटी का प्रावधान किया गया। त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी बिल, 2025 को संसद के दोनों सदनों ने पारित कर दिया है जो सहकारिता क्षेत्र के लिए बड़ी उपलब्धि है।
त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी सेंट्रल यूनिवर्सिटी होगी, विभिन्न राज्यों के कोऑपरेटिव शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थान इससे कैसे जुड़ेंगे?
यह यूनिवर्सिटी हब और स्कोप मॉडल पर पूरे देश के लिए काम करेगी। इस मॉडल के माध्यम से किसी भी राज्य में सहकारिता से जुड़े शैक्षणिक संस्थान खोले जा सकते हैं, वहां के शिक्षण-प्रशिक्षण इंस्टीट्यूट इससे एफिलिएशन ले सकते हैं। इसके अलावा, इसकी खासियत यह भी होगी कि जिस राज्य में इंस्टीट्यूट होगा वहां की प्रांतीय भाषा में पढ़ाई की सुविधा उपलब्ध होगी। पूरे देश के सहकारिता क्षेत्र में किसी भी पद के लिए, चाहे पैक्स का सचिव हो या अपैक्स बैंक के एमडी हों, सभी तरह के पद के लिए युवाओं को तैयार करना है, तो उसके लिए अलग-अलग कोर्स एवं डिग्री हों, इसका प्रावधान इसमें किया गया है। साथ ही, वर्तमान में कोऑपरेटिव क्षेत्र में काम कर रहे पैक्स के सचिव से लेकर अपैक्स बैंक के एमडी तक सभी को ट्रेनिंग की आवश्यकता है। इस यूनिवर्सिटी के माध्यम से सभी के लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था होगी। सहकारिता क्षेत्र बहुत विशाल है और यह समाज के सभी अंगों से जुड़ा है। सभी को अच्छी ट्रेनिंग देकर सहकारी आंदोलन को और मजबूत कर सकते हैं। प्रधानमंत्री की सहकार से समृद्धि की जो परिकल्पना है उसे साकार करने के लिए यूनिवर्सिटी के माध्यम से और भी बहुत कुछ कर सकते हैं। स्किल्ड मैनपावर का सृजन करने के अलावा कोऑपरेटिव के स्पिरिट को बढ़ावा देने में भी हम सक्षम होंगे। इसके बहुत सारे आयाम हैं जिसे यूनिवर्सिटी के माध्यम से पूरा कर पाएंगे।
सहकारिता क्षेत्र में युवाओं और महिलाओं के लिए कितनी संभावनाएं हैं, यूनिवर्सिटी बनाने के अलावा उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए और क्या किया जा रहा है?
मुझे लगता है कि यूनिवर्सिटी ही एक ऐसा माध्यम है जो युवाओं को कोऑपरेटिव से जोड़ सकता है। आज अगर आप देखें तो किसी भी क्षेत्र में नौकरी पाने या बिजनेस खड़ा करने के लिए कोई न कोई कोर्स उपलब्ध है और उनकी शिक्षा दी जा रही है। इंजीनियरिंग है, मेडिकल है, मैनेजमेंट है या अन्य कोई भी क्षेत्र, उनके लिए कॉलेज एवं इंस्टीट्यूट हैं। युवाओं को पता है कि किन संस्थानों से पढ़ने के बाद उन्हें किन क्षेत्रों में काम करने का मौका मिलेगा। ऐसी कोई व्यवस्था कोऑपरेटिव में नहीं थी। यूनिवर्सिटी के माध्यम से देश की कोऑपरेटिव स्पिरिट को बढ़ावा मिलेगा। युवाओं की लीडरशिप तैयार के लिए एक प्लेटफॉर्म मिलेगा। यही एक नींव है जिससे जुड़ने के बाद वे इस क्षेत्र में कुछ न कुछ काम कर सकेंगे। इससे उनका भविष्य बहुत सुरक्षित हो जाएगा।
इस यूनिवर्सिटी में कब से पढ़ाई शुरू हो पाएगी?
हमारा प्रयास है कि जल्द से जल्द यहां पढ़ाई और प्रशिक्षण शुरू हो जाए। आणंद के इरमा में सब स्ट्रक्चर तैयार है। वहां पर फैकेल्टी भी तैयार हैं और गैर शैक्षणिक कर्मचारी भी तैयार हैं। बहुत जल्द हम यूनिवर्सिटी शुरू कर सकते हैं और उसके बाद पूरे देश में उसका विस्तार भी हो जाएगा।
कोऑपरेटिव सेक्टर में भ्रष्टाचार का एक लंबा इतिहास रहा है, कई बैंकों में घोटाले हुए और आज भी हो रहे हैं जिससे लोगों का भरोसा इन पर से उठ गया। इन बैंकों को कैसे मजबूत करेंगे और लोगों का भरोसा बहाल करने के लिए क्या कर रहे हैं?
सहकारिता के मूल स्वरूप को अगर देखें तो यह पूरा क्षेत्र लोगों के विश्वास पर चलता है। जितना आप लोगों का विश्वास प्राप्त करेंगे, सहकारिता क्षेत्र को ज्यादा ताकत दे सकते हैं। लोगों का विश्वास प्राप्त करने के लिए कोऑपरेटिव सोसायटी को अच्छी तरह से चलाना चाहिए। मुझे लगता है कि यूनिवर्सिटी के माध्यम से जो स्किल्ड मैनपावर आएगा उससे व्यापक सुधार होगा। आज कई सोसायटी में कार्य क्षमता की कमी है, प्रबंधन में अनियमितता है, टेक्नोलॉजी का उपयोग कम है। ऐसी बहुत सी दिक्कतें हैं जिससे उनके कार्य में पारदर्शिता नहीं है। इसका समाधान हमने यह निकाला है कि सभी पैक्स का कंप्युटराइजेशन किया जा रहा है। मुझे लगता है कि इससे भ्रष्टाचार का मुद्दा खत्म हो जाएगा क्योंकि आगे टेक्नोलॉजी के माध्यम से ही काम करना है जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी। टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से भ्रष्टाचार का मामला ही नहीं रहेगा। यह सब होने के बाद सहकारिता क्षेत्र को अच्छी दिशा मिलेगी। दूसरा, बैंकों के बारे में जो सवाल आपने पूछा, अभी नाबार्ड के माध्यम से स्टेट कोऑपरेटिव बैंक, डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक की तो मदद की जाती है, लेकिन अर्बन कोऑपरेटिव बैंक की मदद की कोई संस्था ही नहीं थी। अमित भाई ने इनकी मदद के लिए एक अंब्रैला संगठन राष्ट्रीय शहरी सहकारी वित्त विकास निगम (एनयूसीडीएफसी) का गठन किया जो सहकारी बैंकों के लिए एक नियामक की तरह काम करेगा। यह न सिर्फ उनकी आर्थिक रूप से सहायता करेगा, बल्कि उन्हें तकनीकी एवं बुनियादी सहायता देगा और उनकी निगरानी भी करेगा। इससे सहकारी बैंकों को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी और इस क्षेत्र को काफी फायदा मिलेगा। सहकारी बैंकों में सुधार के लिए सहकारिता मंत्रालय ने और भी कई पहलें की हैं और उन्हें सामान्य बैंकों की तरह सेवाएं देने लायक बनाने के लिए कई नए रास्ते खोले हैं। ये कदम लोगों का टूटा भरोसा बहाल करने में बहुत ज्यादा मददगार साबित होंगे।
अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के मौके पर क्या-क्या किया जा रहा है?
पूरे देश में अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष मनाने के लिए सहकारिता मंत्रालय ने साल भर की एक रूपरेखा तैयार की है ताकि सहकारिता को लेकर जागरूकता बढ़े और इस आंदोलन को मजबूती मिले। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2025 को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष घोषित किया है और इसका आधिकारिक उद्घाटन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में किया। यह भारतीय सहकारिता के लिए बड़े सम्मान की बात है। अलग-अलग तरह से इस वर्ष को मनाया जा रहा है। सहकारी आंदोलन को हम किस-किस माध्यम से और सक्षम एवं समृद्ध बना सकते हैं, इस पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। सहकारिता का प्रचार-प्रसार आखरी व्यक्ति तक पहुंचाने का काम किया जा रहा है। इसके लिए देश की सभी 8.40 लाख सहकारी समितियों को साल भर कोई न कोई कार्यक्रम करने को कहा गया है ताकि जागरूकता बढ़े और ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ सकें। इसके माध्यम से सहकारी आंदोलन को एक नई दिशा और ताकत मिलेगी। भारतीय सहकारिता को और सशक्त बनाने का यह अच्छा अवसर है।