सहकारिता क्षेत्र में कुशल पेशेवरों की मांग को पूरा करने, सहकारी शिक्षण-प्रशिक्षण को बढ़ावा देने के लिए देश में पहली बार सहकारी यूनिवर्सिटी की स्थापना की जा रही है। इस संबंध में संसद में पेश त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी बिल, 2025 लोकसभा में ध्वनिमत से पारित हो गया। अब इसे राज्यसभा से पारित कराया जाएगा जिसके बाद यूनिवर्सिटी बनाने का रास्ता साफ हो जाएगा। गुजरात के आणंद स्थित ग्रामीण प्रबंधन संस्थान (इरमा) के परिसर में देश का पहला सहकारिता विश्वविद्यालय बनाने का प्रावधान बिल में किया गया है।
केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने बुधवार को लोकसभा में त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी विधेयक, 2025 पर चर्चा का जवाब दिया जिसके बाद सदन ने विधेयक पारित कर दिया। चर्चा का जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा कि त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने के साथ सहकारिता क्षेत्र में नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देगा। इस विश्वविद्यालय से प्रति वर्ष 8 लाख लोग प्रशिक्षित। इससे पूरे देश को सहकारिता की भावना और आधुनिक शिक्षा से युक्त युवा सहकारी नेतृत्व मिलेगा।
अमित शाह ने कहा कि कोऑपरेटिव क्षेत्र के विकास और विस्तार को देखते हुए प्रशिक्षित मानव संसाधन की जरूरत है। त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी इस जरूरत को पूरा करने का काम करेगी। सहकारी यूनिवर्सिटी बनने के बाद इसके डिप्लोमा और डिग्री धारकों को नौकरी मिलेगी। इस यूनिवर्सिटी से हम डोमेस्टिक के साथ ग्लोबल वैल्यू चैन में भी बड़ा योगदान करेंगे। न्यू एज कोऑपरेटिव कल्चर भी इस यूनिवर्सिटी से शुरू होगा। उन्होंने कहा कि देशभर में हजारों की संख्या में सहकारी शिक्षण प्रशिक्षण संस्थान फैले हुए हैं, मगर किसी का कॉमन कोर्स नहीं है। हमने यूनिवर्सिटी बनने से पहले ही कोऑपरेटिव क्षेत्र की जरूरत को ध्यान में रख कर कोर्स डिजाइन का काम कर दिया है। उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी में डिग्री, डिप्लोमा कोर्स भी होंगे और पीएचडी की डिग्री भी दी जाएगी। साथ ही सहकारिता के क्षेत्र में काम कर रहे मौजूदा कर्मचारियों के लिए एक सप्ताह का सर्टिफिकेट कोर्स भी होगा।
अमित शाह ने कहा कि इस सहकारी विश्वविद्यालय का नाम त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय रखने का निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि त्रिभुवन दास पटेल भारत में सहकारिता की नींव डालने वाले व्यक्तियों में से एक थे। आज जिस गुजरात राज्य सहकारी दुग्ध विपणन संघ (GCMMF) को हम सब अमूल के नाम से जानते हैं, वह त्रिभुवन दास पटेल के विचार की ही देन है।
अपने जवाब में सहकारिता मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहकार से समृद्ध भारत की जो नींव रख रहे हैं, उसमें सहकारी विश्वविद्यालय महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। मोदी सरकार में “सहकारिता में सहकार” का सिद्धांत जमीन पर उतारा जा रहा है। जल्द ही सहकारी संस्थाएं भी टैक्सी और बीमा सर्विस दे सकेंगी।
उन्होंने कहा कि सहकारिता ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जो करोड़ों लोगों को स्वरोजगार के माध्यम से देश के विकास के साथ भी जोड़ता है और उनके सम्मान की भी रक्षा करता है। जब हर पंचायत में PACS पहुंच जायेंगे तब संतुलित रूप से देश का कोऑपरेटिव आंदोलन खड़ा होगा। हर गांव में कोई न कोई ऐसी इकाई है जो सहकारिता के माध्यम से कृषि विकास, ग्रामीण विकास और स्वरोजगार के काम में जुटी हुई है और देश के विकास में योगदान करती है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के पारित होने के बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी, स्वरोजगार और छोटी उद्यमिता का विकास होगा, सामाजिक समावेशिता बढ़ेगी और नवाचार तथा अनुसंधान में कई नए मानक स्थापित करने के अवसर भी मिलेंगे।