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सहकारी शिक्षण-प्रशिक्षण पर आएगी नई स्कीम

सहकारी शिक्षा को बढ़ावा देने और सहकारी क्षेत्र में कुशल पेशेवरों की कमी को पूरा करने के लिए देश में पहली बार सहकारिता विश्वविद्यालय का गठन किया जा रहा है। हालांकि, नेशनल काउंसिल फॉर कोऑपरेटिव ट्रेनिंग (एनसीसीटी) के नेतृत्व में अभी सहकारी क्षेत्र में शिक्षण-प्रशिक्षण किया जा रहा है मगर आने वाले समय की मांग को देखते हुए यह पर्याप्त नहीं है। केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय और एनसीसीटी के डायरेक्टर कपिल मीणा से एसपी सिंह और अभिषेक राजा ने शिक्षण-प्रशिक्षण से जुड़े तमाम मुद्दों और मंत्रालय के विभिन्न कदमों पर बात की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंशः 

Published: 08:00am, 25 Mar 2025

कोऑपरेटिव के शिक्षण-प्रशिक्षण में एनसीसीटी की क्या भूमिका है?

सहकारी शिक्षण-प्रशिक्षण में एनसीसीटी की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। इसका मुख्यालय दिल्ली में है। यह अपनी राज्य स्तरीय प्रशिक्षण संस्थाओं के द्वारा काम करता है। इसके नेटवर्क में 20 संस्थान हैं जो राज्यों की राजधानियों में हैं। इसमें दो तरह के संस्थान हैं। एक है रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ कोऑपरेटिव मैनेजमेंट (आरआईसीएम), जो एक से अधिक राज्यों को देखते हैं। इस तरह से 5  आरआईसीएम हैं। दूसरा है आईसीएम (इंस्टीट्यूट ऑफ कोपरेटिव मैनेजमेंट) जो 14 राज्यों में है। यह मूलतः उसी राज्य में शिक्षण-प्रशिक्षण का काम देखता है जहां स्थित है। इनमें हायर डिप्लोमा इन कोऑपरेटिव मैनेजमेंट (एचडीसीएम) का एक फ्लैगशिप कोर्स होता है जो नौ महीने का है। इसमें विस्तार से कोऑपरेटिव सेक्टर की पूरी ट्रेनिंग दी जाती। कई राज्यों के कोऑपरेटिव डिपार्टमेंट में कोऑपरेटिव इंस्पेक्टर या कोऑपरेटिव ऑफिसर के लिए जो भर्ती होती है उनके लिए यह कोर्स अनिवार्य है। जहां यह अनिवार्य है उन राज्यों में इसकी बहुत डिमांड रहती है। भर्ती के बाद राज्य सरकार उनकी फंडिंग कर उन्हें आईसीएम में नौ महीने की ट्रेनिंग के लिए भेजती है। इसके बिना उनका प्रोबेशन कंप्लीट नहीं होगा। यह काफी अच्छा कार्यक्रम है।

इसके अलावा, राष्ट्रीय स्तर का एक संस्थान पुणे में है जिसका नाम वैमनीकॉम (वैंकुठ लाल मेहता इंस्टीट्यूट ऑफ कोऑपरेटिव मैनेजमेंट) है। यह कई तरह के कोर्स चलाता है। इसका सबसे महत्वपूर्ण कोर्स एग्री बिजनेस मैनेजमेंट में एमबीए है। पिछले करीब 30 वर्षों से यहां से एमबीए करने वालों का सौ प्रतिशत कैंपस प्लेसमेंट हो रहा। उन सबका प्लेसमेंट अच्छी कंपनियों, कोऑपरेटिव और एग्रीकल्चर सेक्टर में होता है। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। 

कोऑपरेटिव सेक्टर में जितना मानव संसाधन है उनकी ट्रेनिंग के लिए एनसीसीटी के संसाधन पर्याप्त हैं या इसको और विस्तार देने की जरूरत है?

हमारे देश का कोऑपरेटिव सेक्टर दुनिया का सबसे बड़ा कोऑपरेटिव सेक्टर है। 8 लाख से ज्यादा सहकारी समितियां हैं जिनके सदस्यों की संख्या 30 करोड़ से ज्यादा है। वर्तमान में सभी सदस्यों की ट्रेनिंग नहीं हो रही है। इसके लिए संसाधन भी बहुत चाहिए। एनसीसीटी और इसके इंस्टीट्यूट सालाना करीब तीन लाख लोगों को ही ट्रेनिंग दे पाते हैं। इनमें सदस्यों के जागरूकता कार्यक्रम जो एक या दो दिन के होते हैं से लेकर लॉन्ग टर्म कोर्सेज भी हैं। सदस्यों के जागरूकता कार्यक्रम अभी कम हो रहे हैं। इसे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग ट्रेनिंग का लाभ ले सकें। इसे देखते हुए हमारे संसाधन पर्याप्त नहीं हैं। इसमें अभी और इंस्टीट्यूट जोड़ने की जरूरत है। अभी 20 संस्थान हैं लेकिन इस संख्या को चार से पांच गुना बढ़ाने की आवश्यकता है। ऐसा होने पर ही हम सबकी ट्रेनिंग के लक्ष्य की ओर बढ़ सकते हैं।

 देश का पहला सहकारिता विश्वविद्यालय बनने से कोऑपरेटिव एजुकेशन को कितना फायदा होगा?

बहुत ज्यादा फायदा मिलेगा। कोऑपरेटिव एजुकेशन में यह बहुत बड़ा सुधार है क्योंकि देश में अभी तक कोई भी कोऑपरेटिव यूनिवर्सिटी नहीं है। पहली बार राष्ट्रीय स्तर की यूनिवर्सिटी बनने जा रही है जिसका फोकस सिर्फ कोऑपरेटिव रहेगा। एग्रीकल्चर में बीएससी, एमएससी के कोर्स हैं, पीचडी भी की जाती है। मगर कोऑपरेटिव में इस तरह के कोई कोर्स नहीं हैं। अभी एग्रीक्लचर के साथ ही कोऑपरेटिव को पढ़ाया जाता है। यूनिवर्सिटी के आने से कोऑपरेटिव पर डेडिकेटेड कोर्सेज बनना शुरू होंगे। छात्र एमफिल, पीएचडी, एमबीए आदि कर सकेंगे। यह यूनिवर्सिटी का काम होगा कि अलग-अलग कोर्स डिजाइन करें और उन्हें विभिन्न संस्थाओं में शुरू करे। एनसीसीटी और इसके 20 संस्थान भी यूनिवर्सिटी से जुड़ेंगे। यह हब एंड स्पोक मॉडल पर चलेगा यानी यूनिवर्सिटी हब का काम करेगी और विभिन्न संस्थान उससे एफिलिएट होंगे। यह यूनिवर्सिटी इरमा, आणंद के परिसर में बनाई जाएगी  लेकिन सभी आईसीएम, आरआईसीएम, एनसीसीटी, वैमनीकॉम और राज्य सरकारों के विभिन्न ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट जो बहुत बड़ी संख्या में हैं, उन सभी के पास यह ऑप्शन रहेगा कि इस यूनिवर्सिटी से एफिलिएट करें। यूनिवर्सिटी भी यह प्रयास करेगी कि ये सब उससे जुड़ें।

देश में अमूल, इफको जैसे जो बड़े कोऑपरेटिव्स हैं या अभी जो राष्ट्रीय स्तर की तीन नई बड़ी सोसायटी बनी हैं उनके लिए आने वाले समय में व्यापक पैमाने पर सहकारिता को समर्पित मानव संसाधन की जरूरत होगी जो अभी हमारे पास नहीं हैं। इसकी कमी को यह यूनिवर्सिटी पूरा करेगी। सहकारिता बहुत बड़ा क्षेत्र है और इसमें 30 अलग-अलग सेक्टर में काम हो रहा है। इनमें डेरी, फिशरीज, कृषि या हाउसिंग जैसे कई सेक्टर शामिल हैं। यूनिवर्सिटी बनने से इन सबके लिए अलग-अलग कोर्स उपलब्ध होंगे जिनमें शिक्षित-प्रशिक्षित होकर युवा अपना कैरियर बना सकेंगे। सहकारिता की पॉलिसी बनाने में सरकार को इनपुट देने का काम भी यूनिवर्सिटी करेगी।   

सहकारिता मंत्रालय एजुकेशन और ट्रेनिंग पर एक नई स्कीम लाने पर भी काम कर रहा है। देश की ज्यादा से ज्यादा कोऑपरेटिव सोसायटी तक कैसे हमारी पहुंच बढ़े, उनकी जागरूकता और क्षमता निर्माण पर फोकस करते हुए यह स्कीम लाई जाएगी। इससे बड़ी संख्या में सहकारी क्षेत्र के लोगों को ट्रेनिंग दी जा सकेगी। यूनिवर्सिटी के शुरू हो जाने के बाद इस स्कीम को लाने की योजना है।  

अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 में एनसीसीटी क्या-क्या कर रहा है

अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष को व्यापक पैमाने पर मनाया जा रहा है। मंत्रालय के अलावा जितने भी कोऑपरेटिव्स हैं सबको इसमें शामिल किया गया है। एनसीसीटी और इसके सभी संस्थानों ने साल भर के लिए कैलेंडर बनाया है कि इस दौरान क्या-क्या गतिविधियां की जाएंगी। हर गतिविधि में अंतरराष्ट्रीय सहकरिता वर्ष का लोगो इस्तेमाल किया जाएगा। अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष पर कुछ  वर्कशॉप्स, सेमिनार, कुछ कार्यक्रम, वेबिनार आयोजित किए जाएंगे जिसमें विशेषज्ञ अपने विचार रख सकेंगे। इस तरह के कार्यक्रम एनसीसीटी के माध्यम से करने की योजना बनाई गई है। 

YuvaSahakar Team

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