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आजादी की उड़ान को मिले उद्यमिता के पंख

देश के कुल स्टार्टअप्स में से 73,151 स्टार्टअप की कमान महिलाओं के हाथ में है। महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए एक सिंगल विंडो के रूप में डीपीआईआईटी ने कौशल विकास, लघु और दीर्घकालीन ऋण, प्रशिक्षण शिविर से लेकर महिला उद्यमिता सम्मान नेशनल स्टार्टअप अवार्ड की शुरूआत की, जिससे हौंसले बुलंद हुए।

Published: 11:36am, 07 Mar 2025

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च पर विशेष

वर्ष 2004 के 8 मार्च यानी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मेरा पहला आलेख उस समय के चर्चित अखबार कुबेर टाइम्स में प्रकाशित हुआ। शीर्षक था ‘सफलता को अपनाइए सहजता से’। इस विषय पर उस समय तक मेरी समझ बहुत गहरी नहीं थी। बीए ऑनर्स का आखिरी साल था, पत्रकारिता की क्लास में जाना शुरू कर दिया था। वरिष्ठ जनों ने बताया कि रोजाना कुछ लिखा करो, कॉलेज के सभी दोस्तों को अपने लेख दिखाए। पत्रकारिता में एक दशक से भी अधिक का समय बीताने के बाद आज जब मैं अपने आलेखों का शीर्षक भर याद करती हूं तो मुझे इसकी सार्थकता समझ आती है। महिलाओं के परिपेक्ष्य में इस शीर्षक का महत्व और भी बढ़ जाता है, जिनके लिए सफलता के मायने चाहरदीवारी से बाहर निकलकर ऊंची उड़ाने भरने से लेकर खुद को समाज और परिवार में योग्य साबित करने तक का एक लंबा सफर होता है।

खैर, इस लिहाज से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मेरे लिए कभी भी भूलने वाला विषय नहीं रहा। महिलाओं के मुद्दों पर लिखने का विषय मेरे लिहाज से समस्याओं से परे, सफलताओं पर केंद्रित होना चाहिए। युवा सहकार टीम से जुड़ने के बाद एक बार फिर मुझे इस दिवस पर कुछ लिखने के लिए कहा गया तो मैने फिर से ऐसे महिलाओं से जुड़े ऐसे मुद्दों को चुनना पसंद किया, जिस पर सबसे कम लिखा गया। महिलाओं की सफलता, आत्मनिर्भरता और उद्मिता के बारे में आपको गूगल पर सबसे कम जानकारी मिलेगी। एक बानगी देखिए-

दैनिक भास्कर की तीन साल पहले की रिपार्ट बताती है कि दुनिया के मुकाबले भारत में केवल 20 प्रतिशत महिलाएं ही नौकरी करती हैं। वहीं बीबीसी ने वर्ष 2016 में मैंकेजी ग्लोबल रिपोर्ट का हवाला देते हुए लिखा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं की हिस्सेदारी 1.7 फीसदी है। यदि इसे बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया जाए तो देश की जीडीपी में 60 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी संभव है। से नौकरी में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने मात्र से प्राप्त नहीं किया जा सकता। एक अन्य चर्चित वेबसाइट महिलाओं के घरेलू काम का भी मेहनताना निर्धारित करने की बात कहती है।

दरअसल, लंबे समय तक आधी आबादी के सशक्तिकरण की बात तो की जाती रही, लेकिन उन्हें स्वावलंबी बनाने के लिए किए गए प्रयास गिनती के भी नहीं हुए। लंबे समय तक चर्चाए होती रहीं। कार्यस्थल पर उत्पीड़न (मानसिक, आर्थिक और यौन), उच्च पदों पर महिलाओं की कम भूमिका या फिर शादी के बाद कैरियर या परिवार को चुनने का विकल्प जैसे मुद्दों को लेकर सबसे अधिक लेख प्रकाशित किए गए जिनमें महिलाओं को कमतर ही आंका गया। किसी ने इस तरीके से सोचा भी नहीं कि यदि किसी लकीर को बिना मिटाए छोटा करना है तो उसके बगल में एक और बड़ी लकीर खींच देनी चाहिए ताकि  सही मायने में महिलाएं पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकें। सही मायने में देश में महिलाओं को सशक्त करने की शुरूआत महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयासों के माध्यम से हो चुकी है। महिलाओं ने सफलता को सहजता से अपनाना शुरू कर दिया और उन्हें यह बात भी भलीभांति समझ आने लगी है कि घर परिवार की जिम्मेदारियों के बीच उनकी अपनी आर्थिक स्वतंत्रता भी मायने रखती है। बदलते आर्थिक और सामाजिक परिवेश में उनके पति और परिवार के अन्य सदस्य भी अब उन्हें स्वावलंबी बनने में सहयोग कर रहे हैं।

घर और परिवार की कश्मकश से जुझती महिलाओं को वर्ष 2016 में भारत सरकार द्वारा महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए शुरू किए गए डिपार्टमेंट ऑफ प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (डीपीआईआईटी) का सहारा मिला। नौकरी में जहां दस से छह बजे तक समय देने की बाध्यता थी, वहीं उद्यमिता के सुलभ अवसरों ने उनकी इस दुविधा को दूर किया। डीपीआईआईटी एक ऐसा प्लेटफार्म बनकर उभरा जिसने महिलाओं के उद्यमिता की उड़ान को नए पंख दिए, अब तो मानो सारा आसमान ही अपना है। आंकड़ों के अनुसार, देश के कुल स्टार्टअप्स में से 73,151 स्टार्टअप की कमान महिलाओं के हाथ में है। महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए एक सिंगल विंडो के रूप में डीपीआईआईटी ने कौशल विकास, लघु और दीर्घकालीन ऋण, प्रशिक्षण शिविर से लेकर महिला उद्यमिता सम्मान नेशनल स्टार्टअप अवार्ड की शुरूआत की, जिससे हौंसले बुलंद हुए।

“जब खुद का व्यवसाय हो, कमान अपने हाथ में हो, अपनी बॉस आप खुद हों तो उत्पीड़न और कम वेतन जैसी बातें बेमानी हो जाती है। यह सबसे बेहतर तरीका है। अपनी ऊर्जा का प्रयोग कुछ ऐसे ही काम में किया जाए”, यह कहना है राधिका लखोटिया का। फिट प्लोर ब्रांड  नाम से पोषक आटा लोगों के घरों तक पहुंचाने वाली राधिका को वर्ष 2024 का नेशनल स्टार्टअप अवार्ड दिया गया। राधिका कहती हैं, “ऐसा करते हुए आप समाज के लिए भी कुछ सार्थक कर रहे होते हैं, तो आत्म संतुष्टि भी मिलती है। निश्चित रूप से यह शुरूआत है, माइल्स टू गो, लेकिन शुरूआत कहीं से भी हो, होनी चाहिए, यह जरूरी है।”

देश में महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए वी कनेक्ट के माध्यम से काम करने वाली एलिजाबेध वाजक्वेज कहती हैं कि लगभग एक शताब्दी से अधिक का समय बीत जाने के बाद विश्व के अधिकांश देशों ने महिलाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में एक दिन समर्पित किया। महिला शिक्षा, मातृत्व सुरक्षा और स्वच्छता आदि विषय को यदि छोड़ दिया जाए तो ऐसा एक भी देश नहीं है जहां पूर्ण रूप से लैंगिक समानता (जेंडर इक्वेलिटी) को प्राप्त कर लिया गया हो। 11 साल पहले मैंने जब वी कनेक्ट इंटरनेशनल की शुरूआत की तब ऐसे संसार की कल्पना की जहां महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए पुरूषों के समान ही आर्थिक अवसर प्राप्त हों। विशेष रूप से व्यवसायों को डिज़ाइन करने और समस्याओं के समाधान के उन्हें ऐसे अवसर मिले, जिससे वह अपने समूह के बीच आर्थिक तरक्की कर आजीविका को बेहतर कर सके।  हालांकि, अभी विश्व भर में निजी क्षेत्र में केवल एक प्रतिशत हिस्सेदारी महिला उद्यमियों की है, जबकि इनकी आबादी आधी है। यदि हम यूनाइटेड नेशन सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल पांच (एसडीजी पांच)को प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें इस बारे में गंभीरता से सोचना होगा, तब ही वर्ष 2030 तक लैंगिक समानता को प्राप्त किया जा सकेगा।

कुशल नेतृत्व क्षमता, प्रबंधन और मानवीय मूल्यों से सरोबार महिलाएं सफल व्यवसायों का संचालन कर रही हैं। विभिन्न क्षेत्र में महिलाओं द्वारा शुरू किए गए स्टार्टअप रोजगार सजृन और बेहतर आजीविका का माध्यम बन रहे हैं। निश्चित रूप से आने वाले समय में देश को विकसित बनाने में महिलाओं के योगदान को भी सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा।

लेखकः निशि भट्ट

YuvaSahakar Team

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