मुंबई स्थित 57 साल पुराने न्यू इंडिया कोऑपरेटिव बैंक में 122 करोड़ रुपये के घोटाले में गिरफ्तार पूर्व महाप्रबंधक हितेश मेहता ने पुलिस को दिए बयान में जो कहानी बताई है वह आसानी से हजम होने वाला नहीं है। हितेश मेहता ने बताया है कि चूंकि वह अकाउंट डिपार्टमेंट का भी प्रमुख था, इसलिए उसकी पहुंच बैंक की तिजोरी तक थी। वह उसमें से 2020 से ही पैसे निकालता रहा और खुद रखने के अलावा अपने रिश्तेदारों को भी देता रहा। बैंक के खाते में इसकी एंट्री नहीं की जाती थी। बैंक का खाता बिल्कुल दुरुस्त रखा जाता था, जबकि तिजोरी से निकाले गए पैसे वापस नहीं रखे जाते थे।
उसका यह बयान ही संदेहास्पद था। आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि तिजोरी से कोई बैंक कर्मचारी इतने समय से पैसा निकालता रहे और किसी को भनक भी न लगे। प्रबंधन के किसी वरिष्ठ अधिकारी की जानकारी के बिना इतनी बड़ी हेराफेरी संभव नहीं है। अब मीडिया के हाथ बैंक के पूर्व कर्मचारियों की एक चिट्ठी लगी है जो उन्होंने जनवरी 2020 में रिजर्व बैंक को लिखी थी। इस चिट्ठी में उन्होंने बैंक के खराब संचालन और कथित भ्रष्ट आचरण को लेकर आरबीआई को सचेत किया था और बैंक प्रशासन की वित्तीय अनियमितताओं, कुप्रबंधन और संभावित घपले को उजागर करने वाले पर्याप्त सबूत उपलब्ध कराए थे।
बैंक के चेयरमैन हीरेन भानु पर भी कई तरह के गंभीर आरोप चिट्ठी में लगाए गए थे। इसके बावजूद आरबीआई ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया। आरबीआई अगर समय रहते कार्रवाई करता तो जमाकर्ताओं की गाढ़ी कमाई नहीं डूबती।
क्या लिखा है चिट्ठी में
29 जनवरी, 2020 को बैंक के पूर्व कर्मचारियों द्वारा लिखा गया यह पत्र रिजर्व बैंक के विनियमन विभाग के कार्यकारी निदेशक को भेजा गया था। इसमें कहा गया था कि चेयरमैन हीरेन भानु के नेतृत्व में बैंक संदेह के घेरे में चल रहा है। बार-बार स्टाफ बदलने से ग्राहक सेवा खराब हो रही है। गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में अचानक आई गिरावट संदिग्ध है। वरिष्ठ कर्मचारियों पर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) चुनने या इस्तीफा देने का दबाव डाला गया। इससे बैंक का महत्वपूर्ण कार्य अनुभवहीन कर्मचारियों के हाथ में आ गया। कथित तौर पर उच्च स्तर के भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए बैंक को लघु वित्त बैंक में परिवर्तित करने के लिए एक विशेष एजीएम बुलाई गई थी।
पत्र में आरोप लगाया गया है कि विरोध रोकने के लिए एजीएम नोटिस में जानबूझकर देरी की गई या बैठक होने के बाद इसे भेजा गया। इसमें शेयरधारकों की भागीदारी न्यूनतम थी। बैठकों में अक्सर वास्तविक शेयरधारकों की बजाय केवल बैंक कर्मचारी ही भाग लेते थे। बैंक ने एजीएम रिपोर्ट में भी हेरफेर किया और नियमों का उल्लंघन करते हुए शाखाओं में वार्षिक रिपोर्ट प्रदर्शित नहीं किया।
लगाए गंभीर आरोप
पूर्व कर्मचारियों के पत्र के मुताबिक, वार्षिक रिपोर्ट में मुनाफे को गलत तरीके से बढ़ाने के लिए बैंक के रिजर्व को अवैध रूप से लाभ और हानि खाते में स्थानांतरित कर दिया गया था। वित्तीय रिपोर्टों में हेरफेर करने और नियामकीय जांच से बचने के लिए बेनामी खाते खोले गए। सदस्यता शुल्क में बदलावों के बारे में शेयरधारकों को जानकारी नहीं दी गई और मतदान शक्ति को प्रभावित करने के लिए ऑटोमेटिक रिफंड तैयार किया गया। ग्राहकों से वसूले जाने वाले बैंक के विभिन्न शुल्कों को निदेशकों और उनके रिश्तेदारों के व्यक्तिगत खातों में डाला गया। बाद में सबूत मिटाने के लिए इन खातों को बंद कर दिया गया।
हीरेन भानु की भूमिका संदिग्ध
पत्र में यह भी कहा गया कि चेयरमैन हीरेन भानु के व्यक्तिगत खर्चों का भुगतान बैंक फंड से किया जाता था। 2010 से पहले बैंक प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए छोटे-छोट लोन पर ध्यान केंद्रित करता था। हीरेन भानु के आने के बाद शाखा प्रबंधकों की जानकारी के बिना 25 करोड़ रुपये तक के कॉरपोरेट लोन स्वीकृत किए गए जो एक वर्ष के भीतर एनपीए बन गए। बॉलीवुड अभिनेत्री प्रीति जिंटा का 18 करोड़ रुपये का लोन उचित वसूली प्रक्रियाओं के बिना माफ कर दिया गया।
इसी तरह, राजहंस समूह को 95 करोड़ रुपये का लोन दिया गया और ओमकारा एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड (एआरसी) को नियमित रूप से 210 करोड़ रुपये का एनपीए बेचा गया। इससे धोखाधड़ी वाले लोन को माफ करने का संदेह पैदा हुआ। ओमकारा एआरसी की सहयोगी कंपनी एसीएआईपीएल को कथित तौर पर उचित जांच पड़ताल के बिना 7 करोड़ रुपये का लोन दिया गया। पत्र के मुताबिक, बढ़ी हुई मूल्यांकन रिपोर्ट का उपयोग करके हीरेन भानु से जुड़े लोगों को लोन दिए गए। कमीशन एजेंट मनीष सिमरिया कॉरपोरेट लोन उपलब्ध करवाता था। उसने खुद 8 करोड़ रुपये का लोन बैंक से लिया था जिसे चुकाया नहीं था। भुगतान में चूक के बावजूद कॉरपोरेट लोन की एवज में उसे भारी कमीशन दिया गया।
पूर्व कर्मचारियों ने अपने पत्र में आरोप लगाया कि हीरेन भानु पर दक्षिण अफ्रीका में आपराधिक मामले हैं। उन्होंने 2018-2019 में सात महीने विदेश में बिताए जिसका खर्च बैंक द्वारा वहन किया गया। उनकी पत्नी गौरी हीरेन भानु धोखाधड़ी वाले लोन के लेनदेन में शामिल थीं जिसमें उनसे जुड़ी कंपनियों के माध्यम से धन भेजा गया था।
वरिष्ठ कर्मचारियों का जबरन इस्तीफा
पत्र में कहा गया कि वर्ष 2019 में 80 से अधिक वरिष्ठ कर्मचारियों को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। वरिष्ठ अधिकारियों के परिवार के सदस्य कर्मचारियों को बार-बार पदोन्नति दी गई, जबकि अनुभवी कर्मचारियों को इस्तीफा देने के लिए परेशान किया गया। बैंकिंग अनुभव न होने के बावजूद शीर्ष प्रबंधन के कई रिश्तेदारों को बैंक में नौकरी दी गई और उन्हें तेजी से पदोन्नत किया गया। साथ ही, वरिष्ठ अधिकारियों के रिश्तेदारों द्वारा की गई धोखाधड़ी को बिना किसी दंडात्मक कार्रवाई के छिपा दिया गया।
पूर्व कर्मचारियों ने अपने पत्र में आरबीआई को बताया था कि अच्छी स्थिति वाली शाखाओं का बार-बार नवीनीकरण किया गया जिससे करोड़ों रुपये बर्बाद हुए। नवीनीकरण के ठेके चेयरमैन हीरेन भानु के रिश्तेदारों और करीबी लोगों को दिए गए। बैंक की लोअर परेल शाखा एक पॉश मॉल में खोली गई जिसकी आंतरिक सज्जा पर काफी खर्च किया गया। यह शाखा दो साल के भीतर बंद कर दी गई। इसी तरह, प्रभादेवी स्थित कॉरपोरेट कार्यालय में लगातार नवीनीकरण होता रहा जिससे अत्यधिक खर्च हुआ।
पूर्व कर्मचारियों ने आरबीआई से बैंक का फॉरेंसिक और विशेष ऑडिट कराने, निदेशक मंडल को भंग करने, चेयरमैन हीरेन भानु को हटाने, निदेशकों और प्रबंधन की व्यक्तिगत संपत्ति से बैंक के घाटे की वसूली करने का आग्रह किया था। इतने गंभीर आरोपों के बावजूद आरबीआई ने समय पर संज्ञान नहीं लिया जिसका नतीजा सामने है।