केंद्रीय श्रम एवं रोजगार तथा युवा मामले एवं खेल मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने कहा है कि शिक्षा और रोजगार में समन्वय के लिए कौशल विकास सरकार के प्रयासों के केंद्र में है। इसके माध्यम से नवाचार को प्रोत्साहन देकर, उत्पादकता में वृद्धि कर और कार्यबल के लिए व्यक्तियों को तैयार कर सरकार रोजगार सृजित कर रही है। साथ ही, वैश्विक प्रतिभा केंद्र का निर्माण किया जा रहा है। “भविष्य की नौकरियों पर सम्मेलन” को संबोधित करते हुए उन्होंने कौशल और मानकों की पारस्परिक मान्यता जैसी पहलों के माध्यम से वैश्विक कार्यबल की कमी को दूर करने की भारत की क्षमता पर भी प्रकाश डाला।
मांडविया ने कहा कि उद्योग और अकादमिक जगत के बीच मजबूत संबंधों को प्रोत्साहन देकर भारत की अनूठी जरूरतों के अनुरूप कौशल मॉडल तैयार किया जा सकते है। कौशल को प्रमाण-पत्रों से आगे बढ़कर उद्योग और स्वरोजगार क्षेत्रों की गतिशील मांगों को पूरा करने के लिए व्यक्तियों को व्यावहारिक विशेषज्ञता से लैस करने पर सरकार का फोकस करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कौशल के प्रति हमारे दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है। केवल प्रमाण-पत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय उद्योग में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए आवश्यक वास्तविक कौशल वाले पेशेवरों को विकसित करने का लक्ष्य होना चाहिए।
इस सम्मेलन का आयोजन श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के सहयोग से किया था। इसका विषय “भविष्य के कार्यबल को स्वरुप देना: गतिशील दुनिया में विकास को गति देना” था । इसमें नीति निर्माताओं, उद्योग जगत के प्रमुख व्यक्तियों और विशेषज्ञों ने उभरते रोजगार परिदृश्य और भारत में भविष्य के लिए तैयार कार्यबल के लिए रणनीति तैयार करने पर अपने विचार रखे। हरित रोजगार, डिजिटल प्रौद्योगिकी तथा आतिथ्य, पर्यटन और स्वास्थ्य सेवा जैसे सेवा जैसे उभरते क्षेत्र रोजगार इकोसिस्टम को नया स्वरुप दे रहे हैं।
श्रम एवं रोजगार सचिव सुमिता डावरा ने इस मौके पर कहा कि तेजी से विकसित हो रहे परिदृश्य में सफल होने के लिए तीन प्रमुख प्रश्न उभरे हैं- हम तेजी से तकनीक संचालित नौकरी बाजार में आगे बढ़ने के लिए सुसज्जित डिजिटल रूप से कुशल कार्यबल कैसे विकसित करें? हम वास्तव में समावेशी कार्यबल बनाने के लिए कौन सी रणनीति अपना सकते हैं जहां विविधता को महत्व दिया जाता है और सभी को समान अवसर दिए जाते हैं? इसके अतिरिक्त उद्योग पर्यावरणीय स्थिरता को प्राथमिकता देते हैं, तो हम अपने कार्यबल संस्कृति में पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं और मूल्यों को कैसे एकीकृत कर सकते हैं?
डावरा ने कहा कि स्वास्थ्य सेवा, विनिर्माण, लॉजिस्टिक्स और हरित नौकरियों जैसे प्रमुख क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करने के लिए कुशल और अनुकूलनीय कार्यबल महत्वपूर्ण है। श्रम प्रधान उद्योगों को मजबूत करने से विविध जनसांख्यिकी के लिए समान अवसर सुनिश्चित होते हैं, जिनमें उन्नत शिक्षा तक सीमित पहुंच वाले लोग भी शामिल हैं। उन्होंने “विश्व की जीसीसी राजधानी” के रूप में भारत की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 1,700 वैश्विक क्षमता केन्द्र (जीसीसी) बीस लाख से अधिक लोगों को रोजगार दे रहे हैं। यह संख्या वर्ष 2030 तक उल्लेखनीय रूप से बढ़ने का अनुमान है। ये जीसीसी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा एनालिटिक्स, रोबोटिक प्रोसेस ऑटोमेशन, डिजिटल कॉमर्स, साइबर सुरक्षा, ब्लॉकचेन, संवर्धित वास्तविकता और आभासी वास्तविकता जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों को अपना हैं। यह भारत की असाधारण तकनीकी प्रतिभा का प्रमाण है।
सम्मेलन का समापन गतिशील वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भारत के कार्यबल को तैयार करने के लिए कार्यान्वयन योग्य नीतिगत सिफारिशों के साथ हुआ। इन सिफारिशों में कौशल विकास और तकनीकी उन्नयन को बढ़ावा देना, समावेशी विकास के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना, डिजिटल साक्षरता और पर्यावरण अनुकूल कार्यबल मूल्यों को बढ़ावा देना और कार्यबल विकास में समावेशिता और स्थिरता को प्राथमिकता देना शामिल है।
इन प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान देकर भारत वैश्विक रोजगार परिदृश्य में अग्रणी बनने की ओर अग्रसर है जो भविष्य के लिए तैयार कार्यबल का निर्माण करेगा। यह न केवल घरेलू मांगों को पूरा करेगा, बल्कि वैश्विक कार्यबल चुनौतियों का भी समाधान करेगा।