भारत में सहकारी आंदोलन को नई दिशा देने और युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर सृजित करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने ‘त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय‘ की स्थापना का प्रस्ताव रखा था। संसद के दोनों सदनों से त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय विधेयक, 2025 के पारित होने के साथ ही अब यह सपना साकार होने जा रहा है। विश्वविद्यालय की स्थापना से न केवल सहकारी शिक्षा, अनुसंधान और प्रशिक्षण को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि सहकारी क्षेत्र को अधिक पेशेवर और प्रभावी बनाने में भी यह मदद करेगा। सहकारी आंदोलन के लिए यह ऐतिहासिक कदम साबित होगा। यह संस्थान सहकारी शिक्षा को एक नए स्तर पर ले जाएगा, जिससे सहकारी संस्थानों का कार्य अधिक पेशेवर, आधुनिक और प्रभावी हो सकेगा। यह युवाओं को एक वैकल्पिक और आकर्षक करियर विकल्प प्रदान करेगा। विश्वविद्यालय से डिग्री या डिप्लोमा प्राप्त करने वाले छात्रों को सहकारी संस्थाओं में प्राथमिकता दी जाएगी, जिससे यह एक आकर्षक करियर विकल्प बनेगा।
सहकारी क्षेत्र में व्यावसायिक शिक्षा देकर यह विश्वविद्यालय युवाओं को सहकारी प्रबंधन, वित्तीय समावेशन, सहकारी विपणन, डिजिटल सहकारिता और अन्य विषयों में विशेष शिक्षा प्रदान करेगा। पेशेवर प्रशिक्षण और नवीनतम शोध के माध्यम से सहकारी समितियों को अधिक प्रभावी और प्रतिस्पर्धात्मक बनाया जाएगा। डिजिटल तकनीकों, डेटा एनालिटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग से सहकारी संस्थानों को आधुनिक तकनीकों से जोड़ा जाएगा। विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय सहकारी संगठनों के साथ साझेदारी कर भारतीय सहकारी क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मक बनाएगा।
भारत में सहकारी आंदोलन का इतिहास काफी पुराना है, लेकिन इसके विकास की गति अपेक्षाकृत धीमी रही है। सहकारी संस्थाएं अक्सर पेशेवर प्रबंधन की कमी, नवीनतम तकनीकों की अनुपस्थिति और प्रभावी नेतृत्व के अभाव में संघर्ष करती रही हैं। त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय इन सभी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करेगा और सहकारी क्षेत्र को एक स्वर्णिम युग में प्रवेश करने में सहायता करेगा।
भारत में सहकारी आंदोलन की शुरुआत औपनिवेशिक काल में हुई थी। 1904 में सहकारी समितियों से संबंधित पहला कानून लाया गया जिसके बाद इस आंदोलन को एक संरचित रूप मिला। आज भारत में सहकारी समितियां कृषि, बैंकिंग, डेयरी, आवास, उपभोक्ता वस्तुएं और अन्य कई क्षेत्रों में कार्यरत हैं। अमूल, इफको, कृभको जैसी संस्थाएं सहकारी आंदोलन के सफल उदाहरण हैं। हालांकि, सहकारी क्षेत्र की बढ़ती चुनौतियां, जैसे डिजिटल तकनीक का अभाव, प्रतिस्पर्धा में पिछड़ना और व्यावसायिक कौशल की कमी, इसके सतत विकास में बाधा बन रही हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही है।
युवाओं के करियर का नया विकल्प
त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय सहकारी क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्रदान करने वाला पहला संस्थान होगा। इसके पाठ्यक्रम विशेष रूप से व्यावहारिक और रोजगारोन्मुख होंगे। इन पाठ्यक्रमों में निम्नलिखित विषय शामिल होंगे:
1. सहकारी प्रबंधन: इसके तहत सहकारी संस्थानों के सुचारू संचालन और नेतृत्व कौशल की शिक्षा दी जाएगी।
2. सहकारी वित्त: सहकारी बैंकों और वित्तीय संस्थानों में काम करने के लिए पेशेवर ट्रेनिंग दी जाएगी।
3. डिजिटल सहकारिता: सहकारी क्षेत्र में डिजिटल तकनीकों के इस्तेमाल को कैसे बढ़ावा दिया जाए ताकि समावेशिता को बढ़ावा मिल सके, इस बारे में पढ़ाया जाएगा।
4. सामुदायिक विकास और सहकारिता: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सहकारी आंदोलन को बढ़ावा देने की शिक्षा इसके तहत दी जाएगी।
5. कृषि और ग्रामीण सहकारिता: कृषि आधारित सहकारी समितियों को आधुनिक बनाने के बारे में युवाओं को शिक्षित किया जाएगा।
इस विश्वविद्यालय से डिग्री या डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स करने वाले छात्रों को सहकारी संस्थाओं में नौकरी में प्राथमिकता दी जाएगी, ताकि यह एक आकर्षक करियर विकल्प बन सके।
शोध और प्रशिक्षण का सुदृढ़ीकरण
सहकारी आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए शोध और प्रशिक्षण का विशेष महत्व है। इसके लिए त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान देगा:
- सहकारी नीतियों पर शोध: विभिन्न देशों और राज्यों की सहकारी नीतियों पर शोध को बढ़ावा देकर भारत के लिए उपयुक्त सहकारी नीतियों का विकास किया जाएगा।
- प्रशिक्षण कार्यशालाएं: सहकारी क्षेत्र के कार्यकर्ताओं और प्रबंधकों के लिए समय-समय पर विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
- नवाचार एवं तकनीकी समावेशन: सहकारी संस्थानों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन और डेटा एनालिटिक्स के उपयोग को बढ़ावा देने के उपाय किए जाएंगे।
सहकारी आंदोलन और ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य
भारत सरकार ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य की ओर बढ़ रही है। सहकारी क्षेत्र इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय इस लक्ष्य को प्राप्त करने में निम्नलिखित तरीकों से योगदान देगा:
आत्मनिर्भर भारत: सहकारी समितियां स्थानीय स्तर पर उत्पादन और विपणन को बढ़ावा देकर भारत को आत्मनिर्भर बनाएंगी।
रोजगार सृजन: सहकारी क्षेत्र के विस्तार से लाखों युवाओं को रोजगार मिलेगा।
कृषि क्षेत्र में क्रांति: कृषि सहकारी समितियों को डिजिटल तकनीक से जोड़कर किसानों की आय बढ़ाई जाएगी।
वित्तीय समावेशन: सहकारी बैंक और क्रेडिट सोसायटीज ग्रामीण भारत को वित्तीय सेवाएं प्रदान करेंगी।
स्थानीय से वैश्विक: त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय भारतीय सहकारी संगठनों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करेगा, जिससे वे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपनी पहचान बना सकें।
हरित और सतत विकास: सहकारी संगठनों को पर्यावरण अनुकूल नीतियों के साथ जोड़ा जाएगा, जिससे सतत विकास को बल मिलेगा।
त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय देश में सहकारी शिक्षण-प्रशिक्षण को बढ़ावा देने के साथ-साथ वैश्विक सहकारी संगठनों के साथ भारत की भागीदारी को मजबूत करेगा और भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में प्रभावी भूमिका निभाएगा।
(लेखक एनसीयूआई और इफको के अध्यक्ष हैं।)