
पैक्ड फिश प्रोडक्ट्स की बढ़ती मांग, विशेष रूप से रेडी टू ईट और रेडी टू कुक उत्पादों, के कारण यह कदम उठाया जा रहा है।
बाजार में सामान खरीदते समय ग्राहक उस उत्पाद की पूरी जानकारी चाहता है, खासकर यदि वह खाने-पीने से जुड़ा हो। ग्राहक सबसे पहले यह देखता है कि प्रोडक्ट कहाँ से आया, कब तक इस्तेमाल हो सकता है, आदि। इसी जरूरत को ध्यान में रखते हुए फिश मार्केट को ट्रेसबिलिटी सिस्टम टेक्नोलॉजी से जोड़ने की तैयारी चल रही है। मत्स्य पालन विभाग, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय इस दिशा में काम कर रहा है।
डेयरी सेक्टर में यह प्रणाली शुरू हो चुकी है, और अब फिशरीज सेक्टर को भी इससे जोड़ने की योजना है। फिशरीज विशेषज्ञों का कहना है कि पैक्ड फिश प्रोडक्ट्स, जैसे रेडी-टू-ईट और रेडी-टू-कुक, की बढ़ती माँग इसकी वजह है। चाहे फूड आइटम सस्ता हो या महँगा, खरीदार उसे खाने या पकाने से पहले सब कुछ जानना चाहता है। ट्रेसबिलिटी सिस्टम की शुरुआत की बात करें तो डेयरी सेक्टर में मदर डेयरी और उत्तराखंड कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन (UCDF) ने गिर और बद्री गाय के दूध से बने घी के साथ यह कदम उठाया है।
फिशरीज विशेषज्ञों का मानना है कि मछली पालन में आखिरी व्यक्ति तक पहुँचना जरूरी है। बाजार में टिकने और मुनाफा बढ़ाने के लिए मछली पालकों को जानकारी, संसाधन और सरकारी सहायता से जोड़ना आवश्यक है। मछली पालन, पशुपालन और डेयरी को बढ़ावा देने के लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग अब अनिवार्य हो गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि मछली पालन में मुनाफा बढ़ाने के लिए PM-MKSSY से जुड़े मुद्दों का त्वरित समाधान, आउटरीच, क्षमता निर्माण और समर्थन प्रणालियों को मजबूत करना होगा। साथ ही, सेक्टर में तालमेल बढ़ाने, मछली किसानों को तकनीकी सहायता देने और नई तकनीक अपनाने को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
इसके अलावा, मत्स्य पालन के विकास के लिए नेटवर्किंग और सहयोग बढ़ाने पर भी जोर दिया गया। चर्चा में ट्रेसबिलिटी मॉड्यूल पर भी बात हुई, जो ग्राहकों को उत्पाद की पूरी जानकारी देगा। इससे न सिर्फ मछली हर व्यक्ति तक पहुँचेगी, बल्कि मछली पालकों को बेहतर दाम भी मिलेंगे। यह कदम मछली पालन को मजबूत करने और ग्राहकों का भरोसा जीतने में मददगार साबित होगा।