- – एफएमसीजी में छह साल के कम समय पर अपना सिक्का जमाया
- – पांच रूपए की इनामी प्रतियोगिता में निर्धारित किया गया था ब्रांड का नाम
- – 80 रुपए उधार लेकर सात महिलाओं ने छत पर शुरू किया पापड़ बनाने का कारोबार
वर्ष 1959 में बांबे के लोहाना निवास में रहते हुए सात गुजराती महिलाओं ने अपना काम शुरू करने के बारे में सोचा, काम कुछ ऐसा हो जो खाना बनाने से जुड़ा, जब पापड़ बनाना शुरू किया तो उन्हें भी नहीं पता था कि वह महिला सहकारिता में वह एक बड़ी सफल एफएमसीजी के रूप में खुद को स्थापित कर लेगीं। इन महिलाओं ने भाई छगनलाल करामसी पारेख से 80 रुपए उधार लेकर, लक्ष्मीदास के डूबते हुए पापड़ के कारोबार को फिर से खड़ा करने का जोखिम उठाया। जुटाई गई पूंजी से उन्होंने पापड़ बनाने के लिए जरूरी उपकरण और कच्चा माल खरीदा, पापड़ बनाने की लिए घर की छत का इस्तेमाल किया गया और पहली बार चार पैकेट पापड़ तैयार किया गया, जिसे भुबनेश्वर के एक कारोबारी को बेचा गया। धीरे धीरे कारोबार और समूह भी बढ़ गया, आज श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ ब्रांड के एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स)के कई अन्य उत्पाद बना रही हैं, भारत के इस सफल महिला सहकार से इस समय देशभर में 45000 महिलाएं जुड़ी हैं, जो रोजाना 4.8 करोड़ पापड़ बनाती हैं।
महिला सहकार की शुरूआत मुंबई के शहरी क्षेत्र में कॉटेज इंडस्ट्री के रूप में हुई लेकिन आगे चलकर इसका विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों में हुआ। 1600 करोड़ के सालाना कारोबार के साथ आज श्री महिला गृह उद्योग को महिला सशक्तिकरण और स्वावलंबन के लिए देश में ही विदेश में एक सफल सहकार के रूप में माना जाता है। इंडिया सोसाइटी के तत्कालीन सदस्य भाई छगनलाल पारेख से 80 रुपए उधार लेने वाली वह महिलाएं थीं, जसवंती बेन, जमनादास पोपट, पार्वती बेन, रामदास थोडानी, उजमबेन, नारनदास कुंदालिया, बानूबेन, एन ताना, लागूबेन, अमृतलाल गोखानी, जयाबेन वी, विठाली और दीवानीबेन लुक्का। भाई छगनलाल पारेख महिलाओं के लिए मार्गदर्शक बने और कहा कि घाटा होने पर भी उत्पाद की गुणवत्ता कभी कम नहीं की जानी चाहिए।
शुरूआत के पहले साल में केवल छह हजार रुपए के ही पापड़ की बिक्री हुई, बारिश के कारण चार महीने काम रोकना पड़ा, क्योंकि पापड़ को सुखाने के लिए धूप की बहुत जरूरी थी। अगले ही साल कोट मशीन, स्टोव सहित अन्य जरूरी उपकरण खरीदे गए, तीन साल पूरा होने तक संगठन से 300 महिलाएं जुड़ गई, अब छह की जगह महिलाएं अपने अपने घरों की छतों पर पापड़ बनाने लगी जिसे एक जगह इकट्टा कर पैकेजिंग और मुहर आदि लगाने का काम किया जाने लगा। धीरे धीरे लोगों की जुबान पर पापड़ का स्वाद चढ़ने लगा और महिला समूह के पापड़ प्रचलित होने लगे। वर्ष 1961 में मुबई मलाड में श्री महिला गृह उद्योग का पहला कार्यालय खोला गया। यही से लिज्जत ब्रांड नेम की शुरूआत हुई, जिसका चयन पांच रुपए की एक इनामी प्रतियोगिता के माध्यम से किया गया, धीरजबेन रूपालाल द्वारा सुझाए गए नाम को ब्रांड नाम बनाया गया।
वर्ष 1966 में श्री महिला गृह उद्योग को एक सोसाइटी के रूप में स्थापित किया गया। इसी वर्ष भाई छग्गनलाल पारेख ने भारत सरकार के केवीआईसी खादी डेवलपमेंट एंड विलेज कमीशन के तत्कालीन चेअरमैन यूएन धीबार (केवीआईसी) से महिला सहकार उद्यम का मुआयना करने के लिए कहा, महिला सहकार की सफल गतिविधियों को देखते हुए केवीआईसी से श्री महिला गृह उद्योग को विलेज इंडस्ट्री का दर्जा दिया, जहां खाद्य पद्धार्थो का उत्पादन, पैकिंग, विपणन और वितरण किया जा सके। केवीआईसी से श्री महिला गृह उद्योग को आठ लाख रुपए की आर्थिक सहायता भी दी और इस राशि पर निर्धारित कर में छूट भी दी गई।
लिज्जत पापड़ की अपार सफलता के बाद वर्ष 1974 से 1978 के बीच महिला समूह ने खाखरा, मसाला, वादी, गेहूं का आटा और बेकरी प्रोडक्ट्स का भी उत्पादन शुरू दिया। वर्ष 1988 में श्री महिला गृह उद्योग साबुन बनाने के कारोबार में भी उतरा और सासा नाम से साबुन और डिटरजेंट लांच किया गया। वर्ष 1996 में श्री महिला गृह उद्योग की 50वीं ब्रांच शुरू की गई।
वर्ष 1980 से 1990 के बीच महिला सहकार ने विदेशी गतिविधियां बढ़ाई, यूगांड के उपराष्ट्रपति अपनी भारत यात्रा के दौरान जब लिज्जत पापड़ की यूनिट पहुंचे तो उन्होंने अपने देश में भी ऐसा ही वेंचर शुरू करने की इच्छा जाहिर की। इसके बाद यूके, यूएस और पूर्वी मध्य , सिंगापुर, नीदरलैंड, थाईलैंड और अन्य देशों में भी महिला समूह के उत्पाद को निर्यात किया जाने लगा। इसी बीच समूह ने कई इनाम भी अपने नाम कर लिए, वर्ष 2000-01 में केवीआईसी द्वारा श्री महिला गृह उद्योग को बेस्ट विलेज इंडस्ट्री इंस्टीट्यूशन तथा द इकोनोमिक्स टाइम्स अवार्ड द्वारा बिजनेस वुमेन ऑफ द ईयर के साथ ही द वुमेन बिहाइंड लिज्जत पापड़ पुरस्कार दिया गया।
आज भारत के 17 राज्यों में इस महिला सहकार विलेज इंडस्ट्री की पहुंच है। महिला सहकार के स्तंभ के रूप में गिने जाने वाले श्री महिला गृह उद्योग को में महिला रोजगार को ही प्रमुखता दी जाती हैं पुरूष केवल वेतन और व्यवस्था संबंधी काम ही देख सकते हैं, महिलाओं को ही संगठन के लिए निर्णय लेने की वीटो पॉवर है, और हां एक बात और इस संगठन में सेवानिवृत होने जैसे कोई नियम नहीं है, सेवन सिस्टर्स का मानना है आजीविका के लिए पैसे की आजीवन जरूरत होती हैं इसलिए सेवा निवृति का नियम नहीं बनाया गया कोई स्वेच्छा से संगठन को छोड़ना चाहे तो उसकी मर्जी।