भारत और चीन के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को सुलझाने के प्रयासों में एक नई प्रगति दर्ज हुई है। हाल ही में नई दिल्ली में हुई 24वीं एस.आर. (स्पेशल रिप्रेज़ेंटेटिव) वार्ता में दोनों देशों ने कई अहम कदम उठाने पर सहमति जताई।
सीमा विवाद पर “अर्ली हार्वेस्ट” की कोशिश
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल और चीन के विदेश मंत्री एवं विशेष प्रतिनिधि वांग यी की अगुवाई में हुई इस बैठक में दोनों पक्षों ने सीमा-निर्धारण को लेकर “अर्ली हार्वेस्ट” यानी शुरुआती सहमति वाले कदम उठाने का निर्णय लिया। इसके लिए एक एक्सपर्ट ग्रुप गठित किया जाएगा, जो विवादित क्षेत्रों की पहचान कर समाधान के रास्ते तलाशेगा।
पीएम मोदी से मुलाकात और SCO शिखर सम्मेलन
भारत दौरे के दौरान चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की। उन्होंने मोदी को तियानजिन में इस माह के अंत में होने वाले एससीओ सम्मेलन का न्योता दिया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। मोदी ने सीमा पर शांति और सौहार्द्र बनाए रखने पर जोर दिया और सीमा विवाद के निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान के लिए प्रतिबद्धता दोहराई।
सीमा–व्यापार और संपर्क बहाली
वार्ता में यह भी सहमति बनी कि भारत-चीन सीमा के पार पुराने व्यापारिक मार्गों को फिर से खोला जाएगा। इसके तहत लिपुलेख, शिपकी ला और नाथू ला पास से व्यापार की अनुमति दी जाएगी। इसके अलावा दोनों देशों ने जल्द से जल्द सीधी उड़ानें पुनः शुरू करने और यात्रियों के लिए वीज़ा प्रक्रिया को सरल बनाने पर भी जोर दिया।
कैलाश मानसरोवर यात्रा और नदी सहयोग
बैठक में धार्मिक यात्राओं के विस्तार पर भी चर्चा हुई। दोनों देशों ने कैलाश मानसरोवर यात्रा को और सुगम बनाने तथा अधिक संख्या में तीर्थयात्रियों को अनुमति देने पर सहमति जताई। साथ ही पार-सीमा नदियों पर सहयोग बढ़ाने और बाढ़ जैसी आपात स्थितियों में हाइड्रोलॉजिकल डाटा साझा करने का भी निर्णय लिया गया।
कूटनीतिक संकेत
इन वार्ताओं को भारत-चीन रिश्तों में एक सकारात्मक मोड़ के रूप में देखा जा रहा है। दोनों देशों के बीच 2020 के गलवान संघर्ष के बाद संबंधों में काफी तनाव रहा है। हालांकि, इस दौर की बातचीत ने यह संदेश दिया है कि सीमा पर शांति और स्थिरता बहाल करना ही आगे की प्रगति की कुंजी है।
आगे की राह
विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता का मकसद सिर्फ सीमा विवाद को हल करना ही नहीं है, बल्कि दोनों देशों के बीच भरोसा बढ़ाना और आर्थिक-सामाजिक सहयोग को गति देना भी है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन सहमतियों को व्यवहारिक रूप दिया गया, तो यह भारत-चीन रिश्तों में एक नया अध्याय खोल सकता है।