मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत मत्स्य पालन विभाग ने बुधवार को प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के पांच वर्ष पूरे होने के अवसर पर विभाग ने कहा कि इस योजना ने देश की अर्थव्यवस्था, पोषण और स्थिरता (सस्टेनेबिलिटी) के लक्ष्यों में अहम योगदान दिया है।
विभाग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए बताया कि “कटिंग एज टेक्नोलॉजी” अपनाने से लेकर मत्स्य पालन प्रथाओं को आधुनिक बनाने और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने तक, पीएमएमएसवाई ने समुदायों को सशक्त बनाया और लाखों लोगों की आजीविका को मजबूत किया है।
योजना का खास फोकस तटीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बढ़ाने, उत्पादकों को सीधे उपभोक्ताओं से जोड़ने के लिए बाजार और लॉजिस्टिक्स को सुव्यवस्थित करने और क्लस्टर-आधारित विकास को बढ़ावा देने पर रहा है। क्लस्टर खेती से उत्पादन लागत घटती है और खरीदारों की रुचि बढ़ती है।
5 वर्षों की उपलब्धियां
पीएमएमएसवाई की शुरुआत 10 सितंबर 2020 को 20,050 करोड़ रुपये के निवेश के साथ की गई थी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 22 जुलाई 2025 तक 21,274.16 करोड़ रुपये की मत्स्य विकास परियोजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है। इस योजना ने उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने, गुणवत्ता सुधारने और आधुनिक तकनीक अपनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारत बना दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक
भारत ने 2024-25 में 195 लाख टन मत्स्य उत्पादन कर विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बनने का गौरव हासिल किया। फरवरी 2025 तक मत्स्यपालन की राष्ट्रीय औसत उत्पादकता 3 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 4.7 टन प्रति हेक्टेयर हो गई।
पिछले पांच वर्षों में योजना के तहत 58 लाख नई आजीविकाएं सृजित हुईं, 99,000 से अधिक महिलाओं को सशक्त बनाया गया और जलवायु के अनुकूल, बाजार के लिए तैयार वैल्यू चेन का निर्माण हुआ।
मत्स्य पालन विभाग ने कहा कि पीएमएमएसवाई अपनी रिकॉर्ड उपलब्धियों के साथ “नीली क्रांति” को नई गति दे रही है और भारत को स्थायी और समावेशी विकास की ओर आगे बढ़ा रही है।