किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) के विकास में अनुकूल माहौल का महत्व अत्यंत बड़ा है। ऐसी स्थिति में व्यापार करने में आसानी (Ease of Doing Business) एक महत्वपूर्ण मापदंड के रूप में उभरती है। हाल ही में नेशनल एसोसिएशन फॉर FPOs, समुन्नति और राबो फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से जारी की गई रिपोर्ट में महाराष्ट्र ने मध्य प्रदेश को पीछे छोड़ते हुए FPOs के लिए अनुकूल माहौल बनाने वाले राज्यों की रैंकिंग में पहला स्थान प्राप्त किया है। मध्य प्रदेश इस रैंकिंग में दूसरे स्थान पर खिसक गया है, जबकि उत्तर प्रदेश लगातार तीसरे स्थान पर बना हुआ है।
महाराष्ट्र की बढ़त और राज्यवार आंकड़े
मार्च 2025 तक महाराष्ट्र में लगभग 14,788 किसान उत्पादक संगठन पंजीकृत थे, जो देश के कुल FPOs का लगभग 34 प्रतिशत हिस्सा हैं। यह आंकड़ा महाराष्ट्र की कृषि क्षेत्र में सक्रिय भूमिका और संगठित कारोबार को द्योतक है। इस रैंकिंग में देश के दस प्रमुख राज्यों का मूल्यांकन किया गया, जिनमें कुल 81 प्रतिशत पंजीकृत FPOs हैं।
वित्तीय मदद में संगठन क्यों नाकाम?
रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2025 तक देश के कुल 43,928 पंजीकृत FPOs में से केवल 6,100 संगठनों को ही 4,000 करोड़ रुपए के ऋण में से अधिकांश हिस्सा मिल पाया है। यह सूचकांक दिखाता है कि अधिकांश FPOs अभी भी औपचारिक वित्तीय संस्थानों की पहुंच से बाहर हैं। इसका कारण खराब व्यावसायिक योजनाएं, अप्रभावी प्रशासन और कमजोर क्रेडिट स्कोर है।
असफलता के प्रमुख कारण
रिपोर्ट ने FPOs की विफलता के पीछे कई बाधाओं की पहचान की है। इसमें बैंकिंग संस्थानों की कार्यशील पूंजी की अनदेखी, सरकारी योजनाओं की जटिलताएं, रिकॉर्ड प्रबंधन में कमी, ऑडिट न होना, जीएसटी और आयकर फाइलिंग की अड़चनें प्रमुख हैं। इसके अलावा उचित स्थानीय परिस्थितियों के अभाव में गलत बिजनेस मॉडल और निदेशक मंडल की दक्षता की कमी भी संगठन की सफलता में बाधक साबित हो रही है।
सुधार के लिए दिशा
सफल और आत्मनिर्भर किसान उत्पादक संगठनों के लिए व्यापार में सरलता, कुशल प्रशासन, अच्छी व्यावसायिक योजनाएं और वित्तीय संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित करना आवश्यक है। केंद्र और राज्य सरकारों को इन संगठनों की क्षमता बढ़ाने हेतु संयुक्त प्रयास करने होंगे।