भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बना हुआ है। सोमवार को एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि, भारत लगातार कई वर्षों से वैश्विक दूध उत्पादन में शीर्ष स्थान पर है और दुनिया की कुल आपूर्ति का लगभग एक चौथाई उत्पादन करता है। यह क्षेत्र राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5 प्रतिशत का योगदान देता है और सीधे 8 करोड़ से अधिक किसानों को रोजगार उपलब्ध कराता है।
दुग्ध क्षेत्र 8 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों को प्रभावित करता है, जिनमें से अधिकांश छोटे और सीमांत किसान हैं। खास बात यह है कि उत्पादन और संग्रह में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जिससे डेयरी क्षेत्र समावेशी विकास का मजबूत साधन बन गया है।
पिछले एक दशक में भारत का दुग्ध उत्पादन उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है। वर्ष 2014-15 में 146.30 मिलियन टन से बढ़कर 2023-24 में यह 239.30 मिलियन टन तक पहुंच गया है, यानी 63.56 प्रतिशत की बढ़ोतरी। इस दौरान वार्षिक औसत वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत रही। खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, भारत अमेरिका, पाकिस्तान, चीन और ब्राजील जैसे देशों से काफी आगे है।
प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता में भी बड़ी बढ़ोतरी हुई है। 2014-15 की तुलना में 48 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 2023-24 में यह 471 ग्राम प्रतिदिन हो गई है, जबकि वैश्विक औसत मात्र 322 ग्राम प्रतिदिन है।
देश में कुल 303.76 मिलियन दुधारू पशु (गाय, भैंस, मिथुन और याक) दुग्ध उत्पादन और कृषि में अहम योगदान दे रहे हैं। इसके अलावा 74.26 मिलियन भेड़ और 148.88 मिलियन बकरियां भी विशेष रूप से शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में दूध उत्पादन में योगदान देती हैं।
2014 से 2022 के बीच भारत में पशुधन की उत्पादकता (किलो/वर्ष) में 27.39 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जो चीन, जर्मनी और डेनमार्क जैसे देशों से भी अधिक है। यह वैश्विक औसत 13.97 प्रतिशत से कहीं ज्यादा है।
भारत का सहकारी दुग्ध क्षेत्र भी व्यापक और संगठित है। वर्ष 2025 तक इसमें 22 मिल्क फेडरेशन, 241 जिला सहकारी यूनियन, 28 विपणन डेयरियां और 25 मिल्क प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन (MPO) शामिल हैं। ये लगभग 2.35 लाख गांवों को कवर करते हैं और 1.72 करोड़ दुग्ध किसानों को सदस्यता प्रदान करते हैं।
महिलाओं की भागीदारी इस क्षेत्र की खास पहचान है। दुग्ध उत्पादन में करीब 70 प्रतिशत महिलाएं हैं, जबकि 35 प्रतिशत महिलाएं डेयरी सहकारी समितियों में सक्रिय हैं। देशभर में 48,000 से अधिक महिला-नेतृत्व वाली डेयरी सहकारी समितियां कार्यरत हैं, जो ग्रामीण समुदायों को समावेशी विकास और सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ा रही हैं।