मध्यवर्ग के लोगों के जीवन में मानों सचमुच बसंत आ गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बसंत पंचमी के ठीक एक दिन पहले साल 2025-26 के अपने बजट में आयकर की छूट सीमा को 7 लाख रुपये सालाना से बढ़ाकर 12 लाख रुपये की घोषणा क्या की, पूरे देश में हलचल मच गई। अब 12 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी पर इनकम टैक्स नहीं लगेगा। छूट की सीमा को एक बार में इतना अधिक बढ़ाया गया हो, ऐसा शायद की कभी हुआ हो। हालांकि इस आमदनी में कई तरह से होने वाली आय को शामिल नहीं किया जा सकेगा, बावजूद इसके मध्यवर्ग के लिए सरकार की तरफ से यह बहुत बड़ा बोनांजा है।
वित्त मंत्री के बजट की यह सबसे बड़ी और शायद एकमात्र घोषणा है। सरकार का मानना है कि इससे अर्थव्यवस्था में खपत को बढ़ाने में मदद मिलेगी क्योंकि मध्यवर्ग खासकर शहरी क्षेत्र में कोविड के बाद से खपत की रफ्तार बहुत तेजी से धीमी हुई थी। लेकिन क्या वास्तव में सरकार का यह कदम खपत को बढ़ाने में मददगार होगा? यह आने वाले समय में पता चलेगा। लेकिन चुनावी राजनीति को ध्यान में रखा जाए तो सरकार ने एक बड़ा दांव खेल दिया है। इस घोषणा का दिल्ली विधानसभा के चुनावों पर कितना असर हुआ है वो तो सामने आ चुका है। आगे देखना होगा कि बिहार के चुनावों पर यह घोषणा क्या असर डाल पाती है। लेकिन यह तो स्पष्ट है कि सरकार की इस घोषणा ने करीब एक करोड़ लोगों (जैसा सरकार का दावा है) को टैक्स के दायरे से बाहर कर दिया है और इससे सरकार के राजस्व पर करीब एक लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा।
अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक बताते हुए वित्त मंत्री ने अपने बजट में कई घोषणाएं की हैं। इनमें कुछ नई बोतल में पुरानी शराब सरीखी घोषणाएं हैं तो कुछ वास्तव में अर्थव्यवस्था को राहत देने वाली। लेकिन जानकार मानते हैं कि सही अर्थों में ये घोषणाएं तभी संभव होंगी जब इन पर समय पर और गंभीरतापूर्वक अमल किया जाए। वित्त मंत्री ने भाषण देते वक्त अर्थव्यवस्था के चार क्षेत्रों को शक्तिशाली इंजन बताया है। ये हैं कृषि, एमएसएमई, निवेश और निर्यात। सरकार मान रही है कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार को तेज करने में ये चारों क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे। लेकिन वित्त मंत्री ये भी मानती हैं कि इनसे पहले ज्यादा जरूरी है देश में खपत बढ़ाना ताकि मांग बढ़े और कारखानों के चक्के के तेजी से घूमने के हालात बनें।
आयकर में 12 लाख रुपये तक की आमदनी को कर-मुक्त करने के अतिरिक्त वित्त मंत्री ने नई टैक्स व्यवस्था में कर की दरों को भी पुनर्परिभाषित किया है। इससे विभिन्न आय वर्ग वाले लोगों को टैक्स बचत ज्यादा हो रही है और उनकी जेब में पैसे बचने का रास्ता खुला है। लेकिन जानकार मानते हैं कि बजट में टैक्स संबंधी सभी घोषणाओं का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि यह छूट मोटे तौर पर वेतन से होने वाली आय तक ही सीमित है। अन्य निवेशों से होने वाली आय कर के दायरे में पहले ही आ जाएगी। म्यूचुअल फंड, इक्विटी शेयर और प्रॉपर्टी बेचने से होने वाली आय पर कैपिटल गेन्स टैक्स के जो नियम लागू होते हैं उनके मुताबिक इस टैक्स का भुगतान करना ही होगा। इस आय को जोड़कर आप 12 लाख रुपये तक की आय पर कर छूट का लाभ नह ले पाएंगे।
जहां तक सरकार के इस कदम से खपत बढ़ने का सवाल है, टाइम्स ग्रुप से जुड़े अर्थशास्त्री और पत्रकार स्वामीनाथन संकलेसरैया अय्यर मानते हैं कि खपत बढ़ाने का यह दांव पूंजीगत सामान और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की कीमत पर लिया गया है। खपत भी केवल रोजमर्रा के उपभोग के सामान यानी कंज्यूमर गुड्स सेक्टर की ही बढ़ने की संभावना है। इसके लिए भी सरकार को महंगाई को काबू में रखने के कारगर उपाय करने होंगे। यह सबने देखा है कि बीते एक साल में महंगाई बढ़ने की वजह से शहरी उपभोक्ता मांग किस तरह प्रभावित हुई है। टैक्स छूट का दायरा बढ़ाने से एक लाख करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान कर सरकार ने अपने पूंजीगत खर्च को समेट कर उठा रही है। बीते दो साल में सरकार ने अपने खर्च को काफी हद तक सीमित रखा है। इससे अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने वाले क्षेत्रों में सरकार का निवेश कम हुआ जिसने ओवरऑल खपत को प्रभावित किया।
टैक्स में छूट की वजह से ही संभवतः वित्त मंत्री इन्फ्रास्टक्चर क्षेत्र के लिए रखे गए पूंजीगत खर्च में बेहद मामूली वृद्धि कर पाई हैं। वर्ष 2025-26 के लिए वित्त मंत्री ने इस मद में 11.2 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। वर्ष 2024-25 के बजट में इसके लिए 11.1 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। लेकिन सरकार इसे भी पूरा खर्च नहीं कर पाई थी। नए बजट के संशोधित आंकड़ों के मुताबिक सरकार लक्ष्य का 92 फीसदी यानी 10.18 लाख करोड़ रुपये की व्यय कर पाई। जानकारों का मानना है कि ऐसा राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने की वजह से हुआ। जापानी एजेंसी नोमूरा की मुख्य अर्थशास्त्री सोनल वर्मा के मुताबिक वित्त मंत्री ने बीते चार साल से पूंजीगत व्यय पर जोर देने के बाद इस बार मध्यवर्ग को टैक्स छूट के माध्यम से खपत बढ़ाने के रास्ते को चुना है। लेकिन इसके लिए उन्हें परियोजनाओं पर होने वाले खर्च में कटौती करनी पड़ेगी। वर्तमान वित्त वर्ष में सरकार का राजकोषीय घाटा 4.8 फीसदी रहा है और वित्त मंत्री ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 4.4 फीसद का लक्ष्य तय किया है।
वित्त मंत्री ने अपने बजट में औद्योगिक रफ्तार बढ़ाने के लिए छोटे और मझौले उद्योगों (एमएसएमई) पर भरोसा जताया है। इसके तहत सरकार ने एक बार फिर एमएसएमई के लिए निवेश और कारोबार की सीमा को पुनर्परिभाषित किया है। इसके अतिरिक्त उनके लिए क्रेडिट गारंटी कवर में वृद्धि की है जिससे उन्हें 1.5 लाख करोड़ रुपये के ऋण उपलब्ध होंगे। एमएसएमई क्षेत्र को देश के उद्योगों की रीढ़ माना जाता है। यह कदम उनके लिए संजीवनी साबित हो सकता है बशर्ते उन्हें ऋण देने वाली वित्तीय संस्थाएं और बैंक सही मायनों में इन इकाइयों के लिए आगे आएं। बीते वर्षों में सरकार की तरफ से एमएसएमई क्षेत्र के लिए कर्ज का रास्ता आसान करने की घोषणाएं तो बहुत हुई हैं, लेकिन जमीन पर उनके नतीजे देखने को नहीं मिले। उद्योगों की रफ्तार तेज करने के लिए वित्त मंत्री ने एक राष्ट्रीय मैन्यूफैक्चरिंग मिशन की स्थापना करने का ऐलान किया है, जो दरअसल मेक इन इंडिया का ही मिशन स्वरूप है। गौरतलब है कि बीते एक दशक में मेक इन इंडिया अभियान मैन्यूफैक्चरिंग की रफ्तार बढ़ाने में कोई योगदान नहीं कर सका। वर्ष 2014 में इसकी शुरुआत के वक्त सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में मैन्यूफैक्चरिंग का योगदान 15 फीसदी था जो आज भी 15-17 फीसद के आसपास ही है। इसलिए सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि मिशन की स्थापना की घोषणा नई बोतल में पुरानी शराब वाली कहावत चरितार्थ न हो।
बीते चार वर्ष में कृषि क्षेत्र वास्तव में अर्थव्यवस्था के प्रमुख इंजन के तौर पर उभरा है। कोविड-काल से लेकर मौजूदा वित्त वर्ष तक उद्योगों की धीमी रफ्तार से पीड़ित अर्थव्यवस्था को कृषि क्षेत्र ने ही संभाला है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भी 6.2 फीसदी की आर्थिक विकास दर कृषि की पांच फीसदी से अधिक की विकास दर के कारण ही संभव हो पाई। इसे देखते हुए बजट में वित्त मंत्री से खेती-किसानी क्षेत्र के लिए कुछ और अधिक मिलने की उम्मीद थी।
हालांकि वित्त मंत्री ने प्रधानमंत्री कृषि धन-धान्य योजना, दलहन में आत्मनिर्भरता और किसान क्रेडिट कार्ड में अधिक ऋण जैसी कई घोषणाएं बजट में की हैं। कुछ नए मिशन शुरू करने की भी घोषणा हुई है लेकिन इन घोषणाओं का असर जमीन पर आने में अभी वक्त लगेगा। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय एजेंसियां जिस तरह से वैश्विक अर्थव्यवस्था के भविष्य के अनुमान लगा रही हैं और अमेरिका के नए राष्ट्रपति ट्रंप अमेरिकी अर्थव्यवस्था को संरक्षण देने के उपाय कर रहे हैं उसमें भारत के लिए खेती-किसानी क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। जानकारों का मानना है कि कृषि क्षेत्र में किसानों की पैदावार की उचित कीमत दिलाने और पैदावार की लागत घटाने के उपायों पर ज्यादा जोर होना चाहिए।
वित्त मंत्री ने कृषि क्रेडिट कार्ड से मिलने वाले ऋण की सीमा को मौजूदा तीन लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये करने का ऐलान किया है। इससे किसानों को खेती के लिए अधिक कर्ज लेने की सुविधा तो होगी लेकिन जब तक किसानों की उपज की उचित कीमत मिलना सुनिश्चित न हो जाए, कर्ज के एनपीए में बदलने का जोखिम भी रहेगा। प्रधानमंत्री धन-धान्य योजना का लक्ष्य कम उत्पादकता वाले इलाकों में किसानों की पैदावार बढ़ाने के उपाय करना है। इस योजना में 100 जिलों को शामिल किया जाएगा। अगर यह योजना सही तरीके से चलाई गई तो न केवल कृषि उपज में वृद्धि होगी बल्कि इन जिलों के किसानों की आय बढ़ाने में भी मददगार साबित हो सकती है। बजट आने से पहले माना जा रहा था।
वित्त मंत्री ने अपनी सरकार की चुनावी राजनीति का भी पूरा ध्यान बजट में रखा है। दिल्ली विधानसभा चुनाव को आयकर छूट के जरिए लक्षित किया गया है तो आने वाले महीनों में बिहार विधानसभा चुनावों का भी ध्यान भी रखा गया है। मखाना बिहार का प्रमुख उत्पाद है यह सर्वविदित है। लेकिन चुनावी वर्ष में उसके लिए बोर्ड की स्थापना की घोषणा सीधे तौर पर राजनीति से प्रेरित लगती है। इसी तरह बिहार के लिए ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट और मिथिलांचल के लिए पश्चिमी कोसी नहर परियोजना की घोषणा भी चुनावों के मद्देनजर हुई है इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
वित्त मंत्री ने 50.65 लाख करोड़ रुपये खर्च वाले अपने बजट में तमाम क्षेत्रों के लिए कुछ न कुछ दिया है। बीमा क्षेत्र में अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए विदेशी निवेश की सीमा को 100 फीसद कर दिया है जो अभी तक 74 फीसदी थी। साथ ही नया टैक्स बिल लाने की घोषणा भी की जिसे संसद में पेश भी कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त कई तरह के विनियामक सुधारों का ऐलान वित्त मंत्री ने किया है। इसके तहत वित्त मंत्री ने विश्वास आधारित विनियामक ढांचा तैयार करने का आश्वासन दिया है।
एक कमेटी गैर वित्तीय क्षेत्र में सभी तरह के परमिट, लाइसेंस और मंजूरी के नियमों का अध्ययन करेगी ताकि गैर-जरूरी नियमों को समाप्त कर ज्यादा उदार और सरल नियम बनाये जा सकें। जनविश्वास अधिनियम 2023 में 180 से अधिक कानूनी प्रावधानों को गैर-आपराधिक घोषित किया गया था। अब सरकार ने जनविश्वास विधेयक 2.0 लाने का ऐलान किया है जिसमें 100 ज्यादा प्रावधानों को गैर-आपराधिक बनाने का प्रस्ताव है। ये सभी लंबी अवधि के प्रावधान हैं जो निश्चित रूप से व्यापारिक समुदाय को राहत देंगे।
अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति में सुधार के लिए कई त्वरित उपायों की आवश्यकता है ताकि अगले वित्त वर्ष की चुनौतियों का सामना करते हुए बेहतर आर्थिक विकास दर प्राप्त की जा सके। हालांकि सरकार का आर्थिक सर्वेक्षण ही अगले वित्त वर्ष के लिए आर्थिक विकास दर सामान्य रहने का अनुमान लगा रहा है। सर्वेक्षण के मुताबिक आर्थिक विकास दर 2025-26 में 6.3 से 6.8 फीसदी के बीच रह सकती है। वैश्विक एजेंसियां भी कुछ इसी तरह के अनुमान लगा रही हैं। इस अवधि में महंगाई की दर यदि नियंत्रण में रहती है और खाने पीने के सामान की कीमतें बहुत अधिक नहीं बढ़ती हैं तो वित्त मंत्री का आयकर में छूट बढ़ाने का दांव खपत की वृद्धि में मददगार हो सकता है। लेकिन बजट के अन्य उपाय देश में औद्योगिक रफ्तार को कितना अधिक बढ़ा पाएंगे और अमेरिका की तरफ से आने वाली संभावित आर्थिक चुनौतियों का किस तरह सामना कर पाएंगी, यह देखना होगा।