केंद्र सरकार ने सरकारी खरीद व्यवस्था को अधिक पारदर्शी और कुशल बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने किसान उत्पादक कंपनियों (FPCs) और किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को मूल्य समर्थन योजना (MSP) के तहत राज्य स्तरीय एजेंसी के रूप में काम करने से रोक दिया है।
विभाग के संयुक्त सचिव पी. अनबालगन द्वारा सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि राज्य स्तर पर केवल मान्यता प्राप्त एजेंसियां ही कार्य करेंगी। पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि FPC और FPO निचले स्तर पर खरीद प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं, लेकिन प्राथमिक सहकारी समितियों को प्राथमिकता दी जाएगी।
एफपीसी और एफपीओ के लिए शर्तें
यदि कोई किसान उत्पादक कंपनी या संगठन खरीद केंद्र खोलना चाहता है, तो उसके लिए कुछ शर्तें निर्धारित की गई हैं।
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प्रत्येक एफपीसी और एफपीओ केवल एक ही खरीद केंद्र खोल सकेगा।
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संगठन का पंजीकृत होना अनिवार्य है और बीते तीन वर्षों में उसका औसत वार्षिक कारोबार कम से कम 1 करोड़ रुपये होना चाहिए।
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संगठन केवल उन्हीं गांवों या तालुकों में खरीद कर सकेगा, जहां उसके सदस्य मौजूद हैं।
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पंजीकृत कार्यालय भी उसी ब्लॉक या तालुका में होना चाहिए, जहां खरीद की जा रही है।
किसान संगठनों की प्रतिक्रिया
सरकार के इस निर्णय पर किसान संगठनों की अलग-अलग राय सामने आई है। महाराष्ट्र के एफपीसी महासंघ महाएफपीसी के प्रबंध निदेशक योगेश थोरात ने इस कदम को एफपीसी के लिए प्रतिकूल बताया। उनका कहना है कि सरकारी खरीद एफपीसी के लिए प्रशिक्षण की तरह होती है, जिससे उन्हें कमोडिटी प्रबंधन और बुनियादी ढांचे के विकास का अनुभव मिलता है।
वहीं, शेतकारी संगठन के नेता अनिल घनवट ने इस निर्णय का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि नोडल एजेंसियां केवल कमीशन लेती थीं और कोई कार्य नहीं करती थीं। ऐसे में एफपीसी और एफपीओ को राज्य स्तरीय एजेंसी से बाहर करना उचित कदम है।
भ्रष्टाचार के आरोपों की पृष्ठभूमि
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब पिछले वर्ष महाराष्ट्र में प्याज खरीद के दौरान कुछ किसान उत्पादक कंपनियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। कई संगठनों ने आरोप लगाया था कि व्यापारी अपना माल खपाने के लिए एफपीसी का उपयोग कर रहे थे। हालांकि, इस पर प्रतिक्रिया देते हुए योगेश थोरात ने इसे नियामक ढांचे की कमजोरी का परिणाम बताया था।