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अन्न भंडारण योजना: ग्रामीण युवाओं के रोजगार का नया विकल्प

केंद्र सरकार अगले पांच वर्षों में सात करोड़ टन अतिरिक्त अन्न भंडारण क्षमता विकसित करने की योजना बना रही है, जिससे पोस्ट-हार्वेस्टिंग के दौरान होने वाली हजारों करोड़ रुपये की अनाज बर्बादी को रोका जा सकेगा। इस योजना में सहकारी क्षेत्र, विशेष रूप से प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पैक्स), की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। प्रत्येक गांव में गोदाम निर्माण की योजना तीन चरणों में पूरी की जाएगी। वर्तमान में देश की कुल खाद्यान्न पैदावार का केवल 47 प्रतिशत ही भंडारण के लिए उपलब्ध है।

Published: 16:50pm, 27 May 2025

  • देश के कोने-कोने में पैक्स के माध्यम से हजारों गोदाम बनाने की तैयारी 
  • पायलट प्रोजेक्ट के तहत 11 राज्यों के 11 पैक्स में बने गोदाम में शुरू हुआ अनाज भंडारण
  • 500 अन्य पैक्स में गोदाम निर्माण का चल रहा कार्य 
  • विश्व की सबसे बड़ी अन्न भंडारण योजना पर आएगी एक लाख करोड़ रुपये की लागत

विश्व की सबसे बड़ी आबादी का पेट भरने और पुख्ता खाद्य सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार जहां खाद्यान्न की पैदावार बढ़ाने के लिए उत्पादकता पर जोर दे रही है, वहीं उपज के सुरक्षित भंडारण को उच्च प्राथमिकता दी जा रही है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक लाख करोड़ रुपये की लागत से प्रधानमंत्री अन्न भंडारण योजना की शुरुआत की गई है। इसके तहत पैक्स के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में अनाज के गोदाम बनाए जा रहे हैं। इस योजना से न सिर्फ गांवों में ही अनाज भंडारण को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि यह ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर भी खोलेगा। इसके अलावा, भंडारण के दौरान अनाज की होने वाली क्षति को भी रोका जा सकेगा। गांव में गोदाम बनेगा तो उनका रखरखाव, प्रबंधन करने जैसे प्रत्यक्ष रोजगार के अलावा अनाजों की ढुलाई सहित अन्य अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा होंगे जो निश्चित तौर पर उस गांव और पंचायत के युवाओं के लिए ही उपलब्ध होंगे जहां यह बनेगा। इसके साथ ही कृषि और उससे संबंधित अन्य बुनियादी सुविधाओं का भी निर्माण होगा जिसमें भी रोजगार के नए अवसर बनेंगे।

इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत पांच वर्ष में कुल सात करोड़ टन खाद्यान्न भंडारण क्षमता विकसित की जाएगी। इसमें सबसे अहम भूमिका सहकारी क्षेत्र की निचली इकाई पैक्स की है। पैक्स को कस्टम हायरिंग सेंटर बनाने, किसानों से अनाज की खरीद करने, मंडियों से अनाज खरीद के बाद उसकी प्राथमिक प्रोसेसिंग केंद्र स्थापित करने और खाद्यान्न के भंडारण की क्षमता विकसित करने के लिए नामित किया गया है। योजना को देश भर में लागू करने के पहले चरण में पायलट प्रोजेक्ट के लिए कुल 24 राज्यों के 24 जिलों की कुल 24 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) का चयन किया गया है। इनमें से 11 राज्यों के 11 पैक्स में गोदाम का निर्माण कर उनमें भंडारण शुरू किया जा चुका है। इनका निर्माण राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी), राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) और नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज (नैबकॉन्स) के सहयोग से किया गया है।

इन 11 राज्यों में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, असम, तेलंगाना, त्रिपुरा और राजस्थान के 11 पैक्स शामिल हैं। इन सभी ने मिलकर कुल 9,750 टन भंडारण क्षमता का निर्माण किया है। पायलट प्रोजेक्ट की सफलता से उत्साहित होकर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों ने विस्तारित पायलट के तहत भाग लेने के लिए 575 अतिरिक्त पैक्स की पहचान की। इनमें से 500 पैक्स में गोदाम के निर्माण के लिए शिलान्यास किया जा चुका है। 326 पैक्स के डीपीआर प्रस्तुत किए गए हैं और 136 पैक्स का वित्तीय समापन पूरा हो चुका है। इन गोदामों की क्षमता उपयोग के लिए एफसीआई, एनसीडीसी और खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के बीच एमओयू (समझौता ज्ञापन) हो चुका है।

अनुमान है कि 2047 तक भारत की आबादी लगभग 1.61 अरब हो जाएगी जिसके लिए खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ खाद्यान्न भंडारण के बुनियादी ढांचे में पर्याप्त वृद्धि की आवश्यकता होगी। यह परियोजना जमीनी स्तर पर भंडारण क्षमता को बढ़ाकर खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने में योगदान देगी। यह पैक्स को भी मजबूत करेगा, फार्मगेट इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करेगा और किसानों की आय बढ़ाएगा। समग्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होगी जिससे आत्मनिर्भर भारत का निर्माण होगा।

सभी ब्लॉकों में बनेंगे गोदाम

ग्रामीण गोदामों के निर्माण के पहले चरण में देश के सभी ब्लॉकों में गोदाम बनाए जाएंगे। इस हिसाब से तकरीबन 50,000 टन गोदामों का निर्माण पहले चरण में होने का अनुमान है। इस योजना में नई फ्लेक्सी तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। इसके तहत ग्राम पंचायत स्तर पर अनाज की जरूरत के हिसाब से 50, 100, 250, 500 और 750 टन क्षमता के साइलोज (आधुनिक तकनीक से स्टील के गोदाम) और सामान्य गोदाम बनाए जा रहे हैं। पैक्स के बनाए इन गोदामों को भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और अन्य प्राइवेट एजेंसियों को भंडारण के लिए किराये पर दिया जाएगा। इससे पैक्स की आमदनी बढ़ेगी।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर पैक्स के खरीदे अनाज की बिक्री की जा सकेगी। इन गोदामों  में अनाज की प्रोसेसिंग की भी सुविधा होगी, जिससे उपज को मूल्यवर्धित करके बेचा जा सकेगा। ग्राम स्तर पर बनाए जाने वाले छोटे गोदामों से किसानों को बहुत लाभ होगा। इसके अलावा, सरकारी एजेंसियों द्वारा किसानों से खरीदे गए अनाज को राशन की दुकानों तक पहुंचाने का खर्च भी कम होगा। अभी होता यह है कि गांव से अनाज शहर के गोदामों तक पहुंचता है और वहां से फिर गांव के राशन दुकानों तक पहुंचाया जाता है। इससे माल ढुलाई का खर्च दोगुना हो जाता है। गांव में जब गोदाम बन जाएंगे तो अनाजों को राशन की दुकानों तक पहुंचाने के खर्च में काफी कमी आएगी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अनुसार, आगामी पांच वर्षों में देश में खाद्यान्न भंडारण की क्षमता सात करोड़ टन तक हो जाएगी। इससे देश में खाद्यान्न की बर्बादी रोकने में मदद मिलेगी। इस दिशा में सहकारिता क्षेत्र से और अधिक अपेक्षाएं हैं। सहकारिता केवल एक व्यवस्था नहीं बल्कि यह एक भावना और चेतना है। सहकारिता जीवन यापन से जुड़ी एक सामान्य व्यवस्था को एक बड़ी औद्योगिक शक्ति में बदल सकती है। यह देश की अर्थव्यवस्था, खासकर कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था के कायाकल्प का एक प्रामाणिक तरीका है। सहकार से समृद्धि का जो संकल्प देश ने लिया है, उसे साकार करने की दिशा में अन्न भंडारण योजना बड़ा कदम है। इसके तहत देश में कोने-कोने में हजारों गोदाम बनाए जाएंगे। ये सभी काम कृषि के बुनियादी ढांचे को विस्तार देने में सहायक होंगे और उन्हें आधुनिक टेक्नॉलॉजी से जोड़ेंगे।

आधे से भी कम अनाजों का भंडारण 

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा खाद्यान्न उत्पादक देश है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान में फसल वर्ष 2024-25 में 33.09 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान लगाया गया है। भारत में खाद्यान्न भंडारण की कुल क्षमता केवल 14.49 करोड़ टन यानी करीब 47 प्रतिशत है, जबकि अन्य देशों में भंडारण क्षमता उत्पादन के मुकाबले 131 प्रतिशत तक है। वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न उत्पादक देशों में उत्पादन के मुकाबले भंडारण क्षमता अधिक है। देश में गोदामों की कम संख्या और अपर्याप्त भंडारण क्षमता की वजह से खाद्यान्न की बर्बादी होती है और किसानों पर अपने उपज के गैर-लाभकारी मूल्यों पर बेचने का दबाव भी रहता है।

वैश्विक स्तर पर चीन में खाद्यान्न उत्पादन 61.5 करोड़ टन के मुकाबले भंडारण क्षमता 66 करोड़ टन है और अमेरिका में  42.2 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन के मुकाबले 68 करोड़ टन की भंडारण क्षमता है। ब्राजील, रूस, अर्जेंटीना, यूक्रेन, फ्रांस और कनाडा में भी खाद्यान्न उत्पादन के मुकाबले उनकी अन्न भंडारण क्षमता अधिक है। इनके मुकाबले भारत में कुल खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में करीब 18 करोड़ टन खाद्यान्न भंडारण की कमी है।

खाद्यान्न की विकेंद्रीकृत खरीद होने से आपूर्ति श्रृंखला मजबूत होगी, जिसमें पैक्स, निजी क्षेत्र और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) जैसी सरकारी एजेंसी शामिल होगी। स्थानीय स्तर पर सरकारी खरीद होने से स्थानीय जरूरतें भी वहीं से पूरी की जा सकेंगी। आसपास की मंडियों और रियायती दर की राशन दुकानों पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए कम लागत में खाद्यान्न की सप्लाई की जा सकेगी। इससे जहां एक ओर महंगाई पर काबू पाने में मदद मिलेगी, वहीं सरकारी खजाने पर खाद्य सब्सिडी का बोझ भी घटेगा। पैक्स के स्तर पर कस्टम हायरिंग सेंटर खोले जाने से उपज बढ़ाने और फसल की बर्बादी को रोकने में सहायता मिलेगी। कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर कोष और कृषि मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर योजना में पैक्स को सब्सिडी देने का प्रावधान किया गया है। इससे गोदामों में अनाज के भंडारण से पहले अनाज की सफाई, अनाज की छंटाई और अनाज को सुखाने जैसे उपकरणों की खरीद की जा सकेगी। इससे भी रोजगार बढ़ेगा।

एनबीसीसी गोदाम निर्माण की नोडल एजेंसी

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी), राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) और सहकारिता मंत्रालय एवं उपभोक्ता मामले के मंत्रालय के समन्वय से पूरे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में यह योजना लागू की जा रही है। पूरी योजना के क्रियान्वयन का महत्वपूर्ण दायित्व राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी) को सौंपा गया है।  पीएम अन्न भंडारण योजना में अपनी भागीदारी को लेकर राज्यों ने उत्साह दिखाना शुरू कर दिया है।

सहकारी क्षेत्र की संस्था भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ (एनसीसीएफ) और भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नैफेड) ने आगे बढ़कर हिस्सा लेना शुरू किया है। इसके लिए केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय निर्माण एजेंसी राष्ट्रीय भवन निर्माण निगम (एनबीसीसी) को नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया है। एनबीसीसी सहकारिता क्षेत्र की निचली इकाई प्राथमिक कृषि ऋण समिति (पैक्स) के साथ मिलकर ग्रामीण भंडार गृहों का निर्माण कर रही है। सहकारिता मंत्रालय की देखरेख में एनबीसीसी ने अब तक दो सौ से अधिक समझौता ज्ञापन (एमओयू) कर लिया है।

दाल सब्जियों के भी गोदाम

सहकारिता क्षेत्र की एजेंसी एनसीसीएफ दाल और सब्जियों के भंडारण के लिए अलग-अलग उत्पादक राज्यों में गोदाम बनाने की प्रक्रिया पूरी कर रही है। इसी तरह नैफेड ने भी अपने उत्पादक केंद्रों एवं मंडियों में पैक्स के साथ मिलकर गोदाम बनाने का फैसला किया है। इससे पैक्स को एक सुनिश्चित आमदनी की गारंटी प्राप्त हो जाएगी। विभिन्न राज्यों में एनसीसीएफ और नैफेड ने 2,500 से अधिक पैक्स को चिन्हित किया है, जहां गोदाम बनाए जा सकते हैं। सब्जियों के गोदाम बनने से इसकी खेती को भी बढ़ावा मिलेगा जिससे किसानों की आमदनी में वृद्धि होगी।

पारंपरिक फसलों की तुलना में सब्जी की खेती से ज्यादा आमदनी होती है। इसलिए युवा किसान इस ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं। हालांकि, सब्जी भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने से सब्जी उत्पादकों को कई बार भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है। भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था हो जाने से न सिर्फ आर्थिक नुकसान को कम किया जा सकेगा, बल्कि सब्जियों की बर्बादी भी रुकेगी। सहकारिता मंत्रालय की एक सूचना के मुताबिक, उत्तराखंड और झारखंड जैसे राज्य अपने यहां पैक्स के साथ बनाए जाने वाले गोदामों का निर्माण राज्य एजेंसियों से कराना चाहते हैं। उन्हें इसकी अनुमित दे दी गई है।

पीएम अन्न भंडारण योजना से पैक्स से जुड़े तकरीबन 13 करोड़ किसानों का लाभ होगा। सहकारी क्षेत्र से जुड़े इन किसानों को खेती के इनपुट खाद, बीज व कीटनाशक समेत अन्य वस्तुओं की आपूर्ति सहकारी संस्थाओं से होती है। देश के सभी पैक्स को 352 डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंकों और 34 स्टेट कोऑपरेटिव बैंकों से तकरीबन पांच लाख करोड़ रुपये का सालाना ऋण वितरित किया जाता है। इसमें 1.3 लाख करोड़ रुपये नाबार्ड द्वारा री-फाइनेंस किया जाता है।

देश में खाद्यान्न भंडारण की कमी से देश की खाद्य सुरक्षा और किसानों को भारी क्षति हुई है। भारत जितना अनाज पैदा करता है, उसका 50 प्रतिशत से भी कम भंडारण कर पाता है। दुनिया की सबसे बड़ी भंडारण योजना से देश के किसानों का सामर्थ्य बढ़ेगा और गांवों में नए रोजगार पैदा होंगे। गांवों में खेती से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 40 हजार करोड़ रुपये का निवेश हो चुका है। इसमें बहुत बड़ा हिस्सा सहकारी समितियों (पैक्स) का है।

फार्मगेट इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में कोल्ड स्टोरेज जैसी व्यवस्थाओं के निर्माण में सहकारी सेक्टर को और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। नए भारत में सहकारिता देश की आर्थिक धारा का सशक्त माध्यम बनेगी। सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना कृषि क्षेत्र के लिए एक बड़ा बदलाव लाने वाली है, जो किसानों और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए लचीलापन, दक्षता और समृद्धि सुनिश्चित करेगी। सरकार का प्रयास ऐसे गांवों के निर्माण की तरफ भी बढ़ना है, जो सहकारिता के मॉडल पर चलकर आत्मनिर्भर बनें।

अन्न भंडारण योजना के लाभ

इस पहल से व्यापक आर्थिक और सामाजिक लाभ होने की उम्मीद है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

1. फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान में कमीः उचित विकेंद्रीकृत भंडारण सुविधाओं से फसल कटाई के बाद खराब होने और कीटों के कारण अनाज की बर्बादी रोकने में मिलेगी।

2. खाद्य सुरक्षा में वृद्धिः भंडारण में वृद्धि से स्थिर खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित होगी।

3. किसानों की आय में वृद्धिः किसान अपनी उपज का भंडारण कर सकेंगे और दबाव में कम कीमत पर बेचने की बजाय उचित समय पह बेहतर कीमत पर सकेंगे।

4. पैक्स के गोदामों को खरीद केंद्र और राशन दुकान के रूप में मिलेगी मान्यताः खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने जिला सहकारी विकास समिति (डीसीडीसी) में स्वीकृत पैक्स को अनाज खरीद केंद्र और उचित मूल्य की दुकान दोनों के रूप में मान्यता देने के आदेश जारी किए हैं। इससे परिवहन लागत कम होगी और ग्रामीण नागरिकों की खाद्यान्न तक पहुंच आसान होगी।

5. सहकारी बुनियादी ढांचे को मजबूत करनाः पैक्स इस योजना को जमीनी स्तर पर लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, जिसके परिणामस्वरूप प्राथमिक स्तर पर सहकारी संरचना मजबूत होगी।

6. बेहतर आपूर्ति श्रृंखला दक्षताः सुव्यवस्थित भंडारण और वितरण से बिचौलियों पर निर्भरता कम होगी और बाजार पहुंच में सुधार होगा।

7. ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावाः इस योजना से कृषि उपज के मूल्य संवर्धन को बढ़ावा मिलेगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

8. रोजगार के नए अवसरः ग्रामीण इलाकों में गोदामों के निर्माण एवं कृषि संबंधी अन्य बुनियादी सुविधाओं के विकास से स्थानीय स्तर पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी।

YuvaSahakar Desk

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