
रंगीन मछलियों की मांग लगातार बढ़ रही है और अच्छी बात यह है कि इनका पालन करना न केवल आसान है, बल्कि इसमें अधिक खर्च भी नहीं आता।
आजकल रंगीन मछलियों का पालन न केवल सजावट के लिए बल्कि एक लाभकारी व्यवसाय के रूप में भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। वेटिंग हॉल, होटल, अस्पताल और पर्यटक स्थलों पर एक्वेरियम में ये खूबसूरत मछलियां हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं। इन मछलियों की चमक और रंगबिरंगी सुंदरता न सिर्फ आंखों को सुकून देती है, बल्कि कई लोगों के लिए यह एक शानदार आय का स्रोत भी बन रही है। बाजार में इनकी मांग लगातार बढ़ रही है, और सबसे अच्छी बात यह है कि इन्हें पालना न तो ज्यादा मुश्किल है और न ही इसके लिए भारी खर्च की जरूरत पड़ती है। सजावट के लिए छोटे एक्वेरियम में इन्हें रखा जा सकता है, वहीं व्यावसायिक स्तर पर बड़े तालाब या मछली घर बनाकर मुनाफा कमाया जा सकता है।
बिहार में मछली पालन को सरकार का सहारा
बिहार सरकार मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठा रही है। इसके तहत मछली पालकों को सब्सिडी भी दी जा रही है। मत्स्य विशेषज्ञ पूजा बताती हैं कि सही तकनीक और मेहनत के साथ एक एकड़ के तालाब से सालाना 5 से 8 लाख रुपये तक की कमाई की जा सकती है। यह न केवल मछली पालकों की आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहा है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर भी पैदा कर रहा है।
पीएम मत्स्य संपदा योजना: 60% तक अनुदान का लाभ
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मछली पालकों को तीन तरह की इकाइयों—लघु, मध्यम और वृहद—में आवेदन करने का मौका मिलता है। खास बात यह है कि बहुत कम जमीन में भी यह व्यवसाय शुरू किया जा सकता है। लघु आकार की इकाई के लिए मात्र 1200 स्क्वायर फीट जमीन की जरूरत होती है, जिसमें करीब 3 लाख रुपये का खर्च आता है। इस खर्च पर सरकार सामान्य वर्ग को 40% अनुदान देती है, जबकि महिलाओं, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लाभार्थियों को 60% तक का अनुदान मिलता है। इसके साथ ही, मछली पालकों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है ताकि वे इस व्यवसाय को बेहतर तरीके से चला सकें। अधिक जानकारी के लिए नजदीकी जिला मत्स्य कार्यालय से संपर्क किया जा सकता है।
इन रंगीन मछलियों की प्रजातियों से करें शुरुआत
रंगीन मछलियों की कई प्रजातियां हैं, जो सजावट और व्यवसाय दोनों के लिए उपयुक्त हैं। इनमें कार्प मछलियां जैसे गोल्ड फिश, ब्लैक रूबी बार्ब, टाइगर बार्ब, रोजी बार्ब, रेड रासबोरा, ड्वार्फ रासबोरा, डेनियो और बाधी मछली शामिल हैं। पोयसिलिया मछलियों में ब्लैक मौली, गप्पी, प्लेटी, स्वार्ड टेल और गम्बुसिया प्रमुख हैं। सिचलिड मछलियों में डिस्कस फिश, एंजल फिश, ज्वैल फिश, फायर माउथ सिचलिड, ड्वार्फ सिचलिड, ऑस्कर फिश, तिलापिया और ऑरेंज क्रोमाइड पसंद की जाती हैं। इसके अलावा, वायु श्वासी मछलियां जैसे जायन्ट गोरामी, पर्ल गोरामी, ड्वार्फ गोरामी, हनी गोरामी, इंडियन पैराडाइस फिश, ब्लू गोरामी, किसिंग गोरामी, सियामिस, फाइटर फिश और स्पॉट गोरामी भी काफी लोकप्रिय हैं।
एक्वेरियम का चयन और देखभाल
मछली पालन के लिए एक्वेरियम का सही चयन बहुत जरूरी है। विशेषज्ञों के अनुसार, एक्वेरियम का ऊपरी सतह क्षेत्र जितना बड़ा होगा, मछलियों के लिए उतना ही बेहतर होगा। बाजार में कई आकार और आकृतियों के एक्वेरियम उपलब्ध हैं, लेकिन 60 सेंटीमीटर लंबाई, 30 सेंटीमीटर चौड़ाई और 38 सेंटीमीटर ऊंचाई वाला एक्वेरियम आदर्श माना जाता है। इसे ऐसी जगह रखें जहां सूर्य की रोशनी अप्रत्यक्ष रूप से आए। जल का तापमान 22 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए, हालांकि मछलियां 20 से 29 डिग्री सेल्सियस में भी रह सकती हैं। मछलियां ज्यादा ठंड सहन नहीं कर पातीं, इसलिए तापमान का विशेष ध्यान रखें।
मछलियों की सेहत का रखें ख्याल
एक्वेरियम में पानी की गुणवत्ता का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। मछलियों के बचे हुए भोजन और मल से पानी दूषित हो सकता है, जिससे अमोनिया बनता है और पानी से दुर्गंध आने लगती है। ऐसे में हर 15 दिन में फिल्टर की मदद से पानी की सफाई करनी चाहिए। साथ ही, पानी में ऑक्सीजन की उचित मात्रा सुनिश्चित करें। एक 60x30x38 सेंटीमीटर के एक्वेरियम में औसतन 2.5 सेंटीमीटर लंबाई की 24 मछलियां पाली जा सकती हैं।
मछलियों में रोग की पहचान कैसे करें?
मत्स्य विशेषज्ञ पूजा के अनुसार, बीमार मछलियों को पहचानने के लिए कुछ संकेतों पर ध्यान देना चाहिए। अगर मछलियां भोजन में रुचि नहीं ले रही हैं, अचानक सुस्त हो गई हैं, तेजी से इधर-उधर झपट रही हैं, अपने शरीर को शीशे या कंकड़ पर रगड़ रही हैं, एक ही जगह पर मचल रही हैं या पानी की ऊपरी सतह पर तैर रही हैं, तो यह बीमारी का संकेत हो सकता है। ऐसे में तुरंत विशेषज्ञ से संपर्क करें।
निष्कर्ष
रंगीन मछलियों का पालन एक ऐसा व्यवसाय है, जो कम लागत में ज्यादा मुनाफा दे सकता है। सरकार की योजनाओं और सब्सिडी का लाभ उठाकर न केवल मछली पालक अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सकते हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और सजावट के क्षेत्र में भी योगदान दे सकते हैं। यह एक ऐसा अवसर है, जो ग्रामीण भारत में समृद्धि की नई कहानी लिख सकता है।