भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अंतर्गत केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (CMFRI) ने देश में बढ़ती समुद्री खाद्य मांग को पूरा करने हेतु एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। संस्थान ने वर्ष 2047 तक 25 लाख टन समुद्री मत्स्य (Mariculture) उत्पादन प्राप्त करने का संकल्प लिया है, जबकि वर्तमान में यह उत्पादन लगभग 1.5 लाख टन है। यह पहल केंद्र सरकार की आत्मनिर्भर भारत अभियान तथा सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप है, जो तटीय क्षेत्रों के मछुआरों एवं मत्स्य किसानों की आर्थिक उन्नति सुनिश्चित करेगी।
CMFRI के निदेशक डॉ. ग्रिन्सन जॉर्ज ने कहा कि समुद्री मत्स्य क्षेत्र में समुद्री खेती (Mariculture) अगली बड़ी क्रांति साबित होगी। उन्होंने बताया कि केज कल्चर (Cage Culture) और इंटीग्रेटेड मल्टी-ट्रॉफिक एक्वाकल्चर (IMTA) जैसी अत्याधुनिक तकनीकों के प्रयोग से समुद्री मछली उत्पादन को काफी बढ़ाया जा सकता है। यह जानकारी उन्होंने CMFRI में आयोजित मत्स्य किसानों के प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान दी, जो केंद्र सरकार की ‘प्रधानमंत्री धन धान्य कृषि योजना (PMDDKY)’ के राष्ट्रीय शुभारंभ अवसर पर आयोजित किया गया।
डॉ. जॉर्ज ने बताया कि भारत में प्राकृतिक समुद्री मत्स्य उत्पादन औसतन 35 लाख टन प्रति वर्ष है। हालांकि जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों की कमी के कारण अब समुद्री खेती जैसी वैकल्पिक प्रणाली अपनाना आवश्यक हो गया है। CMFRI ने भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप कई समुद्री खेती तकनीकें विकसित की हैं, जिससे उत्पादन क्षमता और मछुआरों की आय दोनों में वृद्धि की जा सकती है।
उन्होंने सीवीड (Seaweed) खेती को भी एक महत्वपूर्ण घटक बताया। विश्व स्तर पर सीवीड उत्पादन लगभग 3.55 करोड़ टन है, जबकि भारत में यह उत्पादन अभी भी बहुत कम है। CMFRI के अनुसार, देश में कम से कम 50 लाख टन सीवीड उत्पादन का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है, जिससे औद्योगिक और न्यूट्रास्यूटिकल उद्योगों की मांग पूरी की जा सके।
डॉ. जॉर्ज ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत के पास प्राकृतिक संसाधन और वैज्ञानिक क्षमता है कि वह दुनिया का अग्रणी समुद्री खेती केंद्र बन सके। उन्होंने कहा कि यदि आधुनिक तकनीक अपनाई जाए और मजबूत नीतिगत ढांचा तैयार किया जाए, तो समुद्री खेती तटीय भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे सकती है। इसके लिए राष्ट्रीय समुद्री खेती नीति और सहायक कानूनी ढांचा बनाना भी आवश्यक है।