नाबार्ड के आर्थिक विश्लेषण एवं अनुसंधान विभाग द्वारा जारी एक ताजा अध्ययन में सहकारी संस्थाओं की ग्रामीण विनिर्माण (रूरल मैन्युफैक्चरिंग) को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया गया है। यह रिपोर्ट नाबार्ड के मुख्य अर्थशास्त्री सितिकंठ पत्नायक और अर्थशास्त्री श्रुजन राजेंद्र राजदीप द्वारा तैयार की गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सहकारी संस्थाएँ सरकारी योजनाओं विशेषकर प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना (PM Vishwakarma) के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सबसे उपयुक्त माध्यम हैं। इसके तहत पारंपरिक कारीगरों की क्लस्टर या ब्लॉक स्तर पर सहकारी समितियाँ गठित करने और उन्हें समेकित सहयोगी तंत्र प्रदान करने की सिफारिश की गई है।
लेखकों ने बताया कि सरकार की मध्यम अवधि की सहकारी क्षेत्र योजना के तहत 2 लाख नई बहुउद्देशीय प्राथमिक कृषि साख समितियाँ (PACS), डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियाँ गठित की जाएँगी। जो देश के सभी पंचायतों को कवर करेंगी।
इन समितियों को कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) के रूप में विकसित किया जाएगा। जो 300 से अधिक ई-सेवाएँ प्रदान करेंगी। पीएम किसान समृद्धि केंद्रों के रूप में कार्य करेंगी और सहकारी क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण क्षमता के निर्माण में योगदान देंगी।
रिपोर्ट में आगे सुझाव दिया गया है कि प्रस्तावित राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन (National Manufacturing Mission) के तहत सहकारी संस्थाओं को ग्रामीण विनिर्माण को सशक्त बनाने में मुख्य भूमिका दी जानी चाहिए।
नाबार्ड की विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए ग्रामीण साख सहकारिताओं को पर्याप्त रीफाइनेंसिंग और निगरानी समर्थन प्रदान करना आवश्यक होगा।
लेखकों का मानना है कि इन उपायों से ग्रामीण एमएसएमई क्षेत्र (MSMEs) को मजबूत प्रोत्साहन मिलेगा और देश के USD 7.5 ट्रिलियन विनिर्माण जीवीए लक्ष्य (Manufacturing GVA by 2047) को हासिल करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया जा सकेगा।