केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह द्वारा 24 जुलाई को बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025 का अनावरण किया गया जिसने 2002 में बनी नीति की जगह ली है। सहकारिता के माध्यम से समृद्धि लाकर 2047 तक विकसित भारत का निर्माण करना नई नीति का विजन है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत कर देश की अर्थव्यवस्था में सहकारी क्षेत्र का योगदान बढ़ाना, ज्यादा से ज्यादा युवाओं को सहकारिता से जोड़ना और उनके लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करना इसका मकसद है। इसके केंद्र बिंदु में गांव, कृषि, युवा, ग्रामीण महिलाएं, दलित और आदिवासी हैं।
नई नीति में यह लक्ष्य रखा गया है कि वर्ष 2034 तक अर्थव्यवस्था में सहकारी क्षेत्र का योगदान तीन गुना बढ़े और आगामी 10 वर्षों में 50 करोड़ लोग सहकारी ढांचे से जुड़ें। इसके लिए सहकारी समितियों की संख्या में 30 प्रतिशत की वृद्धि की जाएगी। हर तहसील में 5-5 मॉडल सहकारी गांव विकसित करने के साथ हर गांव में कम से कम एक सहकारी समिति की स्थापना करने का लक्ष्य इसमें तय किया गया है। ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के युवाओं को सहकारी क्षेत्र में रोजगार प्राप्त करने के लिए तकनीकी कौशल से दक्ष बनाने का प्रावधान इसमें किया गया है।
सहकारिता अर्थव्यवस्था की बुनियाद का प्रमुख हिस्सा बन सके, इसके लिए बीते दो दशकों में हुए परिवर्तन के अनुरूप इस नीति में प्रावधान किए गए हैं। यह अगले दो दशक तक भारतीय सहकारिता आंदोलन को और मजबूत करने तथा व्यापक विस्तार देने का काम करेगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री सुरेश प्रभाकर प्रभु की अध्यक्षता में राष्ट्रीय स्तर की 48 सदस्यीय समिति ने नई नीति तैयार की है। इस समिति में राष्ट्रीय व राज्य सहकारी संघों सहित सभी स्तरों और क्षेत्रों की सहकारी समितियों के सदस्य, केंद्र और राज्य सरकारों के संबंधित मंत्रालयों एवं विभागों के प्रतिनिधि और शिक्षाविद शामिल किए गए थे।
राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025 के माध्यम से गांव-गांव तक सहकारिता आंदोलन को पहुंचाने के लिए 6 स्तंभ, 16 उद्देश्य और 82 कार्य नीतियां निर्धारित की गई हैं। 6 स्तंभों में नींव का सशक्तीकरण, जीवंतता को प्रोत्साहन, सहकारी समितियों को भविष्य के लिए तैयार करना, समावेशिता को बढ़ावा और पहुंच का विस्तार, नए क्षेत्रों में विस्तार और सहकारी विकास के लिए युवा पीढ़ी को तैयार करना शामिल है।
सहकारी शिक्षा, अनुसंधान और नवाचार के लिए उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना की जाएगी। नई नीति में राष्ट्रीय डिजिटल सहकारी रोजगार एक्सचेंज की स्थापना का सुझाव दिया गया है, जो योग्य उम्मीदवारों और सहकारी संस्थाओं के बीच सीधा और पारदर्शी संपर्क सुनिश्चित करेगा। साथ ही, एक राष्ट्रीय शिक्षक और प्रशिक्षक डेटाबेस भी तैयार किया जाएगा, जिससे नियुक्ति की प्रक्रिया अधिक सुव्यवस्थित हो सकेगी। इसके माध्यम से राज्यों के सहकारिता कानूनों में आवश्यक सुधार किए जाएंगे, ताकि सहकारी समितियों को अधिक पारदर्शी, निष्पक्ष और व्यावहारिक प्रणाली के अंतर्गत कार्य करने का अवसर मिले।
दुनिया के लिए सहकारिता एक मॉडल है, लेकिन भारत के लिए यह संस्कृति का आधार और एक जीवनशैली है। सहकारिता वह शक्ति है जो व्यक्ति की शक्तियों को सामूहिक रूप से लाकर समाज की शक्ति के रूप में परिवर्तित करती है।
देश के 140 करोड़ लोगों को साथ रखकर अर्थतंत्र का विकास करने की क्षमता केवल और केवल सहकारिता क्षेत्र में है। नेशनल युवा कोऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड (एनवाईसीएस) भी पिछले 25 वर्ष से युवाओं का कौशल विकास कर उन्हें सहकारिता से जोड़ने में अग्रसर है। नई नीति के माध्यम से एनवाईसीएस इसे और आगे बढ़ाने का प्रयास करेगी।
लेखक: प्रकाश चंद्र साहू, अध्यक्ष, NYCS