महाराष्ट्र सरकार ने एक ऐतिहासिक और दूरगामी निर्णय लेते हुए पशुधन एवं मुर्गीपालन को कृषि का दर्जा देने की घोषणा की है। इस निर्णय से महाराष्ट्र भारत का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जिसने पशुपालन और पोल्ट्री को मुख्य कृषि के समकक्ष सम्मान और सुविधा प्रदान की है। राज्य की पशु-संवर्धन मंत्री पंकजा मुंडे ने विधानसभा में इस फैसले की जानकारी दी।
76 लाख से अधिक परिवार होंगे लाभान्वित
इस नीति से राज्य के 76 लाख से अधिक पशुपालक और मुर्गीपालक लाभान्वित होंगे। सरकार का अनुमान है कि इस कदम से राज्य की आय में सालाना लगभग 7700 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी होगी। यह निर्णय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगा और बड़े पैमाने पर रोजगार अवसर भी उपलब्ध होंगे।
समान सुविधाओं का लाभ
अब तक पशुपालन और मुर्गीपालन को कृषि का सहायक व्यवसाय माना जाता था। इसके कारण पशुपालकों की सरकारी योजनाओं, सब्सिडी और ऋण तक सीमित पहुंच थी। परंतु कृषि का दर्जा मिल जाने से पशुपालक सब्सिडी, कम बिजली-पानी टैरिफ, आसान ऋण तथा कृषि योजनाओं के लाभ उठा सकेंगे।
विशेषज्ञों के अनुसार इस नए दर्जे से किसानों और पशुपालकों पर आर्थिक जोखिम कम होगा और उत्पादन की गुणवत्ता व मात्रा बढ़ेगी।
बाजार और बुनियादी ढांचे तक पहुंच
इस फैसले के बाद पशुपालकों को बेहतर बाजार, भंडारण एवं परिवहन जैसी सुविधाएं मिलेंगी। उत्पादों की बिक्री के लिए नए बाजार खुलेंगे, जिससे दूध, अंडा, मांस और अन्य उत्पादों का दायरा बढ़ेगा। इससे छोटे और सीमांत पशुपालक, जो अपनी आय के लिए पूर्णतः पशुपालन पर निर्भर रहते हैं, उन्हें सीधा लाभ होगा।
महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था में पशुधन का योगदान
महाराष्ट्र के सकल घरेलू उत्पाद में पशुसंवर्धन का योगदान 24 फीसदी है। 20वीं पशुधन गणना के अनुसार राज्य में लगभग 1.9 करोड़ पशुधन मौजूद हैं, जिनमें 1.4 करोड़ गाय-बैल और 56 लाख भेड़-बकरियां शामिल हैं। इसके अलावा, मुर्गीपालन में राज्य के पास करीब 85.18 करोड़ मुर्गियां हैं।
पुणे जिला पोल्ट्री फार्मिंग का केंद्र है, जबकि नासिक जिला डेयरी उद्योग में अग्रणी है। कोल्हापुर और सांगली जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में पोल्ट्री तेजी से बढ़ रही है। मराठवाड़ा और विदर्भ में भी पशुपालन ग्रामीण आजीविका का मुख्य आधार है।
इस फैसले का एक बड़ा सामाजिक पहलू भी सामने आया है। जिन पशुपालकों के पास जमीन नहीं है, अब उन्हें भी किसान का दर्जा मिलेगा। इससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होगी।
चुनौतियां भी मौजूद
विशेषज्ञों का कहना है कि इस क्रांतिकारी कदम के कारगर कार्यान्वयन के लिए कुछ चुनौतियां भी सामने आएंगी, जिसके लिए शासन और प्रशासन दोनों को अतिरिक्त प्रयास करने होंगे:
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ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी
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पशु चिकित्सा सेवाओं एवं चारे की समुचित उपलब्धता
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छोटी इकाइयों तक सस्ते ऋण और वित्तीय पहुंच
इसके समाधान के लिए सरकार स्थानीय प्रशासन, सहकारी समितियों और गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से विशेष योजनाएं तैयार करेगी।
महाराष्ट्र में कृषि और पशुपालन सदैव परस्परपूरक रहे हैं। फसल खराब होने की स्थिति में पशुपालन किसानों के लिए अतिरिक्त एवं वैकल्पिक आय का साधन बनता है। अब कृषि का दर्जा मिलने से यह क्षेत्र और सशक्त होगा।
पशुधन विकास मंडल की भूमिका
महाराष्ट्र पशुधन विकास मंडल भी इस नई नीति को लागू करने में अहम भूमिका निभाएगा। यह संस्था देसी नस्लों के संरक्षण, दुग्ध उत्पादन वृद्धि व बेरोजगार पशु चिकित्सकों को अवसर उपलब्ध कराने की दिशा में कार्यरत है