छत्तीसगढ़ की ग्रामीण और कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में डेयरी फार्मिंग लगातार नई संभावनाओं के द्वार खोल रही है। राज्य में 80 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। अब सरकार का ध्यान कृषि के साथ-साथ डेयरी क्षेत्र पर भी केंद्रित है, जिससे किसानों और खासकर महिलाओं की आमदनी बढ़ाई जा सके।
राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने हाल ही में सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले में ‘दुधारू पशु योजना’ के तीसरे चरण का शुभारंभ किया। इस योजना के तहत अनुसूचित जनजाति वर्ग की महिलाओं को उच्च नस्ल की दुधारू गायें उपलब्ध कराई जा रही हैं। इस पहल का उद्देश्य आदिवासी इलाकों में दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देना और ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है।
योजना की शुरुआत राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) और उसकी सहायक इकाई एनडीडीबी डेयरी सर्विसेज (एनडीएस) के सहयोग से की गई है। फिलहाल यह योजना छह जिलों – कोंडागांव, कांकेर, सारंगढ़-बिलाईगढ़, जशपुर, बलरामपुर और महासमुंद में लागू की गई है। इन क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं, लेकिन खेती और वनोपज से इतर अतिरिक्त आय के अवसर सीमित रहे हैं।
राज्य सहकारी दुग्ध महासंघ (सीजीसीडीएफ) के आंकड़ों के अनुसार, फिलहाल 665 से अधिक डेयरी सहकारी समितियां सक्रिय हैं, जो रोजाना 82,000 लीटर दूध का उत्पादन करती हैं। सरकार का लक्ष्य आगामी तीन वर्षों में इन सोसायटीज की संख्या को बढ़ाकर 3850 तक पहुंचाने और दुग्ध संग्रहण को 82,000 लीटर से बढ़ाकर पांच लाख लीटर प्रतिदिन तक पहुंचाने का है। इस दिशा में 3200 बहुउद्देशीय प्राथमिक डेयरी सहकारी समितियों की स्थापना भी प्रस्तावित है।
योजना के तहत गांव-गांव में 220 बल्क मिल्क कूलर इकाइयों की स्थापना की जाएगी और दुग्ध प्रसंस्करण क्षमता को तीन गुना बढ़ाकर चार लाख लीटर प्रतिदिन किया जाएगा। इससे ग्रामीण स्तर पर दुग्ध उत्पादन से जुड़े किसानों और महिलाओं को सीधा आर्थिक लाभ मिलेगा।
महिला सशक्तिकरण की दिशा में बड़ा कदम
योजना की सबसे खास बात यह है कि दुधारू गायें सीधे आदिवासी महिला किसानों को दी जा रही हैं। इससे महिलाओं की सीधी भागीदारी सुनिश्चित होगी। अब तक महिलाओं की भूमिका दुग्ध उत्पादन में महत्वपूर्ण तो रही है, लेकिन औपचारिक तौर पर उनका योगदान कम आंका जाता रहा है। इस योजना के माध्यम से महिलाएं न केवल आय अर्जित करेंगी, बल्कि परिवार और समाज में आर्थिक रूप से सशक्त होंगी।
मुहिम से जुड़ेंगे 1.5 लाख पशुपालक
वर्तमान में राज्य की सहकारी समितियों से 16,324 पशुपालक जुड़े हैं। सरकार का लक्ष्य है कि आने वाले वर्षों में इस संख्या को बढ़ाकर 1.5 लाख तक किया जाए। किसानों और पशुपालकों को आधुनिक तकनीक से लैस किया जाएगा। दूध की गुणवत्ता जांचने और भुगतान की त्वरित व्यवस्था के लिए डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा।
वनांचल में आर्थिक बदलाव की उम्मीद
छत्तीसगढ़ की दुधारू पशु योजना केवल आर्थिक सुधार की पहल नहीं है, बल्कि यह आदिवासी इलाकों में सामाजिक और आर्थिक बदलाव की उम्मीद भी जगाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सहकारी समितियां, सरकार और एनडीडीबी मिलकर योजनाओं को धरातल पर पूरी क्षमता से उतारते हैं तो आने वाले समय में छत्तीसगढ़ भी उन राज्यों में शामिल हो सकता है, जहां डेयरी फार्मिंग आर्थिक विकास की रीढ़ बनी है।