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अगले तीन साल में भारत बनेगा दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर: आईआईपीआर

भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आईआईपीआर) के 33वें स्थापना दिवस पर दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की रणनीतियों और नयी तकनीकों की जानकारी दी गई। संस्थान ने अब तक 85 प्रजातियाँ विकसित की हैं और किसानों तक उन्नत बीज व तकनीक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नई मूंग की प्रजाति विराट किसानों को जल्दी उपज और रोग सहनशीलता के साथ अधिक लाभ देने वाली साबित हो रही है।

Published: 15:00pm, 08 Sep 2025

भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आईआईपीआर) ने अपने 33वें स्थापना दिवस समारोह के उपलक्ष्य में दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में उठाए गए कदमों की विस्तृत जानकारी दी। संस्थान के निदेशक डॉ. जीपी दीक्षित ने बताया कि आगामी तीन वर्षों में भारत दलहन उत्पादन में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जाएगा। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत किसानों के लिए दलहन उत्पादन को लाभकारी बनाने पर विशेष बल दिया जा रहा है।

उन्नत प्रजातियों का विकास और तकनीक का प्रसार

आईआईपीआर ने अब तक कुल 85 नई दलहन प्रजातियां विकसित की हैं। केंद्र सरकार की योजनाओं के माध्यम से इन उन्नत बीजों को किसानों तक पहुँचाने का कार्य निरंतर जारी है। पिछले एक वर्ष में संस्थान के वैज्ञानिकों ने 19 हजार से अधिक किसानों तक नई खेती तकनीकों की जानकारी पहुंचाकर उत्पादन क्षमता बढ़ाने में सहयोग दिया है।

मूंग की नई प्रजाति विराट एक विशेष सफलता

संस्थान द्वारा विकसित मूंग की प्रजाति विराट को विशेष सफलता के रूप में प्रस्तुत किया गया। यह प्रजाति 52 से 55 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जिससे इसे धान और गेहूं के फसल चक्र के बीच उगाया जा सकता है। विराट मूंग पीले मोजेक वायरस जैसी बीमारियों के प्रति सहनशील है और इसकी उपज क्षमता 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंचती है, जो पारंपरिक किस्मों से कहीं बेहतर है। किसान इस नई किस्म के माध्यम से जल्दी फसल लेकर अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं।

समारोह और महत्वपूर्ण समझौते

स्थापना दिवस समारोह का शुभारंभ सीएसजेएमयू के कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सुनील चंद्र दुबे तथा राष्ट्रीय शर्करा संस्थान की निदेशक डॉ. सीमा परोहा ने किया। दलहन नवाचार को बढ़ावा देने हेतु सीएसजेएम इनोवेशन फाउंडेशन और पल्सेस इनोवेशन हब एबीआईसी के साथ आईआईपीआर के बीच महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी किए गए।

विशेषज्ञों का योगदान और वैज्ञानिकों का सम्मान

प्रो. विनय कुमार पाठक ने कृषि क्षेत्र में डेटा प्रबंधन तथा एनालिसिस के महत्व पर जोर दिया। वहीं, डॉ. सुनील चंद्र दुबे ने दलहन के महत्व और शोध पर रिपोर्ट साझा की। संस्थान ने अपने उत्कृष्ट वैज्ञानिकों तथा कर्मचारियों को उनके योगदान के लिए सम्मानित भी किया। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एमएच. कोडंडाराम और युवा वैज्ञानिक डॉ. सुजयानंद जीके को विशेष पुरस्कार से नवाजा गया। तकनीकी, वित्त एवं प्रशासनिक क्षेत्रों में भी कर्मियों को सम्मानित किया गया। साथ ही, कानपुर देहात के प्रगतिशील किसान शंतनु मिश्रा को भी उनकी उपलब्धियों के लिए पुरस्कृत किया गया।

YuvaSahakar Desk

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