उत्तराखंड सरकार ने राज्य के पहाड़ी और ग्रामीण क्षेत्रों में पड़ी बंजर एवं बेकार जमीन को कृषि योग्य बनाने की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाते हुए “वीर माधो सिंह भंडारी सामूहिक सहकारी खेती योजना” का शुभारंभ किया है। इस योजना के तहत खाली पड़ी जमीनों पर पारंपरिक और आधुनिक कृषि तकनीकों का प्रयोग करते हुए सामूहिक खेती की जाएगी। इसके माध्यम से न केवल भूमि का पुनरुत्थान होगा, बल्कि किसानों की आय भी बढ़ेगी।
पारंपरिक खेती से होगी शुरुआत
योजना के प्रारंभिक चरण में पारंपरिक खेती की शुरुआत की जाएगी ताकि मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सके। उसके बाद, जब मिट्टी की उर्वरा शक्ति बेहतर होगी, तब खाद्यान्न, बागवानी, मिलेट्स और फूलों की खेती को प्रोत्साहित किया जाएगा। यह प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से लागू की जाएगी ताकि स्थायी और लाभकारी कृषि मॉडल स्थापित हो सके।
पौड़ी से हुई योजना की शुरुआत
उत्तराखंड सरकार ने इस योजना का औपचारिक शुभारंभ पौड़ी जिले के पाबौ विकासखंड से किया है। सहकारिता मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने एक कार्यक्रम के दौरान इस योजना की घोषणा करते हुए बताया कि यह पहल राज्य के ग्रामीण इलाकों में बंजर भूमि के उपयोग, पारंपरिक खेती के आधुनिकीकरण और किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने की दिशा में एक निर्णायक प्रयास है।
क्लस्टर मॉडल में खेती का विकास
यह योजना क्लस्टर मॉडल पर आधारित है, जिसके तहत ग्रामीणों की बंजर भूमि को संगठित रूप से लेकर, आधुनिक कृषि तकनीकों के माध्यम से कृषि कार्य किए जाएंगे। पाबौ के चोपड़ा गांव में करीब 170 नाली भूमि पर एक पायलट परियोजना शुरू की गई है, जो आगे चलकर एक आदर्श मॉडल के रूप में विकसित की जाएगी।
फूलों और मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा
योजना के अगले चरणों में, राज्य के अन्य विकासखंडों में मोटे अनाज (मिलेट्स) और फूलों की खेती को भी बढ़ावा दिया जाएगा। इससे न केवल जमीन की उपयोगिता बढ़ेगी, बल्कि किसानों को अतिरिक्त आय के स्रोत भी मिलेंगे। सामूहिक सहकारी खेती के माध्यम से किसानों को संगठित कर उत्पादन, विपणन और मुनाफे के स्तर पर व्यापक सुधार लाया जाएगा।