
सरकार की यह पहल न केवल मत्स्य पालन क्षेत्र को बढ़ावा देगी, बल्कि तटीय मछुआरों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाएगी।
भारत सरकार अब मछली पालन को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए कमर कस रही है। विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) और समुद्र के गहरे जल में मत्स्य पालन को व्यवस्थित और सुरक्षित बनाने के लिए नए दिशानिर्देश तैयार किए जा रहे हैं। यह कदम न केवल तटीय मछुआरों के लिए बेहतर संसाधन और आजीविका सुनिश्चित करेगा, बल्कि समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखते हुए देश में सतत मत्स्य पालन को भी एक नई दिशा देगा। मछुआरों की जिंदगी में खुशहाली लाने और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम साबित होगा।
अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन
मत्स्य पालन विभाग ने ईईजेड और समुद्र में मछली पकड़ने के लिए नए नियमों का मसौदा तैयार करने के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन किया है। यह जानकारी मत्स्य विभाग ने कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर संसद की स्थायी समिति को दी। समिति ने पिछले महीने फरवरी में दो अहम बैठकें कीं, जिसमें सतत मत्स्य पालन के लिए उठाए जा रहे कदमों पर चर्चा हुई। संसदीय समिति ने खासतौर पर ईईजेड और उच्च समुद्र में मत्स्य पालन की दिशा में सरकार की योजनाओं पर सवाल उठाए थे, जिसके जवाब में विभाग ने अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
द्वीपों में मत्स्य पालन को बढ़ावा
मत्स्य पालन विभाग ने अंडमान एवं निकोबार और लक्षद्वीप द्वीपसमूह में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए एक रणनीतिक कार्य योजना तैयार की है। इसके लिए बजट की रूपरेखा भी बनाई जा रही है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत जलवायु परिवर्तन से प्रभावित तटीय समुदायों की मदद के लिए 100 तटीय मछुआरा गांवों को जलवायु अनुकूल गांवों के रूप में विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है। यह पहल मछुआरों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को भी प्राथमिकता देती है।
अंतर्देशीय मत्स्य पालन की अपार संभावनाएं
देश में मछली उत्पादन की संभावनाएं सिर्फ समुद्र तक सीमित नहीं हैं। भारत में 0.28 मिलियन किलोमीटर लंबी नदियां और नहरें, 1.2 मिलियन हेक्टेयर बाढ़ के मैदान की झीलें, 2.45 मिलियन हेक्टेयर तालाब और टैंक, और 3.15 मिलियन हेक्टेयर जलाशय मौजूद हैं। ये सभी मिलकर लगभग 13.9 मिलियन मीट्रिक टन मछली उत्पादन में योगदान देते हैं। इन जल संसाधनों के आसपास बसे पारंपरिक मछुआरा समुदायों के पास आज भी सामाजिक-आर्थिक स्थिरता की कमी है। सरकार की नई योजनाएं इन समुदायों को सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम हैं।
विशेष आर्थिक क्षेत्र क्या है?
मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने बताया कि बजट 2025-26 में ईईजेड और उच्च समुद्र से मछली के सतत दोहन के लिए एक मजबूत रूपरेखा तैयार की जा रही है। खासतौर पर लक्षद्वीप और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। ईईजेड वह क्षेत्र है जो तट से 200 समुद्री मील तक फैला होता है, जबकि उच्च समुद्र किसी भी देश के अधिकार क्षेत्र से बाहर विशाल महासागरों को कहते हैं।
समुद्री मत्स्य पालन पर राष्ट्रीय नीति
सरकार ने साल 2017 में समुद्री मत्स्य पालन पर राष्ट्रीय नीति (एनपीएमएफ) पेश की थी, जो स्थिरता को मुख्य सिद्धांत मानती है। यह नीति भारत के समुद्री मत्स्य संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन में मार्गदर्शन करती है। इसके तहत मानसून के दौरान ईईजेड में मछली पकड़ने पर रोक, विनाशकारी तरीकों पर प्रतिबंध और सतत प्रथाओं को बढ़ावा जैसे कदम उठाए गए हैं। राज्य और केंद्र शासित प्रदेश भी मत्स्य पालन नियमों को लागू करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
भारत: विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक
भारत मछली उत्पादन में 8 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है। पिछले दो दशकों में तकनीकी प्रगति और नीतिगत सुधारों ने इस क्षेत्र को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। मंत्रालय का कहना है कि यह विकास मछुआरों के लिए समृद्धि और देश के लिए आर्थिक मजबूती का प्रतीक है।
सरकार की ये पहल मछुआरों के जीवन में नई उम्मीद की किरण लेकर आई हैं। सतत मत्स्य पालन को बढ़ावा देकर न केवल पर्यावरण की रक्षा होगी, बल्कि मछुआरा समुदायों को भी आर्थिक स्थिरता मिलेगी। यह भारत को वैश्विक मत्स्य पालन के क्षेत्र में और मजबूत स्थिति में लाने का एक सुनहरा अवसर है।