एफएमसीजी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी बीएल एग्रो (BL Agro) ने अब डेयरी सेक्टर (Dairy Sector) में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। कंपनी ने गाय प्रजनन और डेयरी तकनीक के क्षेत्र में एक नई पहल, ‘बीएल कामधेनु परियोजना’ (BL Kamdhenu Project) शुरू की है, जिसमें 1000 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है। इस परियोजना का शुभारंभ केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने बरेली (Bareilly) में किया। बीएल एग्रो (BL Agro) का दावा है कि यह परियोजना उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के 5000 से अधिक किसानों और पशुपालकों को सीधा लाभ पहुंचाएगी। इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, बल्कि देसी नस्ल की गायों की वापसी को भी बढ़ावा मिलेगा।
बीएल कामधेनु परियोजना के तहत क्या होगा?
बीएल कामधेनु परियोजना एक बहुआयामी पहल है, जो डेयरी क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए तैयार की गई है। इसके तहत तीन प्रमुख कार्यक्षेत्रों पर ध्यान दिया जाएगा:
दूध प्रसंस्करण: परियोजना के तहत दूध से पनीर, दही और अन्य दुग्ध उत्पाद तैयार किए जाएंगे। यह स्थानीय स्तर पर उच्च गुणवत्ता वाले दुग्ध उत्पादों की उपलब्धता सुनिश्चित करेगा।
हाई क्वालिटी चारा उत्पादन: पशुओं के लिए पौष्टिक और उच्च गुणवत्ता वाला चारा तैयार किया जाएगा, जो उनकी सेहत और दूध उत्पादन क्षमता को बढ़ाएगा।
बायोगैस उत्पादन: गाय के गोबर से बायोगैस तैयार की जाएगी, जिससे न केवल पर्यावरण को लाभ होगा, बल्कि किसानों को अतिरिक्त आय का स्रोत भी मिलेगा।
पशुपालकों की स्थिति सुधारना लक्ष्य
बीएल एग्रो ग्रुप के प्रबंध निदेशक आशीष खंडेलवाल ने परियोजना के उद्घाटन के मौके पर अपनी रणनीति साझा की। उन्होंने कहा, “बीएल कामधेनु का मुख्य उद्देश्य पशुपालकों और किसानों की स्थिति में सुधार लाना है। भारत में दुग्ध उत्पादन का इतिहास बहुत पुराना है और हमारी संस्कृति में इसका विशेष महत्व है। पहले हमारे पास जो देसी गोवंश थे, वे अधिक मात्रा में पौष्टिक दूध देते थे। लेकिन पाश्चात्य प्रभाव के कारण देसी गायों का प्रजनन कम हुआ और कम उत्पादकता वाली नस्लें प्रचलन में आ गईं। अब समय आ गया है कि हम अपनी पुरानी देसी गायों को फिर से वापस लाएं।”
खंडेलवाल ने आगे कहा, “बीएल कामधेनु देसी गायों की नस्लों को तैयार करने पर काम करेगा। इसके लिए अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल होगा। हम ऐसी गायें तैयार करेंगे, जो मौजूदा नस्लों की तुलना में कहीं अधिक दूध देंगी। इन देसी गायों की दूध देने की क्षमता 50 से 60 लीटर प्रतिदिन तक होगी। साथ ही, किसानों की दूसरी बड़ी समस्या- पशुओं के लिए पौष्टिक चारे की कमी- को भी हम दूर करेंगे। हम ऐसा चारा तैयार करेंगे, जिसमें सभी जरूरी पोषक तत्व हों, ताकि पशु स्वस्थ रहें और उनकी दूध उत्पादकता बढ़े। इससे पशुपालकों की आर्थिक स्थिति पर सकारात्मक असर पड़ेगा।”
बायोगैस: गोबर से किसानों को फायदा
परियोजना का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू बायोगैस उत्पादन है। आमतौर पर गोबर का उपयोग सीमित होता है और किसानों को इससे कोई खास लाभ नहीं मिलता। बीएल कामधेनु के तहत बायोगैस संयंत्र स्थापित किए जाएंगे, जहां गोबर से बायोगैस तैयार होगी। यह न केवल एक पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा स्रोत होगा, बल्कि किसानों को अतिरिक्त आय भी प्रदान करेगा।
किसानों के लिए ट्रेनिंग और समर्थन
इस परियोजना के तहत पशुपालकों और किसानों को व्यापक समर्थन दिया जाएगा। बीएल एग्रो और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के वैज्ञानिक मिलकर पशुपालकों को गायों की देखभाल का सही तरीका सिखाएंगे। इसमें शामिल होगा:
- पशुओं की बीमारियों से संबंधित जानकारी और उनका इलाज।
- गायों की देखभाल के लिए आधुनिक तकनीकों का प्रशिक्षण।
- इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के जरिए बड़ी संख्या में देसी गायों की नस्ल तैयार करना।
लीड्स एग्री जेनेटिक्स की शुरुआत
बीएल एग्रो ने अपनी सहायक कंपनी ‘लीड्स एग्री जेनेटिक्स’ की भी शुरुआत की है। यह कंपनी पशु आनुवंशिकी, पशुधन सुधार, पादप प्रजनन और फसल जीनोमिक्स पर काम करेगी। इसका लक्ष्य टिकाऊ और नैतिक प्रजनन को बढ़ावा देना है। जहां बीएल कामधेनु मवेशी प्रजनन पर केंद्रित होगी, वहीं लीड्स एग्री जेनेटिक्स देसी पशुधन नस्लों और विरासती फसलों को संरक्षित करने, कम मीथेन उत्सर्जन वाली गायों और संसाधन-कुशल फसलों का विकास करने पर ध्यान देगी। यह कंपनी जैव नैतिकता और विनियामक मानकों का पालन करते हुए जीनोमिक डेटा का उपयोग कर किसानों को बेहतर उत्पादकता के लिए प्रशिक्षण देगी।
5000 से अधिक किसानों को लाभ
बीएल एग्रो के सीईओ नवनीत रविकर ने कहा, “शुरुआती चरण में बीएल कामधेनु अगले 2-3 वर्षों में 5000 से अधिक स्थानीय किसानों को लाभ पहुंचाएगी। जैसे-जैसे परियोजना अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचेगी, यह बरेली के 20 किलोमीटर के दायरे में 1 से 2 लाख किसानों को फायदा देगी।” उन्होंने बताया कि कंपनी उच्च दूध देने वाली गायें स्थानीय समुदाय को बेचेगी, उन्हें उच्च गुणवत्ता वाला चारा प्रदान करेगी और दूध वापस खरीदेगी। इसके लिए एक फील्ड प्रोसेसिंग यूनिट भी स्थापित की जाएगी, जो किसानों से दूध और कृषि अपशिष्ट संग्रह करेगी। यह अपशिष्ट प्रस्तावित संपीड़ित बायोगैस (सीबीजी) संयंत्र के लिए उपयोग होगा।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती
बीएल कामधेनु परियोजना भारत के डेयरी क्षेत्र को समर्थन देने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को व्यावसायिक रूप देने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह न केवल किसानों की आय बढ़ाएगी, बल्कि देसी नस्लों के संरक्षण और पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को भी बढ़ावा देगी। यह परियोजना उत्तर प्रदेश के डेयरी सेक्टर में एक नया अध्याय शुरू करने की ओर अग्रसर है, जो आने वाले वर्षों में बड़े बदलाव का वाहक बन सकती है।