
संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा’ को बड़े पैमाने पर दुनिया की भलाई सुनिश्चित करने के लिए निर्धारित किया गया है
देश के ग्रामीण क्षेत्र में समृद्धि और किसानों की खुशहाली के साथ साथ सहकारी समितियों (Cooperative Societies) की भूमिका विकास (Development) के लक्ष्यों को पाने में भी महत्वपूर्ण होती जा रही है। लोकतांत्रिक आधार पर बिना किसी धर्म, जाति, पृष्ठभूमि, लिंग आदि के आधार पर सदस्य बनाने की सहकारी समिति ((Cooperative Society) की परंपरा समाज के सभी वर्गों की प्रगति में सहायक बनती है। आपसी विकास और लाभ के सिद्धांतों पर काम करने की वजह से किसी भी सहकारी समिति में सभी सदस्यों के विकास की रफ्तार भी लगभग समान ही रहती है।
संयुक्त राष्ट्र (United Nations) द्वारा ‘सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा’ को बड़े पैमाने पर दुनिया की भलाई सुनिश्चित करने के लिए निर्धारित किया गया है। जिसमें 17 सतत विकास लक्ष्यों (SDG) की प्राप्ति को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया है। इन लक्ष्यों में मानव अस्तित्व, जलवायु, विकास, आर्थिक विकास, तकनीकि नवाचार और ग्रह संरक्षण के संबंध में विभिन्न पहलुओं को उजागर किया गया है। सहकारी समितियों के माध्यम से यह स्थिरता जमीनी स्तर से सकारात्मक परिवर्तन और प्रभावों को शुरू करने का काम कर सकती है। सहकारी समितियां अपनी सामूहिक शक्ति का प्रयोग संबद्ध सदस्यों की आर्थिक स्थिरता के लिए करती हैं।
सहकारी समितियों की स्थापना का उद्देश्य गरीबी और किसी भी वर्ग के आर्थिक बहिष्कार के प्रभाव को कम करना होता है। साथ-साथ आजीविका के माध्यमों का सृजन कर वंचित वर्ग को सशक्त बनाने में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके साथ ही सहकारी समितियों का गठन सुरक्षा और सामूहिक हित, व्यक्तिगत और सामूहिक विकास दोनों पर केंद्रित होता है। ऋण सहकारी समितियां आजीविका के स्रोत को चालू रखने के लिए इनपुट खरीदने के लिए निवेश और धन तक पहुंच की सुविधा प्रदान करती हैं। आजीविका के स्रोत को अक्सर सहकारी समितियों के उद्देश्यों के रूप में केंद्रित किया जाता है जो अंतत: गरीबी को कम करने में मदद करता है।
अमूल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। इसने परिचालन, उत्पाद रेंज, टर्नओवर, लाभ और सहकारी सदस्यों के मामले में वृद्धि की है। इसका संचालन केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अन्य देशों में भी है। अमूल की सफलता दर्शाती है कि किस तरह सहकारी समितियों को गरीबी कम करने में परिवर्तन के उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। सहकारी समिति में शिक्षा, भिन्न सामाजिक या वित्तीय पृष्ठभूमि के बावजूद समावेशी विकास को बढ़ावा देना असमानताओं को कम करने में मदद करती है। सामाजिक सामंजस्य समुदायों के सभी समूहों को सशक्त बनाता है और समाज के विभिन्न वर्गों को काम करने और बेहतर जीवन स्तर हासिल करने के लिए सशक्त बनाता है।
पिछले कुछ वर्षों में महिला सहकारी समितियों द्वारा बेहतर प्रदर्शन किया गया है। स्वयं सेवी संगठनों के माध्यम से महिला स्वयं सहायता समूह अन्य महिलाओं का उपयोग अपने कौशल का प्रदर्शन करने, आजीविका और सशक्त बनाने के लिए किया जा सकता है। गरीबी और असमानता में कमी का सकारात्मक प्रभाव, शिक्षा और लैंगिक समानता तक भी फैला हुआ है। सशक्त और आर्थिक रूप से स्थिर सहकारी सदस्य अपने परिवार और समुदाय के सदस्यों को उचित भोजन पोषण, स्कूली शिक्षा और कौशल से लैस कर सकते हैं।
आर्थिक स्थिरता मानव अस्तित्व और बेहतर जीवन जीने की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। भारत में सामाजिक कल्याण वित्तीय कल्याण पर बहुत अधिक निर्भर करता है। इसलिए विकसित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर होने के लिए समूहों का वित्तीय/आर्थिक सशक्तीकरण आवश्यक है। सहकारी के प्रयोग कृषि में भी कारगर हैं, कृषि उत्पादकता और टिकाऊ कृषि को बढ़ाकर राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहकारी समितियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
इफको इस संदर्भ में एक बेहतर उदाहरण है। यह सहकारी समिति किसानों को आवश्यक कौशल और प्रशिक्षण के साथ-साथ बाजार में खाद, किफायती कृषि इनपुट उपलब्ध कराती है। प्रत्येक सहकारी समिति विभिन्न सतत विकास लक्ष्यों को प्रभावित करती है और जलवायु, जैव विविधता और पारिस्थतिकी संरक्षण जैसे विभिन्न मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए व्यवहार्य साधन है। सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में युवाओं की भागीदारी सहकारी समितियों के ढांचे के माध्यम से सबसे अच्छी तरह से की जा सकती है।
सामूहिक दृष्टिकोण, संसाधनों का एकत्रीकरण और लाभों को साझा करना सहकारी समितियों के प्रमुख सिद्धांत हैं जिन पर प्रकाश डाला जाना चाहिए और युवाओं को कई लोगों के जीवन में बदलाव लाने के लिए नवाचार करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। जलवायु परिवर्तन, टिकाऊ उत्पादों, अपशिष्ट प्रबंधन और शिक्षा के प्रसार पर ध्यान केंद्रित करने वाली सहकारी समितियां समय की मांग हैं, साथ ही यह तथ्य भी है कि इनका प्रबंधन और संचालन राष्ट्र के युवाओं द्वारा किया जाता है। शिक्षित और सशक्त युवा राष्ट्र की संपत्ति हैं, सहकारी समितियों के माध्यम से सकारात्मक परिवर्तन के लिए केंद्र सरकार निरंतर सहयोग कर रही हैं।