केंद्र सरकार ने देश की नीली अर्थव्यवस्था मजबूत करने के लिये पूर्वोत्तर क्षेत्र में 50 करोड़ रुपये की मत्स्य पालन परियोजना का उद्घाटन किया गया। केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री श्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने 6 जनवरी को गुवाहटी में आयोजित की गई ‘उत्तर-पूर्व क्षेत्र राज्यों की बैठक 2025’ के दौरान इस परियोजना का शिलान्यस किया।
प्रधानमंत्री मत्सय पालन योजना के अंतर्गत शुरु की गई इस पहल से सिक्किम में भारत के पहले जैविक मत्स्य क्लस्टर का शुभारम्भ भी होगा। इन परियोजनाओं मुख्य उद्देश्य क्षेत्र में मत्स्य पालन के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना व मत्स्य उत्पादन में वृद्धि करना है। पहल के शुभारम्भ से किसानों को आय के नवीन अवसर मिलने वाले हैं। इन परियोजनाओं से मत्स्य पालन क्षेत्र में 4,530 प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर उत्पन्न होने की उम्मीद है।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से देश के मत्स्य पालन क्षेत्र में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। इस योजना के तहत छत्तीसगढ के बंद पत्थर खादानों को केज कल्चर तकनीक की सहायता से मछली पालन का केंद्र बनाया गया है, जहां पंगेसियस और तिलापिया जैसी मछलियों का उत्पादन तेजी से बढ़ाया जा रहा है। इस पहल ने देश के ग्रामीण लोगो को रोजगार, महिलाओं का सशक्तिकरण, स्वावलंबन के नये अवसर बढाए हैं।
छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में जिन खादानें पर पहले ताला लगा पड़ा था। इस योजना की सहायता से अब उन खदानों को मछ्ली उत्पादन का केंद्र बना दिया है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत अब इन खदानों में केज कल्चर तकनीक से मछली पालन किया जा रहा है। इससे देश में मछलियों की आपूर्ति भी सुनिश्चित हो रही है।
इस योजना से दो खदानों में 9 करोड़ 72 लाख रुपए की लागत लगाकर कुल 324 पिंजरे लगाए गए हैं। इन पिंजरों में ऐसी मछलियां पाली जा रही है, जो कि पांच महीने में बाजार भेजने के लिए तैयार हो जाती है। एक पिंजरे में करीब-करीब 2.5 से 3 टन मछली का उत्पादन हो रहा है। इससे 150 से अधिक लोगो को रोजगार के अवसर मिले है। इसके साथ ही महिलाएं हर माह 6-8 महीने की आमदनी प्राप्त कर रही हैं।
इस योजना के तहत मछली पालन करने वाले लोगो को 60 प्रतिशत की सब्सिडी दी जा रही है। खदानों में पाली जा रही मछलियों स्थानीय बाजार के साथ-साथ राष्ट्रीय बाजारों में भी भेजी जा रही है। इस योजना ने महिलाओं के सशक्तिकरण में भरपूर योगदान दिया है। महिलाओं के स्व-सहायता समूहों ने भी बढ-चढकर मछली पालन मेंं हिस्सा लिया है। इस कारण लोगो को ताजी मछलियां खाने को मिल रही है। इस योजना से ग्राहक और विक्रेता दोनो को आनंद की अनुभूति कराई है।