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सहकारिता भरेगी नई उड़ान

वर्ष 2021 में केंद्र में नया सहकारिता मंत्रालय बनाकर सरकार ने पहला बड़ा कदम उठाया। इस दौरान सरकार ने देश में सहकारिता को मजबूत बनाने के लिए जितने कदम उठाये हैं उनकी गूंज अब पूरी दुनिया में सुनाई देने लगी है।

Published: 12:00pm, 03 Jan 2025

– संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2025 को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के रूप में मनाने का फैसला दुनिया भर के करोड़ों गरीबों व किसानों के लिए आशीर्वाद साबित होगा

– अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष में नई सहकारी नीति लाकर केंद्र सरकार भारत के सहकारी आंदोलन को नई दिशा देने का काम करेगी

– केंद्र सरकार ने ‘सहकार से समृद्धि’ के संकल्प के माध्यम से लाखों गांवों, करोड़ों महिलाओं और किसानों की समृद्धि का रास्ता खोला

समाज के निचले पायदान पर रहने वाले लोगों को अगर समृद्ध बनाना है तो सहकारिता इसका सबसे कारगर उपाय है। सहकारिता आंदोलन बिना पूंजी वाले लोगों को समृद्ध बनाने का एक बहुत बड़ा साधन बन सकता है। भारत इन लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में निरंतर प्रयास कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (आईसीए) के वैश्विक सहकारी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 की औपचारिक शुरूआत होने से भारत के इन प्रयासों को और मजबूती मिलेगी। इससे भारतीय सहकारिता आंदोलन नई उड़ान भरने में सक्षम होगी।

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 के शुभारंभ मौके पर कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2025 को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के रूप में मनाने का फैसला दुनिया भर के करोड़ों गरीबों और किसानों के लिए आशीर्वाद साबित होगा। तीन साल पहले ही प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ‘सहकार से समृद्धि’ के संकल्प के माध्यम से देश के लाखों गांवों, करोड़ों महिलाओं और किसानों की समृद्धि का रास्ता खोला है। तीन साल में भारत के सहकारिता क्षेत्र में कई नई गतिविधियां हुई हैं और भारतीय सहकारिता आंदोलन का पुनर्जन्म हुआ है। अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष में नई सहकारी नीति लाकर सरकार भारत के सहकारी आंदोलन को नई दिशा देने का काम करेगी।’

वर्ष 2021 में केंद्र में नया सहकारिता मंत्रालय बनाकर सरकार ने पहला बड़ा कदम उठाया। इस दौरान सरकार ने देश में सहकारिता को मजबूत बनाने के लिए जितने कदम उठाये हैं उनकी गूंज अब पूरी दुनिया में सुनाई देने लगी है। सरकार का मानना है कि समाज के पिछड़े, अति पिछड़े, गरीब और विकास की दौड़ में पीछे छूट चुके लोगों के उत्थान के लिए सहकारिता सबसे सशक्त माध्यम है। इसके लिए सहकारिता आंदोलन को मजबूत करना आवश्यक है। इसी दिशा में सरकार ने 2 लाख नई प्राथमिक कृषि ऋण समितियां (पैक्स) बनाने का लक्ष्य रखा है। अगले तीन साल में देश का एक भी गांव ऐसा नहीं रहेगा जहां कोई सहकारी संस्था न हो। सरकार ने पैक्स के कार्यक्षेत्र में विस्तार के साथ साथ उन्हें आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने का काम शुरू किया है। इनके लिए नए बायलॉज अपनाने से अब पैक्स डेयरी, मत्स्य पालन, अन्न भंडारण, जन औषधि केंद्र आदि जैसे 30 से अधिक विविध क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियां संचालित करने में सक्षम हुए हैं।

तीन नई राष्ट्रीय स्तर की बहु-राज्यीय सहकारी समितियों के गठन से सहकारिता का क्षितिज और व्यापक हुआ है। राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड ने विदेशी बाजारों तक किसानों की पहुंच को सुगम बनाया तो राष्ट्रीय सहकारी जैविक लिमिटेड ने जैविक प्रमाणीकरण और बाजार पहुंच का मंच तैयार किया। भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड ने उन्नत बीजों की सुलभता सुनिश्चित की है। ये तीनों कोआॅपरेटिव्स दुनिया के सहकारिता क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का मार्गदर्शन करेंगी। आने वाले दिनों में किसानों की सहभागिता दुनिया के व्यापार में तो बढ़ाएंगी ही, साथ ही पूरी दुनिया की सहकारी संस्थाओं को प्रेरणा देने का काम भी करेगी कि किस प्रकार से छोटा किसान भी पूरी दुनिया के बाजारों तक पहुंच सकता है।

वित्तीय सहायता, कर राहत और एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम ने सहकारी चीनी मिलों में नई जान फूंकने का काम किया है। सहकारी बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करने के लिए सहकारी संस्थाओं के पैसे को सहकारी बैंकों में ही जमा करने पर जोर है। राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस के माध्यम से सहकारी समितियों को पारदर्शी बनाने और प्रचालन प्रक्रिया को आसान बनाने से देश के सहकारी रूप से कम विकसित क्षेत्रों में सहकारी समितियों की पहुंच बनी है। इसके अतिरिक्त सरकार एक समग्र और व्यापक नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति पर भी काम कर रही है। कमजोर पड़ रही सहकारी संस्थाओं में जान फूंकने से लेकर उनके व्यापार को सरल बनाना, समितियों में पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए मजबूत प्रशासनिक, नीतिगत और कानूनी उपाय किए गए हैं। सहकारी संस्थाओं को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाने के लिए सहकारी नेटवर्क का विस्तार कर एक नया आर्थिक मॉडल खड़ा किया जा रहा है जो भारत की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने के लक्ष्य को पूरा करने में सहायक साबित होगा।

नए सहकारिता मंत्रालय के गठन के बाद सहकारिता क्षेत्र के पूरे कानूनी ढांचे का सुदृढ़ीकरण हुआ है, श्वेत क्रांति 2.0 और नीली क्रांति की शुरूआत भी हुई है जिसमें सहकारिता की भूमिका बहुत अहम है। आने वाले दिनों में सहकारिता विश्वविद्यालय की भी शुरूआत होने जा रही जिसके माध्यम से प्रशिक्षित और तकनीक से युक्त मानव संसाधन का निर्माण होगा। सहकारिता की पहुंच बढ़ाने के लिए सरकार हर गांव और किसान को सहकारिता से जोड़ने के प्रति कटिबद्ध है। गावों, किसानों, महिलाओं और गरीबों के सशक्तिकरण के लिए सहकारिता आंदोलन ने कई रास्ते खोले हैं। इसके माध्यम से आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री के ‘सहकार से समृद्धि’ के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

भारत में प्राचीन काल से ही सहकारिता का एक समृद्ध इतिहास रहा है। इसके संकेत कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी मिलते हैं जहां गांवों में सार्वजनिक लाभ के लिए मंदिरों और बांधों के निर्माण में सामूहिक प्रयासों का उल्लेख है। दक्षिण भारत में भी निधियों का प्रचलन सहकारी वित्तीय व्यवस्था की झलक प्रदान करता है। भारत जैसे विशाल देश में 130 करोड़ से अधिक नागरिकों की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए सहकारिता ही सर्वश्रेष्ठ मॉडल है।

YuvaSahakar Desk

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