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दुनिया ने सुनी भारतीय सहकारिता की धमक

भारतीय सहकारी आंदोलन की मजबूती का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि दुनिया की करीब एक चौथाई सहकारी संस्थाएं (8 लाख) भारत में मौजूद हैं जिनके सदस्यों की संख्या करीब 30 करोड़ है।

Published: 11:25am, 03 Jan 2025

-सफलतापूर्वक संपन्न हुआ भारत में पहली बार आयोजित आईसीए का वैश्विक सहकारी सम्मेलन

-संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 का हुआ औपचारिक आगाज

-सामाजिक समावेशन, आर्थिक सशक्ति‍करण और सतत विकास को बढ़ावा देने में सहकारी समितियों की परिवर्तनकारी भूमिका का किया गया आह्वान

-असमानता कम करने, बेहतर कल्याणकारी उपायों को बढ़ावा देने और गरीबी उन्मूलन में इन समितियों की भूमिका है निर्णायक

दुनिया के लिए कोऑपरेटिव एक मॉडल है, लेकिन भारत के लिए कोऑपरेटिव संस्कृति का आधार और जीवन शैली है। भारत में सहकारिता ने विचार से आंदोलन, आंदोलन से क्रांति और क्रांति से सशक्तिकरण तक का सफर तय किया है। अंतरराष्ट्रीय सहकारिता गठबंधन (आईसीए) के वैश्विक सहकारी सम्मेलन 2024 का 25 नवंबर को उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन शब्दों के साथ जब संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 का औपचारिक रूप से आगाज किया तो यह तय हो गया कि भारत सहकारिता के बलबूते न सिर्फ खुद को विकसित देशों की कतार में खड़ा करने के लिए तेजी से कदम बढ़ा चुका है, बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्था को नई राह दिखाने के लिए भी तत्पर है। भारतीय सहकारी आंदोलन की मजबूती का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि दुनिया की करीब एक चौथाई सहकारी संस्थाएं (8 लाख) भारत में मौजूद हैं जिनके सदस्यों की संख्या करीब 30 करोड़ है। दुनियाभर में 30 लाख सहकारी संस्थाएं हैं जिनके सदस्यों की संख्या 1.2 अरब है और इस क्षेत्र ने दुनिया के 21 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार दे रखा है। सदस्यों की संख्या के लिहाज से भी भारत का हर पांचवां व्यक्ति सहकारिता से जुड़ा हुआ है।

इफको, अमूल और कृभको जैसी विश्व स्तरीय भारतीय सहकारी संस्थाओं के मॉडल ने दुनिया को सहकार से समृद्धि का जो रास्ता दिखाया है, वह अब रूकने वाला नहीं है और न ही भारत सहकारिता क्षेत्र में अपनी मौजूदा मजबूत स्थिति के बावजूद विराम लेने को तैयार है। 2021 में केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय के गठन के बाद से भारत कोआॅपरेटिव मूवमेंट को नया विस्तार दे रहा है। अगले वर्ष को पूरी दुनिया द्वारा अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के रूप में मनाए जाने से भारत दुनिया में सहकारिता अन्य सफल मॉडलों को न केवल अपनाने को प्रेरित होगा, बल्कि अपने अनुभवों से वैश्विक सहकारी आंदोलन को नए टूल्स देने में भी सक्षम होगा। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 का थीम ‘‘सहकारिता एक बेहतर विश्व का निर्माण करती है’’ है। इसमें सामाजिक समावेशन, आर्थिक सशक्ति‍करण और सतत विकास को बढ़ावा देने में सहकारी समितियों की परिवर्तनकारी भूमिका का उल्लेख होगा। सतत विकास के लक्ष्य को हासिल करने में संयुक्त राष्ट्र सहकारी समितियों को महत्वपूर्ण चालक मानता है। खासकर दुनियाभर में असमानता कम करने, बेहतर कल्याणकारी उपायों को बढ़ावा देने और गरीबी उन्मूलन में इनकी प्रमुख भूमिका है। वर्ष 2025 विश्व की प्रमुख चुनौतियों का सामना करने में सहकारिता के प्रयासों की वैश्विक पहल होगी।

अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के दौरान पूरी दुनिया की सहकारी समितियों को एक दूसरे को जानने, समझने और पहचानने का मौका मिलेगा। साथ ही, अपना अनुभव बताने और दूसरों के अनुभव से सीखने का भारतीय सहकारी संस्थाओं को मौका मिलेगा। इसके अलावा, यह कोआॅपरेटिव टू कोआॅपरेटिव बिजनेस करने और बढ़ाने का अवसर भी देगा। इसके लिए जगह-जगह मीटिंग आयोजित की जाएंगी और सहकारिता की चुनौतियों से निपटने के रास्ते तलाश कर बेहतर विश्व के निर्माण के द्वार खोले जाएंगे।

वैश्विक सहकारी सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘सहकारिता आंदोलन मुनाफा नहीं मानवता के भाव को आगे लेकर बढ़ता है। दुनिया के लिए यह जरूरी है कि वह विकास को मानव केंद्रित नजरिये से देखे। सहकारिता से वैश्विक सहयोग को नई ऊर्जा मिल सकती है। खासतौर पर ग्लोबल साउथ के देशों को जिस प्रकार की ग्रोथ की जरूरत है उसमें कोऑपरेटिव मदद कर सकती हैं। सहकारिता को दुनिया में अखंडता और आपसी सम्मान का ध्वजवाहक बनाने की जरूरत है।’ देश के भविष्य के विकास में सरकार सहकारिता की बड़ी भूमिका देखती है। सहकारी समितियों को बहुउद्देशीय बनाने के लक्ष्य के साथ भारत सरकार ने अलग से सहकारिता मंत्रालय बनाकर सहकारिता के पूरे इकोसिस्टम को बदलने का काम किया है। सहकारी क्षेत्र में स्टार्टअप को प्रोत्साहित करने पर भी विचार किया जा रहा है।

सहकारी समितियां चीनी, उर्वरक, मत्स्य पालन और दूध उत्पादन जैसे क्षेत्रों में बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं। बीते 10 साल में भारत में अर्बन कोआॅपरेटिव बैंकिंग और हाउसिंग कोऑपरेटिव का भी बहुत विस्तार हुआ है। आज भारत में लगभग 2 लाख हाउसिंग कोआॅपरेटिव सोसायटी हैं। इस दौरान सरकार ने कोआॅपरेटिव बैंकिंग सेक्टर में सुधार लाकर उसे मजबूत बनाने का काम किया है। सहकारी बैंकों में 12 लाख करोड़ रुपये से अधिक जमा हैं, जो इन संस्थाओं के प्रति बढ़ते भरोसे को दशार्ता है। इन बैंकों में डिपॉजिट पर कवर के इंश्योरेंस का बढ़ाकर 5 लाख रुपये प्रति डिपॉजिटर कर दिया गया है। कोआॅपरेटिव बैंक भी अब डिजिटल बैंकिंग से लैस हैं। इन प्रयासों से भारतीय सहकारी बैंक पहले से कहीं ज्यादा पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी हुए हैं। प्रधानमंत्री के ‘सहकार से समृद्धि’ के दृष्टिकोण का लक्ष्य सहकारी संस्थाओं को आत्मनिर्भर और मजबूत बनाना है। आज सहकारिता के अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए नए तरीके खोजने की आवश्यकता है जिसमें वैश्विक सहकारिता सम्मेलन बहुत मददगार साबित हुई है।

21वीं सदी की ग्लोबल ग्रोथ में महिलाओं की भागीदारी काफी मायने रखती है। भारतीय सहकारिता आंदोलन में भी महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है, खासकर दूध उत्पादन और मत्स्य पालन क्षेत्र में। इसलिए भारत का फोकस महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास पर है, जो दुनिया के लिए महिला सशक्तिकरण का एक बड़ा मॉडल बन सकता है। आज भारत के सहकारिता क्षेत्र में 60 फीसदी से ज्यादा भागीदारी महिलाओं की है। सहकारी संस्थाओं के प्रबंधन में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़े, इसके लिए मल्टी स्टेट कोआॅपरेटिव सोसायटी एक्ट में संशोधन किया गया है। अब मल्टी स्टेट कोआॅपरेटिव सोसायटी के बोर्ड में महिला डायरेक्टर का होना अनिवार्य कर दिया गया है। इतना ही नहीं, इनमें वंचित वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी की गई है।

सहकारी संस्थाओं के अलावा महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से भी महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसकी बदौलत देश की 10 करोड़ से

महिलाएं स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हैं। इन समूहों को सरकार ने विविध गतिविधियां संचालित करने और उनके सदस्यों के स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए 9 लाख करोड़ रुपये का सस्ता लोन दिया है जिसने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बड़ी धन संपत्ति का इजाफा करने में मदद पहुंचाई है। इसके माध्यम से वंचित तबके की महिलाएं अपने परिवार की गरीबी दूर करने के साथ-साथ स्वरोजगार के लिए भी प्रेरित हुई हैं।

वैश्विक सहकारी सम्मेलन के मंच से 21वीं सदी में वैश्विक सहकारी आंदोलन की दिशा तय करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए सहकारी समितियों के लिए सरल एवं पारदर्शी वित्तपोषण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक सहयोगात्मक वित्तीय मॉडल बनाने का आह्वान किया गया। इस तरह के साझा वित्तीय मंच बड़ी परियोजनाओं के वित्तपोषण और सहकारी समितियों को ऋण प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया भर में सहकारी समितियों को वित्तपोषित करने में सक्षम वैश्विक वित्तीय संस्थानों के निर्माण की आवश्यकता में आईसीए की बड़ी भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि भविष्य में इससे आगे बढ़ना जरूरी है। दुनिया की मौजूदा स्थिति सहकारी आंदोलन के लिए एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करती है।

सहकारिता आंदोलन के प्रति भारत की वचनबद्धता के प्रतीक के रूप में वैश्विक सहकारी सम्मेलन में एक स्मारक डाक टिकट भी जारी किया गया। नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भूटान के प्रधानमंत्री दाशो शेरिंग टोबगे, फिजी के उप प्रधानमंत्री मनोआ कामिकामिका, केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह, भारत में संयुक्त राष्ट्र के स्थानीय समन्वयक शोम्बी शार्प, आईसीए के अध्यक्ष श्री एरियल ग्वार्को सहित भारत और विभिन्न देशों की सहकारी संस्थाओं के 3000 से अधिक प्रतिनिधि शामिल हुए।

आईसीए वैश्विक सहकारी सम्मेलन और आईसीए महासभा का आयोजन आईसीए के 130 साल के इतिहास में भारत में पहली बार आयोजित किया गया जो 25-30 नवंबर तक चला। आईसीए वैश्विक सहकारी आंदोलन का अग्रणी निकाय है। भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लिमिटेड (इफको) द्वारा आईसीए और भारत सरकार तथा भारतीय सहकारी संस्थाओं अमूल व कृभको के सहयोग से इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। नेशनल युवा कोआॅपरेटिव सोसायटी लिमिटेड (एनवाईसीएस) की भी इसमें सहभागिता रही। सम्मेलन का विषय ‘सहकारिता सबकी समृद्धि का द्वार’ था जो भारत सरकार के ‘सहकार से समृद्धि’ के दृष्टिकोण से मेल खाता है।

इस सम्मेलन में दुनियाभर से आए प्रतिनिधियों ने सहकारिता को आगे बढ़ाने के लिए चचार्एं की, पैनल डिस्कशन हुआ और कार्यशालाएं आयोजित की गईं। संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने में दुनिया भर में सहकारी समितियों के सामने आने वाली चुनौतियों एवं अवसरों, विशेष रूप से गरीबी उन्मूलन, लैंगिक समानता और सतत आर्थिक विकास जैसे क्षेत्रों पर इस दौरान व्यापक विचार-विमर्श किया गया।

महात्मा गांधी कहते थे कि कोऑपरेटिव्स की सफलता उनकी संख्या से नहीं, उनके सदस्यों के नैतिक विकास से होती है। जब नैतिकता होगी तो मानवता के हित में ही सही फैसले होंगे। अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष में इसी भाव को सशक्त बनाने के लिए निरंतर काम होगा।

YuvaSahakar Desk

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